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उर्दू इतिहासकार की नजरों में पटना

उर्दू इतिहासकार की नजरों में पटनापटना जो पाटलिपुत्र और अजीमाबाद के नाम से भी जाना जाता रहा है, हमेशा से विदेशियों के आकर्षण का केंद्र रहा है. समय समय पर विदेशी सैलानी यहां आते रहे. ऐसे सैलानियों की एक लंबी सूची है. मेगास्थनीज, फाह्यान, हुएनसांग, हे चो, अलबरूनी से लेकर पीटर मुंडी, मनूची, एम्मा रॉबर्ट्स […]

उर्दू इतिहासकार की नजरों में पटनापटना जो पाटलिपुत्र और अजीमाबाद के नाम से भी जाना जाता रहा है, हमेशा से विदेशियों के आकर्षण का केंद्र रहा है. समय समय पर विदेशी सैलानी यहां आते रहे. ऐसे सैलानियों की एक लंबी सूची है. मेगास्थनीज, फाह्यान, हुएनसांग, हे चो, अलबरूनी से लेकर पीटर मुंडी, मनूची, एम्मा रॉबर्ट्स और बुकानन तक. इन सबों ने अपने अपने ढंग से यात्रा वृत्तांत और यहां के संस्मरण लिखे. बुकानन(1811-12) ने तो विस्तार से पटना के बारे में लिखा है. इन सबों के बारे में हम पढ़ते और सुनते रहे हैं, लेकिन इन सबों में एक खास किस्म की विरक्ति का भाव रहा है. ये वृत्तांत ऐसे लोगों द्वारा लिखे गये थे,जो विदेशी थे और जिन्होंने सरसरी निगाहों से इस शहर को देखा था. इन सबों से अलग 19 वीं सदी के अंत में दो लेखकों अली मोहम्मद शाद और सैयद बदरुल हसन द्वारा उर्दू में लिखे गये ‘नक्श-ए-पैदार’ और ‘यादगार-ए- रोजगार’ को उतनी प्रसिद्धि नहीं मिली, क्योंकि ये उर्दू में थे. इसलिए उर्दू न जाननेवाले लोगों तक इनकी पहुंच नहीं हो पायी. विदेशी वृत्तांतों से अलग ये ज्यादा प्रामाणिक और मर्म को छूनेवाले हैं, क्योंकि ये यहां के मूल निवासी द्वारा लिखे गये हैं. 1816 के आसपास ‘नक्श-ए-पैदार’ को पटना के प्रख्यात शायर अली मोहम्मद शाद ने लिखा था. बिहार के तत्कालीन लेफ्टिनेंट गवर्नर ने शाद को बिहार और पटना का प्रामाणिक इतिहास लिखने का काम सौंपा था, जिसे वे प्रिंस ऑफ वेल्स के पटना आगमन पर उन्हें उपहार स्वरूप सौंपना चाहते थे. किन्हीं कारणों से यह अपने वक्त पर नहीं लिखी जा सकी, इसलिए इसके प्रकाशन में काफी विलंब हुआ. यह 1924 में छप कर तैयार हुआ. दो खंडों में लिखी इस पुस्तक के पहले खंड में बिहार का इतिहास और दूसरे खंड में पटना शहर का विस्तृत इतिहास है. ‘यादगार-ए- रोजगार’ को लिखा था पटना सिटी कोर्ट के आनररी मजिस्ट्रेट सैयद बदरुल हसन ने. छह खंडों में लिखी इस किताब में पहले चार में पटना के चार प्रमुख मोहल्लों, चौक, खाजांकला, सिटी कोर्ट और पीरबहोर पर विस्तृत जानकारी है. इस पुस्तक में शहर, उसके वाशिंदों और उनके रहन सहन के बारे में गहराई के साथ लिखा गया है. ये दोनों लेखक शहर के प्रतिष्ठित मुसलिम जमींदार खानदान से थे. उनके लेखन में इस वर्ग के लोगों की मानसिकता की भी झलक मिलती है, लेकिन फिर भी ये पूरी तटस्थता के साथ लिखी गयीं हैं. इनमें शहर में निवास करनेवाले हिंदू, मुसलमान ही नहीं सिखों और ईसाईयों के बारे में भी विस्तार से लिखा गया है. इन पुस्तकों के बारे में अगले कॉलम में.

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