पटना: 75 वर्षीय सदानंद सिंह परिवहन निगम के सेवानिवृत्त कर्मचारी हैं. 30 जून, 1997 को रिटायर होने के बाद उनको अब तक सेवांत लाभ की राशि का भुगतान नहीं हुआ है. वे हर दिन राशि के लिए परिवहन निगम कार्यालय का चक्कर लगा रहे हैं. श्री सिंह की तरह निगम में 4600 ऐसे कर्मचारी हैं, जो बकाया राशि के मिलने का इंतजार कर रहे हैं.
श्री सिंह ने 1962 में हेल्पर पद पर योगदान दिया था. 30 जून 1997 को पटना प्रमंडल से सेवानिवृत्त हुए. उन्हें भविष्य निधि की राशि एक लाख 30 हजार और 75 प्रतिशत उपादान राशि 60 हजार नौ सौ नब्बे रुपये का भुगतान हुआ. इसके बाद कोई राशि नहीं मिली. संवाहक पद से रिटायर हुए यदुनंदन प्रसाद यादव की भी कमोबेश यही कहानी है. 30 नवंबर 2002 को रिटायर हुए श्री यादव को संशोधित वेतनमान की बकाया राशि के अलावा सीपीएफ के सूद की राशि भी नहीं मिली है. 41 वर्षो तक निगम की संपत्तियों की सुरक्षा में तैनात गनौरी राम को भी अंशदान और भविष्य निधि की राशि नहीं मिली है. फरवरी 11 में रिटायर किये हैं.
आठ पदों का हुआ था संशोधित वेतनमान : निगम में आठ पदों का संशोधित वेतनमान तय हुआ था. इनमें संवाहक, हेल्पर, मैकेनिक ए, बी व सी, यात्री लिपिक, पोद्दार, सुरक्षा गार्ड, सांख्यिकी लिपिक और भंडारकर्मी शामिल थे. संशोधित वेतनमान वर्ष 1989 से देना था. पटना उच्च न्यायालय ने निगम प्रशासन को संशोधित वेतनमान देने का निदेश निगम प्रशासन को दिया. निगम प्रशासन इस आदेश के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय गया. वहां भी निगमकर्मियों के पक्ष में वर्ष 2002 में आदेश पारित हुआ.
हलफनामा दायर कर कही थी भुगतान की बात : बकाया राशि लेने के लिए सेवानिवृत्त कर्मी पहले तो निगम का चक्कर लगाते हैं, इसके बाद न्यायालय का दरवाजा खटखटाते हैं. भुगतान को लेकर न्यायालय आदेश पारित करता है, लेकिन उसका असर निगम प्रशासन पर नहीं हो रहा है. निगम प्रशासन की ओर से 24 अगस्त 2011 में ही सर्वोच्च न्यायालय में हलफनामा दायर कर दिसंबर 2011 तक सभी बकाया राशि के भुगतान करने की बात कही थी. बावजूद इसके सेवानिवृत्त कर्मियों को निगम कार्यालय का चक्कर लगाना पड़ रहा है.
प्रशासक ने नहीं उठाया फोन
इस संबंध में बिहार राज्य पथ परिवहन निगम की प्रशासक एन विजय लक्ष्मी से कई बार उनके सरकारी नंबर (9771499714) पर बात करने की कोशिश की गयी, मगर उनसे बातचीत नहीं हो सकी. रिंग होने के बावजूद उन्होंने फोन नहीं उठाया. आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक विजय लक्ष्मी के पास निगम का अतिरिक्त प्रभार होने की वजह से वह इस कार्यालय को पूरा समय नहीं दे पातीं.