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आंखों में कट गया साल कि वो आयेंगे नये साल में

आंखों में कट गया साल कि वो आयेंगे नये साल मेंसाहित्य सम्मेलन में आयोजित हुई वर्षांत कवि-गोष्ठीडा शंकर दयाल सिंह व डा श्रीनिवास की मनायी गयी जयंती पटना, 30 दिसम्बर। “आंखों में कट गया साल कि वो आयेंगे नये साल में/ ताज महल के परकोटे से मुस्कायेंगे नये साल में/ ज़ख्म हरे सब भर जायेंगे […]

आंखों में कट गया साल कि वो आयेंगे नये साल मेंसाहित्य सम्मेलन में आयोजित हुई वर्षांत कवि-गोष्ठीडा शंकर दयाल सिंह व डा श्रीनिवास की मनायी गयी जयंती पटना, 30 दिसम्बर। “आंखों में कट गया साल कि वो आयेंगे नये साल में/ ताज महल के परकोटे से मुस्कायेंगे नये साल में/ ज़ख्म हरे सब भर जायेंगे जो बीते साल दिये उसने/ जादूभरी अंगुलियों से सह लायेंगे नये साल में/ खुशियां सभी मुबारक तुमको, गम शायर के हिस्से में खार हमारे, फ़ूल तुम्हारे हिस्से आयेंगे नये साल में”, साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष डा अनिल सुलभ की इन पंक्तियों के साथ ऐसे हीं कुछ उदास तो कुछ उम्मीदों और मंगलकामनाओं से भरे गीत-गज़लों से आज की शाम लम्बे समय के लिये यादगार बन गयी। अवसर था बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन द्वारा, साहित्यकार डा शंकर दयाल सिंह और लोकप्रिय चिकित्सक व साहित्यसेवी डा श्रीनिवास की जयंती पर आयोजित वर्षांत कवि-गोष्ठी का। सम्मेलन सभागार में सम्मेलन-अध्यक्ष डा सुलभ की अध्यक्षता में आयोजित इस कवि-गोष्ठी कवि-गोष्ठी का आरंभ कवि राज कुमार प्रेमी की सरस्वती वंदना से आरंभ हुआ। कवयित्री अर्चना त्रिपाठी ने नये वर्ष का स्वागत इन पंक्तियों से किया कि, “नये वर्ष के आने की आहट/ हौले-हौले मन को गुद्गुदा रही/ जैसे पी के घर जाने की खुशी/ किंतु बाबुल का घर छूटने की कसक-सी विगत साल का जाना रहा”। कवि राजीव कुमार सिंह ‘परिमलेन्दु’ ने अपनी कविता का विषय औरत और मिडिया को बनाया और कहा कि, “मिडिया की पहली पसंद ‘औरत’ और आखिरी पसन्द भी ‘औरत’ ही/ कि जवान औरत छुपाये रखती है आदिम उत्तेजना, जिसे उघाड़ता है हिंस्र खरीदारों के लिए मिडिया”। पं शिवदत्त मिश्र ने काव्य में अध्यात्म के संप्रेषण के साथ एक तत्त्व-चिंतन प्रस्तुत किया कि, “परमत्मा ने जगत है रचा/ आत्मा में है वास उसी का/ रूप-रंग में भले भिन्नता/ पर आत्म-तत्त्व है एक सभी का”। कवि आनंद किशोर शास्त्री ने नये साल का आह्वान इन पंक्तियों से किया कि, “ माया का रंगीन जाल है/ हँसले- हँसले आ रहा नया साल है”। कवयित्री पूनम आनंद ने ज़िंदगी को इन पंक्तियों में समझने की कोशिश की कि, “पत्तों सी हो गयी ज़िंदगी/ कुछ हरे रहे कुछ सुखे”। कवि विजय गुंजन ने इन पक्तियों से अपनी विरह-वेदना व्यक्त की- “ये शरद के दिन नही कटते तुम्हारे बिन/ लहर के रथ पर चढा जो आ रहा है जल/ सर्पिणी फ़न काढ मानो आ रही चंचल”। सुभाष चंद्र किंकर, डा विनय कुमार विष्णुपुरी, हृदय नारायण झा, विकास राज तथा प्रो सुशील झा ने भी अपनी कविताओं का पाठ किया। इसके पूर्व अपनी जिन्दादिली और सारस्वत सर्जना के लिये चर्चित साहित्य-सेवी तथा सम्मेलन के अर्थमंत्री और सांसद रहे डा शंकर दयाल सिंह तथा साहित्यानुरागी हृदय-रोग विशेषज्ञ डा श्रीनिवास की जयंती संयुक्त रूप से मनायी गयी तथा उनके व्यक्तित्व और कृतित्व का स्मरण करते हुए, उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि दी गयी। अतिथियों का स्वागत करते हुए सम्मेलन के प्रधानमंत्री आचार्य श्रीरंजन सूरिदेव ने कहा कि शंकर दयाल जी एक जीवंत व्यक्ति और प्रतिष्ठित साहित्यकार के रूप में आदरणीय थे। उनका ‘ठहाका’ बहुत मशहूर था। वे राजनीति और साहित्य के विलक्षण सेतु थे। उन्होंने साहित्य में राजनीति को कभी आने नही दिया, बल्कि राजनीति में एक साहित्यिक हस्तक्षेप थे। सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद ने अपने संस्मरणों को ताजा करते हुए दोनों महापुरुषों के स्तुत्य व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि डा श्रीनिवास चिकित्सक के रूप में महान तो थे हीं, उनका जीवन मानवता की सेवा के लिए समर्पित रहा। उन्होंने अध्यात्म और जीवन के अनेक रहस्यों को समझने के लिए अनेक पुस्तकें भी लिखी। वहीं शंकर जी साहित्य की सेवा के साथ मानव-धर्म का भी निर्वाह करते रहे। अज्ञेय जी से उनका संबंध बहुत निकट का था। उनके प्रयास से अज्ञेय ने बिहार की अनेक यात्राएं की और नव-जिज्ञासु साहित्य-सेवियों की साहित्यिक-प्यास बुझाई। इस अवसर पर प्रो वासुकी नाथ झा, डा ध्रुब कुमार, आनंद किशोर मिश्र तथा नरेन्द्र देव ने भी अपने विचार व्यक्त किये। मंच का संचालन कवि योगेन्द्र प्रसाद मिश्र ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन प्रबंध मंत्री कृष्णरंजन सिंह ने किया।

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