28.8 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

जान जोखिम में डाल सामान ढोने वाले ऑटो में स्कूल जाते हैं लाड़ले

ऑटो और वैन में ठूंस दिये जाते हैं नन्हे-मुन्ने बच्चे पटना : पटना के निजी स्कूल नियम तोड़ने में काफी आगे रहते हैं. भले ही बच्चों की जान जोखिम में पड़ जाये, लेकिन अतिरिक्त कमाई के लिए ये स्कूल किसी भी स्तर तक जाने से गुरेज नहीं करते हैं.ताजा मामला दीघा स्थित सरस्वती एकेडमी, बाघ […]

ऑटो और वैन में ठूंस दिये जाते हैं नन्हे-मुन्ने बच्चे
पटना : पटना के निजी स्कूल नियम तोड़ने में काफी आगे रहते हैं. भले ही बच्चों की जान जोखिम में पड़ जाये, लेकिन अतिरिक्त कमाई के लिए ये स्कूल किसी भी स्तर तक जाने से गुरेज नहीं करते हैं.ताजा मामला दीघा स्थित सरस्वती एकेडमी, बाघ कोठी का है. यहां पढ़नेवाले बच्चे सामान ढोनेवाले ऑटो से स्कूल आते-जाते हैं. खुले ऑटो में बीच में एक तखत रखा होता है, जिस पर बच्चे बैठे रहते हैं. एक छात्र आदित्य ने बताया कि वह और उसके साथी हर दिन ऐसे ही स्कूल जाते हैं.
तीन की जगह छह बैठाते है ऑटो में : अन्य स्कूल के ऑटो में भी स्थिति काफी दयनीय है.छोटे ऑटो में तीन और बड़े ऑटो में छह बच्चे को बिठाया जाना है. लेकिन छोटे ऑटाे में तीन की जगह पांच (तीन पीछे और दो आगे ड्राइवर के बगल में) बच्चे को ऑटो वाले बैठाते हैं. वहीं बड़े ऑटो में छह की जगह 12 बच्चे बैठे हुए नजर आते हैं. छह बच्चे बीच में और पीछे तीन या चार बच्चे को बिठाया जाता है. वहीं ड्राइवर के बगल में तीन बच्चे बैठे होते हैं. कई आॅटो में तो इससे भी अधिक बच्चे बैठे रहते हैं.
कभी भी हो सकता है हादसा
ऑटो में इस तरह बच्चों को ठूंस कर बिठाये जाने से हर दिन हादसे का खतरा बना रहता है. लेकिन इसकी चिंता न तो स्कूल प्रशासन को है और न ही अभिभावकों को. कई बार ट्रैफिक पुलिस की ओर से कुछ नियम बनाये भी गये तो उसे फाॅलो नहीं किया जा रहा है. कई ऑटो में तो बच्चे लटके हुए भी नजर आते हैं.
भाड़ा बढ़ाते हैं, जगह नहीं देते : ऑटो के अलावा बस में भी स्टूडेंट्स खड़े हो कर घर आते-जाते हैं. कई स्कूल बसों में सीटों की संख्या से ज्यादा बच्चों को लाया जाता है. हालांकि भाड़ा बढ़ाने में कभी कोताही नहीं बरती जाती है. प्रशासन जब सख्ती करता है तो कुछ दिनों तक मामला ठीक किया जाता है, लेकिन, बाद में फिर सब ढाक के तीन पात ही रहता है.
पटना : अंशुमान इस बार पांचवीं क्लास में गया है. स्कूल सुबह 6.30 बजे खुल जाता है. स्कूल समय पर पहुंचने के लिए उसे सुबह साढ़े चार बजे ही मम्मी जगा देती है. फ्रेश होने और तैयार होने में अंशुमान को एक घंटा लग जाता है. साढ़े पांच बजे तक उसे बस स्टॉप पहुंच जाना होता है. स्कूल में पढ़ाई करने के बाद जब वह घर लौटता है तो तीन बज जाते हैं. इस नये सत्र में वह दो दिन स्कूल जा पाया और तीसरे ही दिन बीमार हो गया.
ऐसी स्थिति सिर्फ अंशुमान की नहीं बल्कि स्कूल जाने वाले तमाम बच्चों की है.11 फरवरी को डीएम ने दिया था निर्देश : डीएम ने 11 फरवरी को हुई बैठक में तमाम स्कूलों को आठ बजे के बाद स्कूल खोलने का निर्देश दिया था. लेकिन, डीएम के इस निर्देश की खुलेआम धज्जियां उड़ायी जा रही हैं. टाइमिंग के मामले में स्कूलों की मनमानी जारी है.स्कूल प्रशासन से डीएम ने कहा था कि बच्चों की नींद पूरी नहीं होती है. बच्चों के लिए आठ से 10 घंटे की नींद बेहद जरूरी है.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें