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खुलासा: तस्करों ने बदला रूट, गांजे के साथ चरस भी मंगाये जा रहे, ओड़िशा से गांजा आ रहा बिहार

पटना: पूरे राज्य में पूर्ण शराबबंदी कानून 5 अप्रैल से पूरी सख्ती से लागू तो है, लेकिन इसके साथ ही मादक पदार्थों खासकर गांजे की तस्करी काफी बढ़ गयी है. पुलिस को चकमा देने के लिए तस्करों ने गांजा लाने का रूट भी बदल दिया हैं. इस वर्ष अब तक गांजे की दो और चरस […]

पटना: पूरे राज्य में पूर्ण शराबबंदी कानून 5 अप्रैल से पूरी सख्ती से लागू तो है, लेकिन इसके साथ ही मादक पदार्थों खासकर गांजे की तस्करी काफी बढ़ गयी है. पुलिस को चकमा देने के लिए तस्करों ने गांजा लाने का रूट भी बदल दिया हैं. इस वर्ष अब तक गांजे की दो और चरस की एक बड़ी खेप पकड़ी गयी है. जांच में सामने आयी है कि बिहार में अब ओड़िशा के मलकानगिरी शहर से गांजा, चरस समेत अन्य मादक पदार्थों की बड़ी और छोटी सभी खेपें आती हैं. पहले बिहार में गांजे की स्मगलिंग का रूट नेपाल हुआ करता था.
चोरी के वाहन का करते हैं प्रयोग : मादक पदार्थों की तस्करी के लिए चोरी के वाहनों का प्रयोग किया जाता है. गाड़ी का पूरा ऊपरी हिस्सा और नंबर सभी बदल दिये जाते हैं. इसके बाद इनके जरिये तस्करी की जाती है. हाल में एक जीप और बोलेरो पकड़ी गयी थी. बताया जाता है कि मलकानगिरी के जंगलों में वाहनों का पूरा वर्कशॉप बनाया गया है, जहां इस तरह के मेकओवर के काम काफी अच्छे से किया जाता है.
नक्सलियों के साये में होती गांजे की खेती
ओड़िशा के जिस मलकानगिरी क्षेत्र में गांजे की खेती होती है, वह पूरी तरह से नक्सल प्रभावित क्षेत्र है. इस पूरे इलाके में नक्सलियों की बंदूकों के साये में बड़े स्तर पर गांजे की खेती होती है. इसकी स्मगलिंग बिहार समेत दूसरे राज्यों में यहां से बड़े पैमाने पर की जाती है. इनकी तस्करी करने का तरीका भी काफी नायाब है, जो बिना किसी ठोस गुप्त सूचना के पकड़ी नहीं जा सकती है. इस इलाके में नक्सलियों के लिए गांजे की खेती इनकी आय का मुख्य जरिया है. ये पैसे इनके संगठन को मजबूत करने में बेहद सहायक साबित होते हैं. बेहद सुदूर और दुर्गम क्षेत्र होने के कारण यहां तक स्थानीय प्रशासन की पहुंच नहीं हो पाती है. इस तरह खुलेआम धंधा चलता है.
तीन से चार गुना मुनाफे का धंधा: गांजा और चरस की तस्करी धंधेबाजों के लिए तीन से चार गुणा तक मुनाफे का धंधा है. मलकानगिरी में गांजा करीब 1200 रुपये प्रति किलो खरीदा जाता है और इसे बिहार में लाकर चार से पांच हजार रुपये किलो बेचा जाता है.
इस तरह छिपाते हैं गांजा या चरस को
हाल में गुप्त सूचना के आधार पर जिन वाहनों को जब्त किया गया है, उनमें मादक पदार्थों के छिपाने के नायाब तरीके सामने आये हैं. गोपालगंज सीमा पर एक बोलेरो जब्त हुई थी, जिसके चारों दरवाजों को अंदर से खाली करके इसे डिब्बे की तरह बना कर पैकेटों में भर कर गांजा रख दिये गये थे. एक ट्रक में ड्राइवर के पीछे वाले केबिन में एक बड़ा चैंबर बना कर इसमें गांजा और चरस को छिपा कर रखा गया था. एक अन्य बोलेरो की स्टेपनी में गांजे के पैकेट को रखा गया था.
बड़े तस्कर गिरफ्त से बाहर : बिहार में चरस-गांजे के बड़े धंधेबाज अब भी गिरफ्त से बाहर हैं. इसका कारण इनका ओड़िशा या अन्य इलाकों में ही छिपे रहना है. बिहार में अब तक इनके सिर्फ ‘कैरियर’ ही पकड़े गये हैं. इनमें ज्यादातर ट्रक ड्राइवर या मजदूरी करने वाले शामिल होते हैं, जो थोड़े पैसों के लालच में यह धंधा करते हैं. तस्करी के मुख्य सरगना में गोपालगंज का भगत यादव, छपरा का सरोज सिंह, मुजफ्फरपुर का राम विवेक सिंह समेत अन्य शामिल हैं.
तस्करी के लिए इन रूटों का करते हैं उपयोग
खूफिया सूचना के अनुसार,ओड़िसा के मलकानगिरी में इसकी उपज होती है, लेकिन इसे यहां के जयपोर नामक स्थान के पास लाकर ट्रकों में लोड किया जाता है. इस स्थान पर एक बंद पड़ा पेट्रोल पंप है, यहां ट्रकों या अन्य वाहनों को खड़ा कर दिया जाता है. फिर रात के अंधेरे में वाहनों को खुफिया रास्ते से यहां से करीब 20 किमी दूर मलकानगिरी के जंगल में एक खास स्थान पर ले जाया जाता है. इसी स्थान पर गुप्त तरीके से वाहनों में गांजा लोड किया जाता है. फिर रात में ही इन वाहनों को रवाना कर दिया जाता है. फिर ये वाहन ओड़िशा से झारखंड के बाद यूपी जाते हैं. इसके बाद गोपालगंज, बक्सर समेत अन्य रास्तों से बिहार में दाखिल होते हैं. इन दिनों तस्करों के लिए यह बेहद ही ‘सेफ’ रूट बना हुआ है. झारखंड से सीधे वाहन बिहार में दाखिल नहीं होते हैं, क्योंकि रजौली घाटी में चौकसी बढ़ने के कारण इनके पकड़ने की आशंका बढ़ जाती है.

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