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नवजातों में बढ़ रहा टीबी का संक्रमण, अधर में योजनाएं

नवजातों में बढ़ रहा टीबी का संक्रमण, अधर में योजनाएं – राष्ट्रीय टीबी नियंत्रण कार्यक्रम से नहीं जुड़ पाया आइजीआइएमएस – पीएमसीएच में नहीं बन पाया कुपोषण पुनर्वास केंद्र- हर साल 14 फीसदी बच्चों में बढ़ रही टीबी की बीमारी आनंद तिवारी, पटनानवजातों में इन दिनों टीबी के संक्रमण की शिकायत तेजी से बढ़ रही […]

नवजातों में बढ़ रहा टीबी का संक्रमण, अधर में योजनाएं – राष्ट्रीय टीबी नियंत्रण कार्यक्रम से नहीं जुड़ पाया आइजीआइएमएस – पीएमसीएच में नहीं बन पाया कुपोषण पुनर्वास केंद्र- हर साल 14 फीसदी बच्चों में बढ़ रही टीबी की बीमारी आनंद तिवारी, पटनानवजातों में इन दिनों टीबी के संक्रमण की शिकायत तेजी से बढ़ रही है. स्वास्थ्य विभाग के आंकड़े के अनुसार कुल मरीजों में 14 फीसदी बच्चे टीबी से ग्रसित हैं. बच्चों में टीबी का संक्रमण घर के सदस्य या फिर पड़ोसी द्वारा फैलता है. बच्चों में रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती है, इस कारण वे जल्दी इसके शिकार हो जाते हैं. खास बात यह है कि इस समस्या से निजात दिलाने के लिए स्वास्थ्य विभाग की ओर से कई योजनाएं बनायी गयीं. इनमें कुछ योजनाओं पर काम चल रहा, तो कुछ अधर में ही लटक गयीं. पीएमसीएच में नहीं बना कुपोषण पुनर्वास केंद्र टीबी व अन्य रोगियों के लिए पीएमसीएच में कुपोषण पुनर्वास केंद्र बनाने की योजना है. राज्य स्वास्थ्य समिति की ओर से इसके लिए आदेश भी जारी कर दिये गये हैं. लेकिन, पीएमसीएच में अब तक इस योजना पर काम नहीं हुआ. अस्पताल प्रशासन की माने तो राज्य स्वास्थ्य समिति की ओर से इस दिशा में काम करने के लिए महज दो लाख रुपये ही आवंटित किये गये हैं. इतने कम बजट में कुपोषण पुनर्वास केंद्र बनना संभव नहीं है. वहीं, आइजीआइएमएस को राष्ट्रीय टीवी नियंत्रण कार्यक्रम से जोड़ने की योजना है. लेकिन, इस दिशा में भी काम अधूरा है. नतीजा इस अस्पताल में टीवी के मरीजों को बाहर से दवा व जांच करानी पड़ती है. हर साल बढ़ रही मरीजों की संख्या आंकड़ों पर नजर डालें तो हर साल टीबी के मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है. वर्ष 2013 में कुल 438 बच्चे टीबी से पीड़ित थे, जो कुल मरीज का 13 फीसदी है. वहीं, पटना जिले में वर्ष 2013 में कुल टीबी के मरीजों की संख्या 4238 थी, जो 2014 में बढ़कर 5100 के आसपास हो गयी. अधिकारियों के अनुसार पहले बच्चों की संख्या का अलग से आकलन नहीं किया जाता था, जिस कारण इसकी सही जानकारी उपलब्ध नहीं हो पाती थी. इस तरह होता है इलाजडॉक्टरों के अनुसार बच्चों में भी इलाज और दवा देने की प्रक्रिया बड़ों की तरह ही है. वजन के अनुसार सिर्फ दवा की मात्रा कम की जाती है. डॉट्स द्वारा दिये जा रहे टेबलेट्स का आकार छोटा और वजन कम हो जाता है. लेकिन, दवा लेने का ड्यूरेशन छह महीने ही होते हैं. बच्चों को आइ सोनियोजेड और हेपटाइटीज बी का टीका दिलाना जरूरी है. साथ ही बच्चे के जन्म के तुरंत बाद उसे बीसीजी का टीका लगवाना चाहिए. क्या कहते हैं डॉक्टरटीवी से जुड़े जितने भी सेंटर हैं, वहां दवा, जांच आदि की सुविधाएं होती हैं. जब तक लोगों में टीबी को लेकर जागरूकता नहीं आयेगी, तब तक इसके मरीज कम नहीं होंगे. आशुतोष कुमार, डिप्टी को-ऑर्डिनेटर, टीबी केयर ::::::::::बिहार में टीबी के मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ रही है. इसको लेकर लोगों को जागरूक करने की जरूरत है. आइजीआइएमएस को राष्ट्रीय टीबी नियंत्रण कार्यक्रम से जोड़ना होगा. इससे मरीजों को समय पर दवा और जांच आदि की सुविधा मिलेगी. डाॅ. सुनील सिंह, उपाध्यक्ष, आइएमए बिहार

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