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इन दिनों पैरेंट्स का समय बीत रहा किताबों की दुकानों पर

इन दिनों पैरेंट्स का समय बीत रहा किताबों की दुकानों पर लाइफ रिपोर्टर.पटनाभइया मैंने एलकेजी की बुक लिस्ट दी थी, अभी तक बुक्स नहीं मिल… अरे भाई आपने बुक्स तो दे दी, लेकिन कॉपी बाकी है… जल्दी निकाल दीजीए, दो घंटे से यहां खड़ा हूं… इन दिनों शहर की सभी बुक्स शॉप में लोगों की […]

इन दिनों पैरेंट्स का समय बीत रहा किताबों की दुकानों पर लाइफ रिपोर्टर.पटनाभइया मैंने एलकेजी की बुक लिस्ट दी थी, अभी तक बुक्स नहीं मिल… अरे भाई आपने बुक्स तो दे दी, लेकिन कॉपी बाकी है… जल्दी निकाल दीजीए, दो घंटे से यहां खड़ा हूं… इन दिनों शहर की सभी बुक्स शॉप में लोगों की कुछ ऐसी ही आवाजें सुनाई दे रही हैं. सुबह से लेकर शाम तक शहर के कई पैरेंट्स बुक्स, यूनीफॉर्म, स्टेशनरी की दुकानों में चक्कर काट रहे हैं. कभी बुक लिस्ट दिखा कर बुक की मांग रहे हैं, तो कभी स्कूल का नाम बता कर. एक तो अप्रैल का महीना वैसे ही गरम होता है, ऊपर से इतनी महंगी बुक्स ने पैरेंट्स के और ज्यादा पसीने छुटा दिये हैं. सभी पैरेंट्स अपने बच्चों के बुक्स, कॉपी जैसी कई नयी-नयी चीजों की प्राइज देख कर हैरान-परेशान हैं.बच्चों की पढ़ाई ने बढ़ायी पैरेंट्स की परेशानी बच्चों की एग्जाम हो, एडमिशन हो या फिर नये सेशन में जाने की बारी, इन सभी मौकों पर स्टूडेंट्स से ज्यादा पैरेंट्स की परेशानी बढ़ जाती है, जो इन दिनों शहर में खूब देखने को मिल रही है. पैरेंट्स इन दिनों धूप में दुकानों को बाहर लाइन लगा कर खड़े हैं. ऐसे में उन्हें गुस्सा भी आ रहा है, तो खुद को शांत रखने की कोशिश कर रहे हैं, ताकि लड़ाई न हो जाये. इतना ही नहीं, कई लोग तो ऑफिस से छुट्टी लेकर या अपने अन्य कामों को रोक बच्चों के नये क्लास में या नये स्कूल में जाने की तैयारी कर रहे हैं. बुक्स की लंबी-लंबी लिस्ट ले कर दुकान के बाहर खड़े हैं. इस बारे में कई लोगों ने बताया कि धूप में घर से बाहर निकलने का मन नहीं करता है, लेकिन दुकान में इतनी भीड़ है कि घंटों यहां खड़े होना पड़ रहा है. बजट पर पड़ रहा असरइस महीने में पैरेंट्स के बजट पर काफी ज्यादा असर पड़ रहा है. इस बारे में शहर के कई पैरेंट्स ने कहा कि अप्रैल के महीने में अन्य महीनों से 40 प्रतिशत से भी ज्यादा खर्च हो जाता है. इसका असर महीने के बजट पर पड़ रहा है, क्योंकि अप्रैल में न सिर्फ बच्चों के लिए बुक्स, कॉपी या यूनिफॉर्म खरीदना पड़ता है, बल्कि अप्रैल में एक साल की एनुअल फीस भी जमा करनी पड़ती है. साथ ही नये सेशन में जाने से फीस में 30 से 40 प्रतिशत तक बढ़ोतरी हो जाती है. यह नियम शहर के कई स्कूलों में है, जिसमें नये क्लास में जाते ही फीस अचानक से बढ़ जाती है. बहुत महंगी है पढ़ाईअपने तीन बच्चों को डीएवी स्कूल में पढ़ाने वाले बेली रोड के आनंद कहते हैं कि इन दिनों सबसे महंगी चीज पढ़ाई है, जो एक व्यवसाय के रूप में चल रही है. अब शिक्षा भी बिजनेस बन गया है. जिस स्कूल में लोग अपने बच्चों को पढ़ाई के लिए भेजते हैं, वे पढ़ाते कम हैं और ठगते ज्यादा हैं. उन्हें स्कूल की फीस बढ़ाने में थोड़ा भी वक्त नहीं लगता है. अभी हाल में मैंने तीनों बच्चे की फीस 25 हजार रुपये स्कूल में जमा की है. वहीं अपने बच्चे के लिए बुक्स खरीद