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मिर्जा गालिब के मसलों की गिरह सुलझाते पटना के बाबर इमाम
हिंदुस्तान, पाकिस्तान, बांग्लादेश और अमेरिका से आते हैं सवाल अजय कुमार पटना : सैयद बाबर इमाम को हम भले न जानते हों, पर मशहूर शायर मिर्जा गालिब के दीवानों को उनकी हैसियत का अंदाजा है. तभी तो हिन्दुस्तान के अलावा पाकिस्तान, बांग्लादेश, सऊदी अरब, अमेरिका, इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया से हर दिन बारह-पंद्रह सवाल उनके पास आ […]
हिंदुस्तान, पाकिस्तान, बांग्लादेश और अमेरिका से आते हैं सवाल
अजय कुमार
पटना : सैयद बाबर इमाम को हम भले न जानते हों, पर मशहूर शायर मिर्जा गालिब के दीवानों को उनकी हैसियत का अंदाजा है. तभी तो हिन्दुस्तान के अलावा पाकिस्तान, बांग्लादेश, सऊदी अरब, अमेरिका, इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया से हर दिन बारह-पंद्रह सवाल उनके पास आ ही जाते हैं. किसी को गालिब के शेरो-शायरी के मायने समझने की दरकार होती है, तो कोई गजल में आये हर्फ (शब्द) के माने समझने को बेताब होता है.
बाबर इमाम से मिलना एक यादगार अनुभव हो सकता है. वह पटना के सब्जीबाग मोहल्ले में रहते हैं. खेतान मार्केट से आगे बढ़ने पर सड़क बांये बाजू की ओर मुड़ती है. वहीं से एक दूसरी सड़क बिड़ला मंदिर की ओर चली जाती है जो आगे अशोकराज पथ पर निकल जाती है. हम बांये वाले रास्ते पर आगे बढ़े. वहां से कुछ ही फर्लांग पर लोहे-लक्कड़ की दुकान दिखेगी. फुटपाथ पर लोहे को पीटते कुछ कारीगर दिखेंगे. खट-खट-ठन्न…ठक-ठक. हथौड़े की चोट और वेल्डिंग की आवाज. सब अपने धुन में लगे हुए.
हम वहां रुके. पुरानी इमारत थी वह. चौड़ाई दस फुट और लंबाई करीब 25-30 फुट. यह लंबा पैसेज है. उसमें मुहाने पर कारीगर लोहे को पीट रहे हैं. निगाह पर जोर डाली. बिल्कुल अंदर एक छवि दिखती है. हम चार कदम अंदर गये. लैपटॉप पर एक नौजवान काम कर रहे हैं. उम्र कोई 35-37 साल.
हमने पूछा: बाबर भाई? वह खड़े हुए. हाथ बढ़ाया. हम इत्मीनान हुए कि सही जगह पहुंच गये.
उर्दू ऐसे सीखी
अंगरेजी मीडियम का स्कूल होने के चलते मेरी तालीम उसी जुबान में हुई. उर्दू से अच्छी हिंदी थी. अलीगढ़ में पढ़ने के दौरान पापा का हुक्म था कि उर्दू में चिट्ठी लिखोगे, तभी पैसा जायेगा.
इस मजबूरी ने मुझे उर्दू के करीब ला दिया. 2007 में फेसबुक आ गया था. मिर्जा गालिब को लेकर एक ग्रुप वहां पहले से ही सक्रिय था. मैं भी उससे जुड़ गया. गालिब के शेर-ओ-शायरी पर कमेंट लिखना शुरू कर दिया था. साथ में, गालिब की चिट्ठियां और बायोग्राफी दिल लगाकर पढ़ी. इससे गालिब को समझने में थोड़ी आसानी हुई. इसी बीच, 2010 में मिर्जा गालिब पर जो ग्रुप चल रहा था, उसका एडमिनिस्ट्रेटर मुझे बना दिया गया. उसके पहले तक पाकिस्तान के फैज अब्दुल अजीज उस ग्रुप के एडमिनिस्ट्रेटर थे. वह पाकिस्तान में प्रकाशक हैं. हमने मिर्जा गालिब के अलावा रेख्ता (फारसी का शब्द जिसका अर्थ होता है गिरी पड़ी चीज) नाम से साइट शुरू की. इसकी वजह यह थी कि मिर्जा गालिब वाले साइट पर दूसरे बहुत सारे नगमानिगरों, शायरों की रचनाओं के बारे में लोग पूछने लगे थे. इस घालमेल से बचने के लिए हमने ऐसा किया.
कादिरानामा को दुनिया के सामने लाया
बाबर बताते हैं, गालिब साहब पर बहुत काम हुआ है. पर किसी की नजर में कादिरनामा नहीं आया था.हमने उसे खोजकर सामने लाया. यह मिर्जा साहब की डिक्शनरी है जिसे उन्होंने अपने गोद लिये बेटे आरिफ के बच्चों के लिए तैयार किया था. ताकि वे हिंदी और फारसी लफ्जों का ज्ञान हासिल कर सकें. यह एक लंबी कविता की शक्ल में है. इसकी खासियत यह है कि इसमें फारसी और हिंदी के शब्द रखे गये हैं. जैसे फारसी के चाह शब्द का हिंदी में अर्थ होता है कुंआ. इसी तरह दूद का धुंआ, शीर का दूध, तिफ्ल का लड़का, पीर का बूढ़ा और ताउस का मोर होता है. बाबर गालिब के रचना संसार में ऐसे डूबे रहते हैं कि कब शाम हुई और सुबह, इसका खयाल भी नहीं रहता. वह कहते हैं: घड़ी के सूई-कांटों की परवाह किसे है?
नये दौर में पटना से यूं जुड़े गालिब
गालिब अपने मिजाज के शायर हुए. अपने आगे वे शायद किसी को तवज्जो नहीं देते थे. पर उन्होंने पटना (तब अजीमाबाद) के बेदिल अजीमाबादी को अपना गायबाना उस्ताद (गुरु) स्वीकार किया था. बेदिल का जन्म 1642 में हुआ था. ऐसा माना जाता है कि मिर्जा गालिब अपने गुरु बेदिल अजीमाबादी से बेहद प्रभावित थे. बेदिल का दीवान (शायरी का संग्रह) तुर्कमेनिस्तान में है.
अब सैकड़ो साल बाद बाबर के मार्फत गालिब और आधुनिक पटना के बीच एक रिश्ता कायम हुआ है जिसे गालिब के चाहने वाले बखूबी जानते हैं. गालिब का असल नाम मिर्जा असद उल्लाह बेग खां था और उनका जन्म (1797) आगरे में हुआ था. बाद में वह दिल्ली आ गये थे. बहरहाल, बाबर हिन्दुस्तान, पाकिस्तान के शायरों की शायरी के तकनीकी पक्ष के बारे में बताते हैं. यह सब मेल, स्काइप के जरिय होता है.
पाकिस्तान के बच्चे पढ़ेंगे हिंदी-फारसी
बाबर ने बताया कि कादिरनामा के बारे में बात निकली तो बहुत दूर तक गयी. पाकिस्तान के बिकन हाउस (स्कूल सिस्टम) के मॉन्टेसरी के बच्चों को पढ़ाया जायेगा. इसकी छपाई अंतिम चरण में हैं और किताब की प्रस्तावना में से एक बाबर ने लिखी है. बिकन स्कूल पाकिस्तान समेत नौ मुल्कों में चलता है. कोई 2.47 लाख बच्चे व छात्र-छात्राएं इस स्कूल में पढ़ रहे हैं. पाक के पूर्व विदेश मंत्री खुर्शीद महमूद की पत्नी नसरीन कसूरी बिकन हाउस की प्रमुख हैं.
पाकिस्तान से आया बुलावा : बाबर इमाम
बिकन हाउस की 40 वीं सालगिरह पर बाबर इमाम को पाकिस्तान से बुलावा आया था ताकि वह रेवोल्यूशनरी पोएट्स ऑफ पाकिस्तान विषय पर अपनी बात रख सकें. बाबर बीते दिसंबर में पाक गये.
करांची और लाहौर में दो सप्ताह रहे. वहां गालिब की रचनाओं पर कई कार्यक्रम हुए. बाबर ने अपनी बात से ताजगी भर दी. वह बताते हैं कि गालिब की पेचीदा शायरी पर वह कमेंटरी लिख रहे हैं कि ताकि नयी नस्ल उनकी मुश्किल शेर और छुपे फलसफे को आसानी से समझ सके. इस कमेंटरी की किताब निकालने की भी योजना है.
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