36.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

यूपी-महाराष्ट्र से कम दर पर गन्ना बेच रहे किसान

परेशानी : यूपी-महाराष्ट्र के किसानों की तुलना में 50 से 100 रुपये प्रति क्विंटल कम कीमत मिल रही है बिहार में बिहार के गन्ना किसानों के लिए खेती लाभकारी साबित नहीं हो रही है. मेहनत अधिक और पैसे यूपी व महाराष्ट्र के किसानों से कम, उस पर से पैसे के भुगतान में दो साल की […]

परेशानी : यूपी-महाराष्ट्र के किसानों की तुलना में 50 से 100 रुपये प्रति क्विंटल कम कीमत मिल रही है बिहार में बिहार के गन्ना किसानों के लिए खेती लाभकारी साबित नहीं हो रही है. मेहनत अधिक और पैसे यूपी व महाराष्ट्र के किसानों से कम, उस पर से पैसे के भुगतान में दो साल की देरी. चीनी मिलों की मनमानी से गन्ना उत्पादक किसानों में गन्ना की खेती को लेकर अब पहले जैसा उत्साह नहीं रह गया है. चंपारण के इलाकों में सैकड़ों किसानों ने गन्ने की खेती छोड़ दी है. नकदी भुगतान नहीं होने से गन्ना किसान धीरे-धीरे इसकी खेती छोड़ते जा रहे हैं. पश्चिमी चंपारण, पूर्वी चंपारण, गोपालगंज और समस्तीपुर जिले के हसनपुर इलाके में सैकड़ों गन्ना किसानों ने ईख की खेती से तौबा कर ली है.
जानकार बताते हैं, समस्तीपुर, पूसा ने बिहार में गन्ना किसानों को ‘बीओ-91’ प्रभेद के बीज जब से मुहैया कराये हैं, तब से सूबे में गन्ना उत्पादन तो बढ़ा है, किंतु किसानों को आज भी उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र के किसानों की तुलना में बिहार के किसानों को बमुश्किल प्रति क्विंटल 40 से 45 रुपये की ही बचत हो पा रही है. गन्ना उद्योग विभाग की पहल पर किसी तरह नवंबर-दिसंबर, 2015 से पांच-पांच रुपये प्रति क्विंटल बोनस मिलना शुरू हुआ है, बावजूद इसके उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र के किसानों की तुलना में 50 से से 100 रुपये प्रति क्विंटल कम ही कीमत मिल रही है.
हालत यह है कि बिहार के किसानों को दो साल के इंतजार के बाद भी बमुश्किल प्रति क्विंटल 40 से 45 रुपये की ही बचत हो पा रही है. राज्य में 3.24 लाख हेक्टेयर में गन्ना की खेती होती है. गन्ना बिहार की इकलौती नकदी फसल है. यही वजह है कि किसान हर वर्ष इसकी खेती में न चाह कर भी रुचि लेते रहे हैं. पूर्वी व पश्चिमी चंपारण,
गोपालगंज, सीवान, सारण, वैशाली, मुजफ्फरपुर, शिवहर, सीतामढ़ी और मधुबनी ईख उत्पादन करने वाले टॉप जिलों में शुमार हैं. लगभग छह लाख किसान इन जिलों में बारहों माह ईख की खेती करते हैं. बिहार में ईख 11 से 12 माह में तैयार हो जाता है. बिहार में नाम मात्र की चीनी मिलें होने के कारण यूपी की सीमा से सटे जिलों के किसान अपना-अपना गन्ना वहां की चीनी मिलों में भी खपा देते हैं.
किंतु अन्य जिलों के किसान सूबे की ही चीनी मिलों में अपना गन्ना बेचने को विवश हैं. कम चीनी मिलें होने के कारण बिहार में आठ से नौ प्रतिशत ही रिकवरी हो पा रही है. पहली बार 2015 में चीनी मिलों ने 10 प्रतिशत रिकवरी करने में सफलता हासिल की है. सिंचाई संकट के कारण समस्तीपुर, गोपालगंज और नरकटियागंज में इस बार कम ईख उत्पादन हुआ है, यदि सिंचाई सुविधा मिली होती, तो रिकवरी रेट और बढ़ता.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें