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अवैध इमारतें, दोषी कौन

पटना शहर की पहचान गुम हो गयी है. जहां धरोहरें हुआ करती थीं, आज वहां बड़ी व ऊंची इमारतें बन गयी हैं. अवैध कॉलोनियों व अपार्टमेंटों से पूरा शहर पटा हुआ है. शहर के किसी भी हिस्से में जाएं, बिल्डिंग बाइलॉज की धज्जियां उड़ाती अट्टालिकाएं आपके स्वागत में दिख जायेंगी. ऐसा नहीं है कि यह […]

पटना शहर की पहचान गुम हो गयी है. जहां धरोहरें हुआ करती थीं, आज वहां बड़ी व ऊंची इमारतें बन गयी हैं. अवैध कॉलोनियों व अपार्टमेंटों से पूरा शहर पटा हुआ है. शहर के किसी भी हिस्से में जाएं, बिल्डिंग बाइलॉज की धज्जियां उड़ाती अट्टालिकाएं आपके स्वागत में दिख जायेंगी. ऐसा नहीं है कि यह अवैध निर्माण एक दिन में तैयार हो गया.

शहर के विस्तार के साथ ही साल-दर-साल इसका निर्माण होता गया, मगर किसी जिम्मेवार अधिकारी ने इस पर ध्यान ही नहीं दिया. उनकी नींद तब टूटी, जब हाइकोर्ट ने इसको लेकर जबरदस्त लताड़ लगायी. हाइकोर्ट के कड़े आदेशों के बाद वर्ष 2013 से इन अवैध भवनों की जांच कर उन पर कार्रवाई शुरू की गयी. इसका असर भी दिखा. अवैध निर्माण बंद हुए ही, पुराने बने अवैध निर्माणों पर भी कार्रवाई की तलवार लटकी दिखी. लेकिन, तत्कालीन नगर आयुक्त के हटते ही कार्रवाई शिथिल पड़ गयी व अवैध भवनों का निर्माण फिर से शुरू हो गया है.

नये नगर आयुक्त जय सिंह के बीते एक साल के कार्यकाल में अवैध भवनों पर कार्रवाई सिर्फ जुर्माना लगाने तक सीमित हो गयी है. जिन अवैध भवनों के निर्माण पर रोक लगाते हुए उनके अवैध हिस्सों को तोड़ने का आदेश दिया गया था, उनमें व्यावसायिक गतिविधियां तक शुरू हो गयी है. इस बार के बिग इश्यू में पढ़िए शहर में अवैध निर्माण की वजहों की पड़ताल करती प्रभात रंजन की रिपोर्ट.

नरेंद्र मिश्रा के पीआइएल ने हटाया परदा

निगम क्षेत्र में बढ़ते अवैध निर्माण पर अंकुश लगाने को लेकर नरेंद्र मिश्रा ने वर्ष 2013 में राज्य सरकार के खिलाफ हाइकोर्ट में सीडब्लूजेसी 8152/13 केस फाइल किया. इसकी सुनवाई के दौरान जब परत-दर-परत अवैध निर्माण की पोल खुली, तो मई 2013 में हाइकोर्ट सख्त हुआ.

उसने नगर निगम को कार्रवाई का आदेश दिया. इसके बाद अगले दो वर्षों तक निगम ने अभियान चला कर निर्माणाधीन अपार्टमेंटों व इमारतों की स्थल जांच के साथ-साथ 548 अपार्टमेंटों पर निगरानीवाद केस दर्ज किया.

निगरानीवाद केस की सुनवाई लगातार नगर आयुक्त के कोर्ट में चली और 180 निगरानीवाद केसों पर नगर आयुक्त ने अंतिम फैसला भी सुनाया, मगर वर्ष 2015 में जब हाइकोर्ट में यह केस (सीडब्ल्यूजेसी 8152/13) खत्म हुआ, तो अवैध निर्माण पर रोक लगाने में निगम प्रशासन भी सुस्त हो गया. यही कारण है कि एसपी वर्मा रोड के शाही लेन में पेरी विद्या कंस्ट्रक्शन के निर्माणाधीन अपार्टमेंट पर रोक लगने के बावजूद जी+5 फ्लोर का अपार्टमेंट बनाया गया. इस अवैध निर्माण को लेकर विधान परिषद में विभागीय मंत्री से सवाल पूछा गया, जिसका मंत्री ने गलत जवाब दिया. इससे सदन नाराज भी हुआ.

जानकी विला अपार्टमेंट से उठा था मामला

बोरिंग कैनाल रोड के राय जी की गली में स्थित जानकी विला अपार्टमेंट से अवैध निर्माण का मामला उठा था. इस अपार्टमेंट का मामला कोर्ट पहुंचा, तो कोर्ट ने कहा कि यही एक बिल्डिंग क्यों, पूरी राजधानी में अवैध निर्माण चल रहा है और अवैध निर्माण पर कार्रवाई का आदेश दिया था. दरअसल, राय जी की गली 20 फुट से कम चौड़ी है और बिल्डर ने जी+4 फ्लोर का अपार्टमेंट निर्माण कर लिया. इस बिल्डिंग पर निगरानीवाद केस दर्ज किया गया और नगर आयुक्त ने ऊपर से एक फ्लोर तोड़ने के साथ-साथ अन्य विचलन को भी तोड़ने का आदेश दिया.

इस फैसले के खिलाफ बिल्डर ट्रिब्यूनल व हाइकोर्ट तक गये, लेकिन कहीं राहत नहीं मिली. इसके बाद निगम प्रशासन ने इस बिल्डिंग के अवैध हिस्से को अपने संसाधन से तोड़ा. यह पहली और अब तक की आखिरी अवैध इमारत रही, जिस पर निगम का हथौड़ा चला.

बैन के बाद भी होता रहा निर्माण कार्य

तत्कालीन नगर आयुक्त कुलदीप नारायण ने डाकबंगला चौराहा स्थित मेरिडियन कंस्ट्रक्शन का शॉपिंग मॉल, किदवईपुरी में तिरूपति होम्स के नेस इन होटल, बुद्ध मार्ग में डुमरिया इस्टेट इंटरप्राइजेज के अपार्टमेंट, न्यू पाटलिपुत्रा कॉलोनी में मुंडेश्वर बिल्डर्स एंड डेवपलर्स के मुंडेश्वरी अपार्टमेंट, खाजपुरा शिव मंदिर के समीप कर्पूरा कंस्ट्रेशन के अपार्टमेंट, पीएनटी कॉलोनी में तिरूपति होम्स का अपार्टमेंट, एएन कॉलेज के सामने, कंकड़बाग में केंद्रीय विद्यालय के समीप बन रहे अपार्टमेंट सहित 180 अपार्टमेंटों के अवैध हिस्सों को तोड़ने का आदेश दिया था. इन फैसलों के खिलाफ बिल्डर ट्रिब्यूनल में भी अपील की गयी, बाद में दर्जनों मामलों में फैसले भी आये. ट्रिब्यूनल ने नगर आयुक्त के फैसले को बरकरार रखा. इसके बावजूद इन अपार्टमेंटों में निर्माण कार्य जारी रखा और दर्जनों इमारतों में व्यावसायिक गतिविधियां शुरू भी हो गयी हैं.

तब निर्माण पर लग गया पूर्ण विराम

सीडब्लूजेसी 8152/13 केस की निगरानी प्रोपर हाइकोर्ट कर रहा था और समय-समय पर केस की प्रगति रिपोर्ट भी मांगी जा रही थी. इसका परिणाम यह हुआ कि तत्कालीन नगर आयुक्त कुलदीप नारायण ने अभियंताओं की कमी के बावजूद दूसरे विभाग से अभियंताओं को प्रतिनियुक्त किया गया और निर्माणाधीन अपार्टमेंटों की स्थल जांच शुरू करायी. अभियंताओं की आठ टीमें बनायी गयीं और निर्माणाधीन इमारतों की जांच के साथ-साथ अनियमितता मिलने पर तत्काल निगरानीवाद केस दर्ज होता रहा. इसका परिणाम यह हुआ कि रियल इस्टेट से जुड़े लोगों में हड़कंप मच गया और बिल्डिंग बाइलॉज के उल्लंघन कर बननेवाली निर्माणाधीन अपार्टमेंट पर पूर्ण विराम लग गया.

रोक लगने के बाद भी निर्माण कार्य जारी रखने के आरोप में तत्कालीन नगर आयुक्त कुलदीप नारायण ने मेरीडियन कंस्ट्रक्शन, तिरूपति होम्स और एएन कॉलेज के सामने के अपार्टमेंट को बना रहे बिल्डर पर प्राथमिकी दर्ज करायी थी. मेरीडियन कंस्ट्रक्शन व तिरूपति होम्स पर दो-दो प्राथमिकी दर्ज की गयी, लेकिन कार्रवाई सिफर ही रही.

अवैध निर्माण पर निगरानी वाद केस दर्ज होने के साथ-साथ बिल्डर को निर्माण कार्य पर रोक लगाने का नोटिस दिया जाता है. इस नोटिस को एक्ट में किये प्रावधान के अनुसार स्थानीय थाने को दिया जाता है, ताकि अवैध निर्माण पर प्रोपर नजर रख सके. थाना स्तर पर निगरानी वाद केस की सूची एसएसपी को भी भेजी जाती है, ताकि समुचित कार्रवाई की जा कसे. हालांकि, यह सब कागजी प्रक्रिया है, लेकिन हकीकत में निर्माण कार्य जारी ही रहता है. यही वजह है कि रोक के बाद भी बिल्डिंग बाइलॉज का उल्लंघन कर बन रहे भवन देखते-देखते तैयार भी हो गया.

फ्रेजर रोड पर स्थित सेंट्रल मॉल पर निगरानीवाद केस दर्ज होने के साथ-साथ निर्माण पर रोक लगाया गया था. इस रोक के बावजूद निर्माण कार्य जारी रहा और मॉल का विधिवत उद्घाटन भी किया गया. इसको लेकर मामला हाइकोर्ट पहुंचा और हाइकोर्ट ने जिला प्रशासन को सख्त निर्देश दिया कि शाम के छह बजे तक बिजली कनेक्शन काट दें. हाइकोर्ट के आदेश के बाद निगम, पुलिस व जिला प्रशासन की टीम पहुंची और चार घंटों तक हाइ प्रोफाइल ड्रामा चला और बिजली कनेक्शन काट दिया गया. आज भी हाइकोर्ट के आदेश पर 24 घंटे मजिस्ट्रेट प्रतिनियुक्त किये गये हैं, जो तीन पालियों में ड्यूटी कर रहे हैं. हालांकि, मॉल के ऊपर के दो तल्ले आज भी बंद है.

मई, 2013 से जनवरी, 2015 तक खूब अवैध निर्माण पर कार्रवाई की गयी. इन अवधि में 548 निगरानीवाद केस दर्ज किया गया और 180 से ज्यादा केस पर नगर आयुक्त कोर्ट से फैसला सुनाया गया. इससे पहले अवैध निर्माण पर कभी ध्यान भी नहीं दिया गया और आज भी ध्यान नहीं दिया जा रहा है. स्थिति यह है कि तत्कालीन नगर आयुक्त कुलदीप नारायण के जाने के बाद से अब तक 130 नये निगरानीवाद केस दर्ज किये गये और 20 से 25 केस में नगर आयुक्त का अंतिम फैसला दिया गया है. इनमें अधिकतर मामलों में बिल्डिंग के अवैध हिस्सों पर जुर्माना लगा कर उसको लीगलाइज किया जा रहा है.

एसके पुरी स्थित भूखंड को आवासीय कॉलोनी के रूप में विकसित किया गया, लेकिन समय के साथ कॉलोनी का स्वरूप भी बदल गया और बड़ी-बड़ी इमारत के साथ व्यावसायिक गतिविधियां भी संचालित होने लगी.

हाइकोर्ट के आदेश के बाद निगम प्रशासन ने एसके पुरी के भूखंड पर बनने वाली इमारतों पर भी निगरानीवाद केस दर्ज किया. निगरानीवाद केस के फैसले में तत्कालीन नगर आयुक्त ने चार भूखंडों को अपने कब्जे में करने का आदेश भू-संपदा पदाधिकारी को दिया. इसमें एचडीएफसी बिल्डिंग, आरती बनर्जी का भूखंड, बुद्धा इन होटल व स्व डुमरलाल बैठा के भूखंड शामिल हैं, लेकिन आज तक एक भी भूखंड को निगम अपने कब्जे में नहीं ले सका.

सख्त धाराओं के साथ की जायेगी प्राथमिकी : जय सिंह

नगर आयुक्त जय सिंह ने बताया कि किसी अवैध निर्माण पर जैसे ही निगरानीवाद केस होता है, कंस्ट्रक्शन वर्क पर रोक लग जाती है. इसकी सूची संबंधित थाने को भेज दी जाती है, ताकि अवैध निर्माण पर नजर रखा जा सके. निगरानीवाद केस खत्म होने के बाद निगम से एनओसी लेकर ही निर्माण कार्य जारी करना है, लेकिन होता नहीं है. हालांकि, पुलिस अपनी जिम्मवारी ठीक से नहीं निभाती है.

वहीं, निगम प्रशासन में भी कमी है, जिसका लाभ बिल्डर उठा रहा है. निगम में 11 कनीय अभियंता कार्यरत है. इस अभियंता से क्या-क्या काम लिया जाये. निगम प्रशासन द्वारा अवैध निर्माण के आरोप में प्राथमिकी करता है, तो आइपीसी की धारा 188 के तहत केस दर्ज किया जाता है. इससे मामूली प्रावधान होता है. इससे बिल्डरों पर प्राथमिकी होने के बावजूद बेधड़क निर्माण करता है. इसको लेकर अवैध निर्माण करने वाले बिल्डरों को आइपीसी की धारा 120बी, 323 और 429 के तहत प्राथमिकी दर्ज करने का प्रावधान करेंगे, ताकि बिल्डरों में डर बना रहे.

जिम्मेवारी निभायी गयी होती, तो नहीं होता अवैध निर्माण

वास्तुविद रूपक कुमार कहते हैं कि नक्शा स्वीकृति का अधिकार वास्तुविदों को दिया गया, लेकिन स्वीकृत नक्शे के अनुरूप निर्माण कार्य हो रहा है या नहीं. इसकी जांच निगम प्रशासन को करनी थी, लेकिन जांच हुई ही नहीं. इससे अवैध निर्माण धड़ल्ले से होने लगा.

इतना ही नहीं, निगरानीवाद केस दर्ज होने के बाद निर्माण कार्य पर रोक लग जाती है. निगरानीवाद दर्ज भवनों का निर्माण शुरू नहीं हो, इसकी जिम्मेवारी निगम प्रशासन व स्थानीय पुलिस की जिम्मेवारी होती है. हालांकि, स्थानीय पुलिस की संरक्षण में अवैध निर्माण जारी ही रहा और निगम प्रशासन ध्यान नहीं दिया. यही कारण है कि निगरानीवाद केस दर्ज के बाद भी अवैध निर्माण पूरा किया जा रहा है.

निगम प्रशासन, वास्तुविद और पुलिस अपनी-अपनी जिम्मेवारी निभायी होती, तो स्थिति नहीं होती. उन्होंने कहा कि हालांकि अब नक्शा स्वीकृति में ज्यादा गड़बड़ी होने की आशंका नहीं है. वास्तुविद रूपक कहते हैं कि बाइलॉज 2014 के अनुसार सभी सड़कों की चौड़ाई सार्वजनिक कर दी गयी है और तय अनुसार ही वास्तुविदों को नक्शा बनाना है. इस नक्शे को निगम प्रशासन को स्वीकृत करना है. उन्होंने कहा कि नगर निगम की इस प्रक्रिया से बाइलॉज का उल्लंघन कर नक्शा स्वीकृत की आशंका कम हो गयी है. समझिये नहीं के बराबर, फिर भी निगम के अधिकारियों को सतर्क रहने की जरूरत है.

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