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1400 साल पुराने इस अनमोल ‘खजाने’ को अब दुनिया देखेगी

अजय कुमार पटना : ajay.kumar@prabhatkhabar.in खच्चर की पीठ पर लादकर लाये गये ‘खजाने’ को अब दुनिया देखेगी. आभासी प्लेटफार्म के जरिये इसे ग्लोबल किया जायेगा. सातवीं सदी का यह अनमोल खजाना 1400 साल बाद दुनिया के सामने होगा. हम बात कर रहे हैं तिब्बत से लाये गये बौद्ध ग्रंथ की पांडुलिपियों की. इसके पेजों की […]

अजय कुमार
पटना : ajay.kumar@prabhatkhabar.in खच्चर की पीठ पर लादकर लाये गये ‘खजाने’ को अब दुनिया देखेगी. आभासी प्लेटफार्म के जरिये इसे ग्लोबल किया जायेगा. सातवीं सदी का यह अनमोल खजाना 1400 साल बाद दुनिया के सामने होगा. हम बात कर रहे हैं तिब्बत से लाये गये बौद्ध ग्रंथ की पांडुलिपियों की.
इसके पेजों की तादाद सात लाख 28 हजार है. इसे 1929 से 1938 के बीच राहुल सांकृत्यायन ने तिब्बत से लाया था. दस साल में तिब्बत की उन्होंने चार यात्राएं की थीं. हर यात्रा में उन्होंने इन पांडुलिपियों को अपने साथ खच्चर पर लाद कर लाया था. इन ग्रंथों की संख्या करीब दस हजार थी.इसमें बुद्ध के वचन हैं और ये पांडुलिपि तिब्बती में है. खुद राहुल जी रिचर्स सोसयटी में रहकर अध्ययन किया करते थे. सोसायटी 1915 में बनी थी.
इन पांडुलिपियों की सात लाख 28 हजार पेजों का डिजिटलाइजेशन हो चुका है. पुराण, योगवशिष्ठ, उपनिषद, कुरान और महाभारत (कृष्ण जन्म रहस्य) जैसे ग्रंथों (रेयर बुक्स) को डिजिटलाइज करना बाकी है. इसमें महाभारत वाली पांडुलिपि को छोड़कर बाकी पर्सियन भाषा में है. 15 वीं सदी के पक्षधर मिश्र का विष्णु पुराण भी डिजिटल होगा जो ताल पत्र पर लिखा हुआ है.
बिहार पहुंची इन पांडुलिपियों की नये जमाने में दूसरी यात्रा शुरू होने वाली है. तिब्बत से लायी गयी पांडुलिपि को डिजिटलाइज करने के लिए राष्ट्रीय अभिलेखागार के साथ बीते साल करार हुआ था.
अभिलेखागार ने 18 लाख रुपये दिये थे और छह लाख राज्य सरकार ने दिये थे. रिसर्च सोसायटी ने रेयर बुक्स को डिजिटलाइज करने का प्रस्ताव राष्ट्रीय अभिलेखाकार को प्रस्ताव सुपुर्द किया है. इसके लिए 50 लाख रुपये की जरूरत बतायी गयी है. लेकिन इन पांडुलिपियों का अंगरेजी, हिंदी, संस्कृत और अरबी-फारसी में अनुवाद होना बाकी है.
20 वीं सदी का सबसे बड़ा हेरिटेज
तिब्बती भाषा के बौद्ध ग्रंथों को 20 वीं सदी का सबसे बड़ा हेरिटेज माना गया है. इन ग्रंथों के अध्ययन से पता चलता है कि 7 वीं से 11 वीं सदी के दरम्यान बहुत सारे बौद्ध भिक्षु तिब्बत गये थे और इस क्रम में बुद्ध के दर्शन का उन्होंने प्रचार-प्रसार किया. ऐसा माना जाता है कि बुद्ध के इन विचारों को नालंदा और विक्रमशिला के बौद्ध विद्वानों ने संस्कृत भाषा में तैयार किया था.
प्रकारांतर में मूल पांडुलिपियां नष्ट हो गयीं और संस्कृत से अनुदित तिब्बती भाषा वाली पांडुलिपि राहुल जी के जरिय बिहार पहुंच गयी. इसके कुछ पेज पर सोने के पानी से शब्दों को उकेरा गया है. इन दुर्लभ ग्रंथों का कैटलॉग तैयार हो चुका है. सारनाथ से आये पांच बौद्ध विद्वानों ने आठ महीने की कड़ी मेहनत से इसे तैयार किया. ये कैटलॉग तिब्बती, अंगरेजी, संस्कृत और हिंदी में तैयार किये गये हैं.
कैसे-कैसे ग्रंथ
तिब्बती भाषा में बुद्ध के मूल विचार वाले 810 ग्रंथ हैं. 2400 ग्रंथ तो ऐसे हैं जिस पर तिब्बती विद्वानों के बुद्ध के मूल दर्शन पर कमेंट्री है. 1619 ऐसे ग्रंथ हैं जिसमें तंत्र, दर्शन, आपबीती, जीवन के रहस्य, पूजादि के विधि-विधान पर केंद्रीत हैं. 3500 सौ ग्रंथ भारतीय बौद्ध विद्वानों की टिप्पणी पर आधारित हैं.
बिहार को मिलेगी अलग पहचान
बुद्ध के दर्शन से भरे-पूरे इस पांडुलिपि के ऑनलाइन होने से बिहार को एक खास पहचान मिलेगी. यह अनमोल खजाना दुनिया भर में बौद्ध धर्मावलंबियों को लुभाता रहा है. खुद दलाई लामा इन पांडुलिपियों को देख चुके हैं. बुद्ध की इस विरासत को देखने-समझने की ललक दुनिया भर में फैले बौद्ध मतावलंबियों में बनी हुई हैं.
इसी महीने नेट पर अपलोड होगी पांडुलिपि
पटना संग्रहालय के निदेशक जेपीएन सिंह ने बताया कि इसके लिए बेल्ट्रॉन ने सर्वर लगाया है. राहुल जी ने जिन पांडुलिपियों को लाया था, उसे ऑनलाइन करने की तैयारी अंतिम चरण में है.
डिजिटल हो चुकी पांडुलिपियों का डाटा-बेस तैयार हो रहा है. हमारी कोशिश है कि यह काम इसी महीने में हो जाये क्योंकि राहुल जी की जन्म तिथि (9 अप्रैल 1893) और महाप्रयाण की तारीख (14 अप्रैल 1963) इसी महीने पड़ती है. उनको याद करने का यह बेहतर तरीका होगा कि कठिन तप से लायी गयी इन पांडुलिपियों को दुनिया के सामने लाया जाये. नेट पर आने से तिब्बती स्क्रिप्ट की इन पांडुलिपियों के अनुवाद में भी मदद मिलेगी. इसके लिए अनुवादकों को भुगतान भी किया जायेगा.

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