श्री सिंह ने कहा कि बैंकों के बढ़ते एनपीए की वसूली के लिए सरकार द्वारा कोई पॉलिसी नहीं बनाया जाना व चूककर्ता ऋणियों का नाम प्रकाशित नहीं होना यह स्पष्ट रूप से दरसाता है कि सरकार पब्लिक सेक्टर बैंकों के पक्ष में नहीं है. सरकार पिछले रास्ते से इनका निजीकरण करना चाहती है. बैंकिंग कानून में परिवर्तन, प्राइवेट बैंकों को ज्यादा लाइसेंस निर्गत करना, बैंकों के अत्यधिक एफडीआइ बनाने की अनुमति देना व प्राइवेट सेक्टर बैंकों के रेगुलेटरी नियंत्रण में कमी, सरकार की मंशा को दरसाता है.
एसोसिएशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष सुनील कुमार ने कहा कि सरकार ने पिछले 20 वर्षों से पब्लिक सेक्टर बैंको में किसी भी प्रकार की भरती-नियुक्ति पर रोक लगा रखी थी. इससे टैलेंट की एक बहुत बड़ी शून्यता इस उद्योग में पैदा हो गयी है. उन्होंने कहा कि सभी शनिवार को बंदी की मांग को सभी तर्कों के बावजूद भी आंशिक रूप से माना गया है.
उन्होंने आइबीए पर यह भी आरोप लगाया कि अधिकारियों के मुद्दे पर यह बिल्कुल ही ध्यान नहीं देती है. साथ ही संगठन द्वारा भेजे गये पत्रों की पावती तक नहीं देती है. आम सभा को राष्ट्रीय स्तर के नेता वी. चिदंबर कुमार, संजय दास, आशुतोष चंदेल, बैंक ऑफ इम्पलाइज यूनियन के महासचिव रामेश्वर प्रसाद तथा प्रबंधन की ओर से आंचलिक प्रबंधक एमएनए अंसारी, ज्ञानेश्वर प्रसाद, डी. चंद्रमौली ने भी संबोधित किया.