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स्टोरकीपर से होकर गुजरती थीं सभी फाइलें
बिहार विद्यालय परीक्षा समिति में रद्दी से लेकर मशीन या अन्य सामान की खरीद में होती थी धांधली कमीशनखोरी का पूरा हिसाब-किताब बैठाता था स्टोरकीपर, नीचे से ऊपर तक कमीशन करता था फिक्स पटना : बिहार विद्यालय परीक्षा समिति (बीएसइबी) में टॉपर घोटाला के अलावा भी अन्य चीजों में बड़े स्तर पर धांधली होती थी. […]
बिहार विद्यालय परीक्षा समिति में रद्दी से लेकर मशीन या अन्य सामान की खरीद में होती थी धांधली
कमीशनखोरी का पूरा हिसाब-किताब बैठाता था स्टोरकीपर, नीचे से ऊपर तक कमीशन करता था फिक्स
पटना : बिहार विद्यालय परीक्षा समिति (बीएसइबी) में टॉपर घोटाला के अलावा भी अन्य चीजों में बड़े स्तर पर धांधली होती थी. पुरानी कॉपियों की रद्दी की निलामी हो या कंप्यूटर, एससी के मेंटेनेंस या उत्तर पुस्तिका छपाई या मार्कशीट और सर्टिफिकेट की छपाई का मामला हो, तमाम टेंडरों में जमकर धांधली होती थी. ऐसे तो इसमें अन्य कई कर्मचारियों या संबंधित फाइलों को देखने वाले कर्मचारियों की भूमिका भी काफी अहम होती थी. लेकिन ठेका-ठेकेदारी की तमाम फाइलें एक बार स्टोरकीपर विकास कुमार के माध्यम से ही होकर गुजरती थीं.
स्टोरकीपर पहले इन फाइलों को देखता था. फिर जिस कंपनी से सेटिंग जमती थी, उसके हिसाब से टेंडर निकाला जाता था. इस पूरी प्रक्रिया में कमीशनखोरी का पूरा हिसाब-किताब स्टोरकीपर के माध्यम से ही बैठता था, जो नीचे से लेकर ऊपर तक जाता था. अध्यक्ष, सचिव से लेकर संबंधित फाइलों को डील करने वाले कर्मचारियों या इसमें शामिल लोगों के बीच पैसा बंटता था.
फायदे के अनुसार निकाला जाता था टेंडर : सेटिंग-गेटिंग के कई मामलों में स्टोरकीपर फाइलों पर आधिकारिक रूप से भले ही कहीं मौजूद नहीं हो, लेकिन सभी ठेका-ठेकेदारी में अच्छा-खासा कट इसे मिल जाता था. टेंडर में सेटिंग करने की तमाम भूमिका निभाने के कारण इसकी कंपनियों के साथ अच्छी जान-पहचान हो गयी थी. इसका भी फायदा इसे काफी हद तक मिलता था.
जिस कंपनी से जिस ठेके में सेटिंग हो जाती थी, उस कंपनी को फायदा पहुंचाने के लिए कंपनी के हिसाब से ही टेंडर निकाला जाता था. इससे ज्यादा से ज्यादा फायदा संबंधित कंपनी को ही मिलता था और उसे टेंडर मिल जाता था. फाइल में उन्हीं बातों का प्रमुखता से उल्लेख किया जाता था, जिससे संबंधित कंपनी को सीधे तौर पर फायदा पहुंचाया जाता था. इसके बदले मोटा कमीशन लिया जाता था. इस काम में स्टोरकीपर विकास कुमार की महारत थी. वह बड़ी चालाकी से पूरे सेटिंग को अंजाम देता था. तभी अध्यक्ष या सचिव के पास फाइल जाने से पहले स्टोरकीपर उन्हें अच्छी तरह से पड़ताल करता था.
इसलिए हो रही विवेक की तलाश
पूरे टॉपर घोटाले में मगध विश्वविद्यालय के पूर्व वीसी और लालकेश्वर प्रसाद के समधी प्रो. अरुण कुमार के बेटे विवेक कुमार की भी तलाश तेजी से चल रही है. सूत्रों से के अनुसार, जैमर का ठेका जिस ‘इंफोटेक’ कंपनी दिया गया था. वह कंपनी विवेक के संपर्क की थी. इसमें भी जमकर कमीशन का खेल चला है.
इतना ही नहीं विवेक ने अपने ससुर के आेहदे का फायदा उठाते हुए अन्य कई टेंडरों में भी जमकर अवैध कमाई की है. इसमें सबसे प्रमुख मार्कशीट और सर्टिफिकेट की प्रिंटिंग का ठेका शामिल है. यह ठेका बेंगलुरु की जिस कंपनी को दिया गया है, उससे भी मोटा कमीशन लिया गया है. यह ठेका गुप्ता रूप से किसी कंपनी को दिया जाता है.
जो कमेटी इस टेंडर को अंतिम रूप देती है, उसमें अध्यक्ष, सचिव के अलावा एक अन्य अधिकारी होते हैं. ओपन टेंडर नहीं होने से यह पूरी तरह से बोर्ड की संबंधित कमेटी पर ही निर्भर करता है कि वह किसे दे. इसका फायदा ही विवेक ने उठाया और सेटिंग करके अपनी कंपनी को दिलवा दिया. सूत्र बताते हैं कि पिछले दो साल से विवेक यह काम कर रहा है. इसमें अध्यक्ष, सचिव से लेकर नीचे तक को कमीशन जाता था. मार्कशीट प्रिंटिंग में भी जमकर गड़बड़ी हुई है.
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