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वश्वि में एक अरब से अधिक लोगों द्वारा बोली जाने वाली भाषा है हिंदी

विश्व में एक अरब से अधिक लोगों द्वारा बोली जाने वाली भाषा है हिंदी- विश्व हिंदी दिवस पर साहित्य सम्मेलन में आयोजित हुई संवाद गोष्ठी व कवि-कोष्ठीपटना. निखिल विश्व में 1 अरब 10 करोड़ से अधिक लोग हिंदी बोलते और समझते हैं. अमेरिका सहित संसार के प्रायः सभी देशों में हिंदी की स्वीकृति मिल रही […]

विश्व में एक अरब से अधिक लोगों द्वारा बोली जाने वाली भाषा है हिंदी- विश्व हिंदी दिवस पर साहित्य सम्मेलन में आयोजित हुई संवाद गोष्ठी व कवि-कोष्ठीपटना. निखिल विश्व में 1 अरब 10 करोड़ से अधिक लोग हिंदी बोलते और समझते हैं. अमेरिका सहित संसार के प्रायः सभी देशों में हिंदी की स्वीकृति मिल रही है. अमेरिका की सरकार ने हिंदी के संवर्द्धन हेतु 11 करोड़ 90 लाख डालर का अनुदान वहां के हिंदी संस्थानों को दिया है. हिंदी अपनी ऊर्जा से स्वतः बढ़ रही है. यह उद्गार आज विश्व हिंदी दिवस पर, बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन के तत्वावधान में आयोजित संवाद-गोष्ठी में अपना विचार व्यक्त करते हुए प्रसिद्ध आलोचक डॉ शिववंश पाण्डेय ने व्यक्त किये. इस अवसर पर अपना उद्गार व्यक्त करते हुए भूपेन्द्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो अमरनाथ सिन्हा ने कहा कि विश्व के अनेक देशों में रहने वाले भारतीयों द्वारा हिंदी अंतर्राष्ट्रीय स्वरूप पा रही है. मॉरिशस, सूरिनाम, गुयाना, त्रिनिदाद व तोबैगो समेत दिनिया के प्रायः सभी देशों में भारतीयों ने स्वयं के साथ अपनी भाषा को भी उन्नत किया है. ख्याति नाम कवि डॉ सुरेन्द्र स्निग्ध ने कहा कि हिंदी के महत्व को विश्व-बाजार ने समझा है. बाजार की जरुरतों ने उन्हें हिंदी को आगे रखने के लिए विवश किया है. अपने अध्यक्षीय उद्गार में सम्मेलन अध्यक्ष डॉ अनिल सुलभ ने कहा कि आधुनिक हिंदी अपनी अपराजेय शक्ति के कारण प्रचण्द गति से संसार में फैल रही है. आज वह दुनिया में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषाओं में तीसरे स्थान पर पहुंच चुकी है. संसार का बदलता स्वरूप यह संकेत दे रहा है कि आने वाले कुछ दशकों में यह दुनिया की सबसे समृद्ध भाषा बनेगी. उन्होंने कहा कि हिंदी विश्व में जिस गति से बढ़ रही है, दुर्भाग्य से वह गति अपने ही देश में नहीं है. भारत की सरकार को इस दिशा में गंभीरता से विचार करना चाहिये. इस अवसर पर मगध विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति मेजर बलबीर सिंह ‘भसीन’, सम्मेलन के उपाध्यक्ष नृपेन्द्र नाथ गुप्त, बलभद्र कल्याण, वीरेन्द्र कुमार यादव, श्रीकांत सत्यदर्शी तथा रुखशाना कुरैशी ने भी अपने विचार व्यक्त किये. इस अवसर पर एक भव्य कवि-सम्मेलन भी संपन्न हुआ, जिसमें तीन दर्जन से अधिक कवियों-कवयित्रियों ने अपनी रचनाओं का पाठ किया, जिसमें ‘हिंदी’ के साथ ही सामाजिक सरोकार और समाज की पीड़ा भी विषय बने. काव्य-पाठ करने वालों में शायर आर पी घायल, पं शिवदत मिश्र, राज कुमार प्रेमी, डॉ कल्याणी कुसुम सिंह, डॉ बाल मुकुंद दिवाकर, सरोज तिवारी, डॉ आरती कुमारी, डॉ भगवान सिंह भास्कर, डॉ अर्चना त्रिपाठी, कुमारी स्मृति, कमलेन्द्र झा कमल, श्रेया सिंह, डॉ आरती कुमारी, सागरिका राय, कुमारी लता प्रासर, डॉ लक्ष्मी सिंह, डॉ सीमा रानी, कुमारी मेनका, डॉ ओम प्रकाश पाण्डेय, डॉ आर प्रावेश, अलका मिश्र, सच्चिदानंद सिन्हा, पं गणेश झा, कौसर कोल्हुआपुरी, जगदीश प्रसाद राय, जनार्दअन सिंह, पंकज प्रियम, आचार्य आनंद किशोर शास्त्री, वीणा अम्बष्ठ, रघुवंश प्रसाद वर्मा, प्रभात कुमार धवन के नाम शामिल हैं. इस अवसर पर त्रैमासिक पत्रिका मानवधिकार टुडे के वार्षिक-कैलेंडर का भी लोकार्पण, पत्रिका के संपादक शशिभूषण सिंह की उपस्थिति में किया गया. समारोह के अंत में सुप्रसिद्ध साहित्यकार रवीन्द्र कालिया के निधन पर शोक-प्रकट किया गया तथा दो मिनट मौन रख कर दिवंगत आत्मा की शांति के लिये प्रार्थना की गयी. आरंभ में अतिथियों का स्वागत सम्मेलन के प्रधानमंत्री आचार्य श्रीरंजन सूरिदेव ने तथा धन्यवाद- ज्ञापन प्रबंध मंत्री कृष्णरंजन सिंह ने किया. मंच का संचालन कवि योगेन्द्र प्रसाद मिश्र ने किया.

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