पटना: साल 1970-71. पटना समाहरणालय घाट. गंगा किनारे स्थित मंदिर में रामसेवक स्वामी के साथ राधानाथ स्वामी घंटों बातचीत करते थे. अब यह मंदिर दो हिस्सों में बट गया है. गंगा भी रूठ गयी है. घाट से नदी की धार दिखती भी नहीं है. जहां पहले पानी ही पानी नजर आता था, अब वहां खेत नजर आते हैं. मंदिर अभी भी विद्यमान है. मंदिर में राधा-कृष्ण की मूर्ति है.
बढ़ा रहे परंपरा
मंदिर के बड़े पुजारी सुदर्शन महाराज बताते हैं कि 1970-71 के समय रामसेवक स्वामी यहां रहते थे. उनकी समाधि के बाद दूसरे पुजारी आये. अब वह इस परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं. वर्तमान में 70 वर्षीय रामसेवक दास पूजा-पाठ का काम देखते हैं. मंदिर के ऊपर अभी भी मेडिटेशन केंद्र है. कभी लोग यहां घंटों आकर बैठते थे और समाधि लगाते थे, लेकिन हाल के दिनों में कुछ असामाजिक तत्वों की अड्डेबाजी के कारण इसे बंद कर दिया गया है.
रामसेवक दास बताते हैं कि पटना जिले के पाली स्थित तरेत मठ से इस मंदिर का जुड़ाव रहा है. राम सेवक दास जी और नारायण दास के कई शिष्यों का अब भी इस मंदिर से संपर्क बना हुआ है. मंदिर भी दो भागों में बंट गया है. दूसरे मंदिर में भगवान शिव की पूजा होती है. यहां के पुजारी अलग हैं. राधानाथ स्वामी ने अपनी पुस्तक ‘द बुक जर्नी होम्स’ में पटना प्रवास का जिक्र किया है. स्वामी बताते हैं कि पटना के नारायण प्रसाद जी उनके घनिष्ठ मित्र थे. एक्स रे क्लीनिक चलानेवाले किसी एक डॉक्टर का भी राधानाथ स्वामी ने अपनी पुस्तक में उल्लेख किया है. राधानाथ स्वामी लिखते हैं, इस सज्जन ने अपना धर्म बदल लिया और इसलाम धर्म अपना लिया था. एक्स रे क्लिनिक वाले डॉक्टर का तर्क था कि वह उस धर्म को नहीं मानते, जो जन्म के आधार पर लोगों के साथ पक्षपात करे.
आपसे आग्रह
‘प्रभात खबर’ कार्यालय में मंगलवार व बुधवार को भारी संख्या में पास के लिए इच्छुक श्रोता आये. चूंकि पास पहले ही बंट चुके थे, इसलिए हमें क्षमा मांगनी पड़ी. श्रोताओं से आग्रह है कि वे जिस क्रममें आयेंगे, उसी क्रम में बैठने की व्यवस्था है. एएन सिन्हा सामाजिक अध्ययन शोध संस्थान के हॉलके अलावा बाहर में प्रोजेक्टर की भी व्यवस्था की गयी है, जिसके जरिये राधानाथ स्वामी काव्याख्यान सुन सकेंगे.