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पीएमसीएच में हड़ताल से नौ सालों में 675 मरीजों की मौत
आनंद तिवारी पटना : पीएमसीएच में हड़ताल जूनियर डॉक्टरों का हथियार बन गया है. छोटी-मोटी बातों पर भी वे मरीजों की जिंदगी दावं पर लगाकर हड़ताल पर चले जाते हैं. अपनी गलती को छुपाने के लिए भी डॉक्टर बार-बार हड़ताल करते हैं. इसका सबसे ज्यादा खामियाजा गरीब मरीजों को उठाना पड़ता है. अक्सर हड़ताल को […]
आनंद तिवारी
पटना : पीएमसीएच में हड़ताल जूनियर डॉक्टरों का हथियार बन गया है. छोटी-मोटी बातों पर भी वे मरीजों की जिंदगी दावं पर लगाकर हड़ताल पर चले जाते हैं. अपनी गलती को छुपाने के लिए भी डॉक्टर बार-बार हड़ताल करते हैं.
इसका सबसे ज्यादा खामियाजा गरीब मरीजों को उठाना पड़ता है. अक्सर हड़ताल को सह देने वाले सीनियर डॉक्टर होते हैं.
पीएमसीएच में ऐसा कोई साल नहीं होगा जब जूनियर डॉक्टर बिना हड़ताल के रहे हों. हड़ताल के दम पर वह स्वास्थ्य विभाग को भी अपने आगे झुका लेते हैं. स्वास्थ्य विभाग हड़ताल खत्म करने के लिए दबाव बनाता है लेकिन डॉक्टरों पर कार्रवाई नहीं करता. 2008 से 2016 तक नौ सालों में हड़ताल की वजह से 675 मरीजों की मौत हो चुकी है. इतनी मौतों के बाद न तो मानवाधिकार विभाग कुछ कार्रवाई करता है और न तो स्वास्थ्य विभाग की ओर से इस दिशा में कोई ठोस पहल की जाती है. जूनियर डॉक्टरों की राजनीति में सीनियर डॉक्टरों का बड़ा हाथ होता है.
यह बात प्रिंसिपल डॉ एसएन सिन्हा भी स्वीकार कर चुके हैं. सीनियर डॉक्टर हड़ताल खत्म कराने नहीं जाते. डॉक्टरों का एसोसिएशन आइएमए और भासा को आगे आना होता है. 2008-09 और 2010 की बात करें तो राजीव रंजन प्रसाद और भासा की पहल पर हड़ताल खत्म हुई. 2011 में आइएमए व सरकार की वार्ता के बाद हड़ताल खत्म की गयी.
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