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10 सालों में महज 12.85 प्रतिशत बढ़ा सीडीआर
मनमानी. कर्ज देने में बैंक कर रहे कोताही पटना : राज्य में मौजूद व्यावसायिक और गैर-व्यावसायिक बैंकों की उदासीनता के कारण आम लोगों को कई जन कल्याणकारी योजनाओं का सीधे तौर पर लाभ नहीं मिल रहा है. राज्य में कई लघु और मध्यम स्तर के उद्योगों का ग्रोथ नहीं हो पा रहा है. बैंकों की […]
मनमानी. कर्ज देने में बैंक कर रहे कोताही
पटना : राज्य में मौजूद व्यावसायिक और गैर-व्यावसायिक बैंकों की उदासीनता के कारण आम लोगों को कई जन कल्याणकारी योजनाओं का सीधे तौर पर लाभ नहीं मिल रहा है.
राज्य में कई लघु और मध्यम स्तर के उद्योगों का ग्रोथ नहीं हो पा रहा है. बैंकों की तरफ से आम लोगों और नये उद्योगों या योजनाओं को कर्ज नहीं मिलने से इन्हें समुचित गति नहीं मिल पा रही है.
सरकार के तमाम दबाव के बाद भी पिछले 10 सालों में राज्य का सीडीआर (कैश-डिपॉजिट रेसियो) महज 12.85 प्रतिशत ही बढ़ा है. दूसरे राज्यों में इतने समय में सीडीआर में कई गुणा की बढ़ोतरी हुई है. महाराष्ट्र में सीडीआर तो 200 प्रतिशत तक है. तमिलनाडू, कर्नाटक, गुजरात समेत कई राज्यों का सीडीआर 100 से ज्यादा है. हर वित्तीय वर्ष में मुरगी पालन, पशुपालन, गव्य विकास, मत्स्य पालन, कृषि समेत ऐसे सभी प्राथमिकतावाले क्षेत्रों में राज्य सरकार लोन बांटने का जो टारगेट देती है, उसका औसतन 15-20 प्रतिशत ही बैंक वाले हासिल कर पाते हैं.
इससे इन क्षेत्रों में ग्रोथ नहीं हो रहा है. राज्य में लघु और मध्यम स्तर के उद्योगों की स्थापना नहीं हो पा रही है. इन कारणों से सूबे की आर्थिक स्थिति नहीं सुधर रही है. बाजार को ग्रोथ नहीं मिल रहा है.
सीडीआर नहीं बढ़ने का मतलब
बिहार का सीडीआर 44.95 प्रतिशत है, जबकि 2005-06 में यह 32.10 हुआ करता था. 10 साल में 12 फीसदी का ग्रोथ वैश्वीकरण के इस दौर में बेहद चिंताजनक स्थिति है. राज्य के लोग सालभर में जितना पैसा बैंकों में जमा करते हैं, उस अनुपात में बैंक कर्ज नहीं दे रहे हैं.
बिहार में मौजूद बैंकों की शाखाओं में जमा होनेवाले रुपये से ये बैंक दूसरे राज्यों में लोन दे रहे हैं. तभी तो महाराष्ट्र का सीडीआर 200 प्रतिशत और गुजरात, तमिलनाडू, कर्नाटक समेत अन्य कई राज्यों का सीडीआर 100 प्रतिशत से ज्यादा है. इन राज्यों में बैंकों में जितने रुपये जमा होते हैं, उससे कहीं ज्यादा के लोन बांटे जाते हैं यानी ये अतिरिक्त रुपये बिहार जैसे राज्यों से ही लाये जाते हैं.
सीडीआर नहीं बढ़ने का कारण
बैंक शिक्षा, कृषि, डेयरी, कुक्कुट पालन, लघु एवं मध्यम उद्योगों और स्वरोजगार सृजन समेत अन्य सभी प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में लोन नहीं दे रहे हैं. कई जन कल्याणकारी योजनाओं को चलाने में भी बैंकों की तरफ से समुचित सहयोग नहीं मिल रहा है.
व्यवसाय शुरू करने या इस तरह की किसी नयी योजनाओं के क्रियान्वयन में बैंकों की तरफ से आर्थिक सहयोग नहीं देने के कारण राज्य का सीडीआर नहीं सुधर रहा है. युवाओं को स्वरोजगार के लिए बैंकों की तरफ से लोन देने में कोताही बरतना भी इसका बहुत बड़ा कारण है.
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