– आलोक द्विवेदी –
पटना : रेल प्रशासन की लापरवाही के कारण मानक के विपरीत बने यार्ड पीट में गाड़ियों का मेंटेनेंस नहीं हो पा रहा है. गाड़ियों की सही तरह से जांच नहीं होने के साथ ही सफाई पर भी इसका प्रभाव पड़ रहा है.
इस कारण यात्रियों की सुरक्षा खतरे में पड़ने के साथ ही यात्रा के दौरान उन्हें काफी असुविधा का सामना करना पड़ता है. यात्रा शुरू होने से पहले ट्रेनों के परीक्षण व उनकी टेस्टिंग के लिए राजेंद्रनगर टर्मिनल में 17 करोड़ रुपये की लागत से 475 मीटर लंबे पीट का 2009 में निर्माण किया गया था. एलएचबी कोच के लिए बनाये गये इस पीट में मानक का ख्याल नहीं रखा गया है.
पांच पीटों का हुआ है निर्माण : ट्रेनों की सफाई और उनके परीक्षण के लिए राजेंद्रनगर टर्मिनल पर पांच पीटों का निर्माण किया गया है. इनमें पीट नंबर दो व तीन पर सुपर फास्ट व फास्ट ट्रेन का परीक्षण और साफ-सफाई का कार्य होता है. वहीं, पीट नंबर चार व पांच पर फास्ट ट्रेन, लोकल और पैसेंजर ट्रेनों का परीक्षण किया जाता है.
इसी तरह, पीट नंबर एक पर राजधानी और सुपर फास्ट ट्रेनों का मेंटेनेंस किया जाता है. पीट नंबर एक के बंद होने की स्थिति में राजधानी और अन्य सुपर फास्ट ट्रेनों का मेंटेनेंस पीट नंबर दो और तीन पर होता है.
दुर्घटना की बनी रहती है आशंका : राजेंद्रनगर टर्मिनल पर बनाये गये पीट की लंबाई कम और चौड़ाई अधिक है. पीट में गाड़ी खड़े होने के बाद जब परीक्षण और सफाई कर्मचारी उसके अंदर उतर कर मरम्मत का कार्य करते हैं, तो ट्रेन की बोगी उनकी पहुंच से दूर हो जाती है. इसके कारण बोगियों के परीक्षण व उनकी सफाई सही तरह से नहीं हो पाती है. पीट की ऊंचाई कम होने से कर्मचारी के शरीर का ऊपरी हिस्सा पीट से टकराता रहता है.
इस दौरान कर्मचारी जब ट्रेन के नीचे जा कर मशीनों की मरम्मत करते हैं, तो उनका सिर ट्रेन के पहिये के बीच में चला जाता है. इससे दुर्घटना की आशंका बनी रहती है. यही नहीं, पीट पर लाइटिंग की भी कोई व्यवस्था नहीं है. लाइट के अभाव में देर शाम काम करने वाले कर्मचारियों को काफी दिक्कत होती है. अंधेरे में बोगी परीक्षण का कार्य भी ठीक से नहीं हो पाता है.