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रोक के बाद भी बिक रही ऑक्सीटोसीन

2014 में ही ऑक्सीटोसीन की बिक्री और उपयोग पर लगा है प्रतिबंध पटना : पशुओं से जबरदस्ती दूध निकालने के लिए प्रतिबंधित दवा ऑक्सीटोसीन का धड़ल्ले से उपयोग जारी है. दो साल से अधिक बीत गये इस पर रोक लगाने की नियमावली बने, लेकिन जमीन पर यह अभी तक उतर नहीं पायी. बिना बछड़े वाली […]

2014 में ही ऑक्सीटोसीन की बिक्री और उपयोग पर लगा है प्रतिबंध
पटना : पशुओं से जबरदस्ती दूध निकालने के लिए प्रतिबंधित दवा ऑक्सीटोसीन का धड़ल्ले से उपयोग जारी है. दो साल से अधिक बीत गये इस पर रोक लगाने की नियमावली बने, लेकिन जमीन पर यह अभी तक उतर नहीं पायी. बिना बछड़े वाली गाय या भैंस से दूध निकालने के लिए इसका उपयोग हो रहा है. स्वास्थ्य पर इसके बुरा असर के कारण भारत सरकार ने 2014 में बिना डॉक्टरी सलाह के इसकी बिक्रीपर रोक लगा दी थी. भारत सरकार ने राज्यों को भी इस दवा की बिक्री पर रोक लगाने के लिए निर्देश जारी किया.
2014 में केंद्र सरकार से चली चिट्ठी को जिलों तक पहुंचते-पहुंचते ढाई साल लग गये. केंद्र सरकार की चिट्ठी पर अमल होने में एक साल का समय लग गया. राज्य सरकार ने करीब एक साल बाद 13 अक्टूबर, 2015 को इस पर रोक लगाने के लिए राज्य के ड्रग कंट्रोलर को निर्देश दिया. इसके एक माह बाद पशुपालन विभाग ने सभी जिला पशुपालन और क्षेत्रीय पशुपालन पदाधिकारी को इसके सर्वेक्षण का निर्देश दिया था. यहां पर आकर यह फाइल ठहर गयी. केंद्र समझ रहा कि राज्य में इस दवा की बिक्री पर रोक लगी है.
राज्य सरकार ने जिलों को आदेश दिया पर जिला स्तर पर जहां से कार्रवाई होनी है, सरकार का यह आदेश अमल में लाया ही नहीं गया. एक बार फिर पशुपालन विभाग ने दिसंबर, 2015 में ड्रग कंट्रोलर को इस दवा की खरीद बिक्री पर रोक लगाने का अनुरोध किया. लगा कि अधिकारी इस दवा की बिक्री पर रोक लगाने के लिए सजग हुए हैं. लेकिन यह आदेश भी ठंडे बस्ते में चली गयी. छापेमारी या धड़पकड़ नहीं होने के कारण बेखौफ इसकी बिक्री चल रही है.
ऑक्सीटोसीन की धरल्ले से बिक्री की जानकारी के बाद पशुपालन विभाग पुन: पशुपालन विभाग ने 18 फरवरी को ड्रग कंट्रोलर को पत्र लिखा है.
खटालों में दी जा रही गायों को सूई
इसी बीच पटना डेयरी ने इस दवा के हो रहे उपयोग की जानकारी के लिए पटना के कई खटालों का सर्वेक्षण किया. इस सर्वेक्षण में मिले चौकाने वाले तथ्यों की जानकारी देते हुए पटना डेयरी के एमडी सुधीर कमार सिंह ने कहा कि पहले खटालों में 80 प्रतिशत गायों के बछड़े नहीं होते थे. हाल के सर्वेक्षण में पता चला है कि 90 प्रतिशत गायों के बछड़े नहीं है. ऐसे खटालों में दूध निकालने के लिए इस दवा का उपयोग किया जा रहा है. श्री सिंह ने कहा कि अब सुधा दूध हर जगह उपलब्ध होने के कारण खटालों से पूर्व की अपेक्षा कम लोग दूध ले रहे हैं.
हारमोनल डिस्बैलेंस के शिकार हो रहे बच्चे
ऑक्सीटोसीन के खतरनाक साइड इफेक्ट की वजह से ही सरकार ने रोक लगायी थी. इसके बावजूद यह दवा बिना डॉक्टर की सलाह के उपयोग की जा रही है. इस दवा के कारण असमय बच्चों में विकास, बच्चों में विकास अवरूद्ध होना मुख्य परेशानी है. यह हॉरमोन है. यह दूध के साथ मानव शरीर में आने पर इसका बुरा असर तो होगा ही.
डा एसपी श्रीवास्तव, शिशु रोग विशेषज्ञ

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