रही रानी देवी कहती हैं कि स्कूल में हर महीने पैसे जमा करने पड़ते हैं. हम लोगों का वक्त ही कुछ और था. उस वक्त पढ़ाई के लिए साल भर में जितने रुपये खर्च होते थे, अब महीने भर में उससे कही ज्यादा खर्च हो जाते हैं. शहर के कई लोगों का यही कहना है कि पढ़ाई अब पैसों का खेल है. ऐसे में किताब की दुकानें हो या स्कूल का कैंपस, दोनों जगह पूरे पैैसे लिये जा रहे हैं फिर भी पैरेंट्स बच्चों की पढ़ाई से संतुष्ट नहीं हैं. यूनीफॉर्म व स्टेशनरी की हो रही बिक्रीअप्रैल शुरू होते ही शहर की सभी बुक्स शॉप में बिक्री बढ़ गयी है. दुकानों में सुबह से लेकर शाम तक ग्राहकों की संख्या बढ़ती जा रही है. इस वजह से कई दुकानदारों ने अपने यहां एक महीने के लिए स्टाफ की संख्या भी बढ़ा दी है, ताकि लोगों को समय पर सामान मिल सके. बुक्स के अलावा यूनीफॉर्म की बिक्री भी खूब हो रही है. शहर के कई कपड़ों की दुकानों में स्कूल यूनिफॉर्म मिल रहे हैं, जिसकी बिक्री भी खूब हो रही है. खास कर छोटे बच्चों के यूनिफॉर्म को खरीदने का सिलसिला जारी है. इस बारे में शॉप से यूनिफॉर्म की शॉपिंग कर रही पूजा सिंह कहती हैं कि मैं अपनी बेटी शिवांगी के लिए स्कूल यूनिफॉर्म खरीद रही हूं. इसके अलावा बुक्स, बैग जैसे आइटम भी खरीदने हैं. वहीं अपने बेटे शुभम को यूनिफॉर्म ट्राइ कराते हुए रानी देवी कहती हैं कि स्कूल यूनिफॉर्म का रेट भी बढ़ गया है. ऊपर से सेशन चेंज होते ही बच्चों का यूनिफॉर्म भी चेंज हो गया है, इसलिए इस साल बेटे के लिए नया यूनिफॉर्म खरीदना पड़ रहा है. ———————–इन कामों में लगे हैं पैरेंट्स- बुक्स और कॉपी खरीद करने में – यूनिफॉर्म, बैग जैसे कई चीजों की कर रहे हैैं शॉपिंग- फीस के साथ एनुअल फीस जमा कर रहे हैं – नये एडमिशन में हो रहा है मोटा खर्च- एक ही स्कूल में नये सेशन में जाने पर बढ़ रहे हैैं खर्च- स्कूल में कई तरह के लिए जा रहे हैं चार्ज———————-कोटइस महीने हम लोगों को बिलकुल भी खाली टाइम नहीं मिलता है, क्योंकि मार्च के अंत में ही शहर के सभी स्कूल के सिलेबस की सभी किताबें मंगा ली जाती हैं, ताकि पैरेंट्स को परेशानी न हो. पूरे साल में सबसे ज्यादा भीड़ अप्रैल में होती है. इस वजह से हमारी सभी ब्रांचेज में इन दिनों ग्राहकों की भीड़ बढ़ती जा रही है. लोग बुक्स, यूनिफॉर्म के अलावा भी जरूरत की चीजें खरीद रहे हैं.उदय सिंह, ओनर, ज्ञान गंगास्कूल हो या दुकानदार इन दिनों सभी की मनमानी एक पैरेंट होने के नाते झेलनी पड़ रही है. क्योंकि यह हमारे बच्चे के भविष्य का सवाल है. यहां दुकानवाले बुक्स के दाम बढ़ाये जा रहे हैं. वहां स्कूल वाले फीस के अलावा कई तरह के चार्ज ले रहे हैं. ऐसे में पैसे खर्च करने के साथ-साथ मेंटली भी परेशान होना पड़ रहा है. तीन घंटे खड़े होने पर बुक्स मिली है.श्रीनिवास, कदम कुआंमैं दो दिन पहले स्कूल की फीस जमा कर के आयी हूं. मेरे दो बच्चे हैं. पहला आठवीं क्लास में और दूसरा चौथी में. दोनों की बुक्स करीब सात हजार रुपये में आयी है. इन चीजों के अलावा भी कई छोटे-मोटे खर्चे हैं, लेकिन पैरेंट्स सभी तरह की जिम्मेदारी उठाते हैं, ताकि बच्चे अच्छे से पढ़ाई कर सकें. इन खर्चों से बचने का कोई उपाय नहीं है. घर की चीजों में ही कटौती करनी पड़ती है. नम्रता, बुद्धा कॉलोनी

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