अस्पताल में डॉक्टर तो मिले, पर नहीं मिली दवा व जांच प्रहलाद कुमारअलविदा 2015 संवाददाता, पटना बिहार की स्वास्थ्य व्यवस्था से मरीजों को बहुत फायदा नहीं हुआ. पूरे साल मरीज अस्पतालों में दवा व सर्जिकल आइटम के लिए परेशान रहे और बीएमएसआइसीएल व विभाग आराम से हाथ पर हाथ धरे बैठा रहा. अस्पतालों में जांच के नाम पर कुछ मामूली काम होते थे. वरना हर जांच के लिए मरीजों को बाहर भेजना पड़ा. हालात यह है कि जब गंभीर हालत में मरीज अस्पताल पहुंचते हैं, तो डॉक्टर इमरजेंसी ड्रग व सर्जिकल आइटम के अभाव में इलाज शुरू नहीं कर पाते हैं. जब तक परिजन दवा लेकर नहीं आते हैं, तब तक मरीज तड़पता रहता है. किस्मत खराब रही तो अनहोनी भी हो जाती है. अगर 2015 की कमियों को दूर नहीं किया गया, तो बिहार की स्वास्थ्य व्यवस्था 2016 में भी पटरी पर नहीं आ पायेगी. दवा को लेकर बैठक तक नहीं हुई दवा खरीद को लेकर विधानसभा तक हंगामा हुआ, लेकिन इसको लेकर कोई विभागीय बैठक नहीं की गयी. विभागीय मंत्री बस दवा खरीद का राग अलापते रहे. इस बीच दो प्रधान सचिव बदल गये और कॉरपोरेशन के एमडी भी, लेकिन दवा खरीद आज तक पूरी नहीं हो पायी. विभागीय स्तर पर दवा खरीदने के लिए सभी अधीक्षक व सिविल सर्जन को आदेश भेजा गया, लेकिन पूरे साल में किसी जिले में दवा नहीं खरीदी गयी. मरीजों को कॉटन तक के लिए बाजार में जाना पड़ा. पुरानी योजना पूरी नहीं, नयी बन गयी स्वास्थ्य विभाग के मंत्री व अधिकारी अस्पतालों का निरीक्षण करने के बाद फाइलें मोटी कर चुके हैं, मगर उनको जमीन पर नहीं उतारा जा रहा है. इनके पूरा होने पर मेडिकल छात्र व मरीज दोनों को फायदा मिलेगा. अगर योजनाएं फाइल से निकले तो मरीजों का इलाज सरकारी अस्पतालों में बिलकुल ही मुफ्त हो जाये. सभी मेडिकल कॉलेज को अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस कर पीएचसी स्तर तक मरीज हित में हर सुविधा मुहैया कराने को लेकर दो बार माइक्रो प्लान बनी, पर वह फाइल विभाग में पड़ी रह गयी. कहीं भी मरीजों के लिए बेड नहीं बढ़े. जेइ व डेंगू के प्रकोप के दौरान सरकारी अस्पताल आंकड़े जुटाने में रहे, जबकि मरीज निजी अस्पतालों में इलाज को पहुंचते रहे. पूरे साल एचआइवीइ किट की बनी रही कमीअस्पतालाें में पूरे साल एचआइवी किट तक नहीं रहा, जिससे सबसे अधिक परेशानी ग्रामीण क्षेत्रों में कार्य करनेवाले सरकारी डॉक्टरों को हुई है. जब कोई महिला प्रसव पीड़ा में गंभीर हालत में अस्पताल पहुंचती है और उसकी डिलिवरी की बात आती है, तो उस वक्त एचआइवी किट की सबसे अधिक जरूरत पड़ती है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की घोषणा के बाद इंदिरा गांधी हृदय रोग संस्थान को नौ फ्लोर का बनना था. इसके लिए 2012 का टारगेट रखा गया, लेकिन 2015 तक काम पूरा नहीं हो पाया है. आइजीआइसी में नियमित निदेशक तक नहीं हैं. डॉक्टर व प्रशासनिक व्यवस्था की सुधार के लिए कोई कमेटी नहीं है. इमरजेंसी में भरती कराने के लिए मरीजों को पैरवी करनी पड़ती है. उपलब्धियां – पीएमसीएच में एमबीबीएस के पचास सीटें बढ़ीं.- अस्पतालों में डायलिसिस की सुविधा बढ़ायी गयी.- निबंधन पर कार्य करनेवाले डॉक्टर व नर्सों को नियमित किया गया. – इलाज कराने के बाद मरीजों का मोबाइल पर सूचना देने की शुरुआत. – पीएमसीएच और आइजीआइएमस में लेक्चर हॉल बनाया गया. – डायरेक्टर इन चीफ के पदों की संख्या बढ़ायी गयी. – दवा दुकानों में छापेमारी कर मार्केट से सब स्टैंडेर्ड दवा को सील किया गया. – पीएमसीएच ने टेंडर कर दवा खरीद करने की हिम्मत की. – ड्यूटी से गायब डॉक्टरों पर कार्रवाई की गयी, सैंकड़ों का वेतन काटा गया. – पोलियो अभियान सफलता पूर्वक चलाया गया. – जेई व डेंगू से इस बार सरकारी आंकड़े के मुताबिक एक भी माैत नहीं. नाकामी- मरीजों के लिए अस्पतालों में नहीं उपलब्ब्ध हो पायी दवाइयां – अधिकांश जांच सेंटर बंद, रेडियोलॉजी व पैथोलॉजी के लिए मरीज जाते हैं बाहर.- अस्पतालों में मरीजों के लिए नहीं बढ़ाये गये बेड- पीएमसीएच व आइजीआइएमएस छोड़ कहीं लग पाया सिटी स्कैन, जबकि इसे लगाने के लिए दो साल से कई बार बैठक हो चुकी है. – बिहार के किसी मेडिकल कॉलेज में एमआरआइ की सुविधा नहीं. इसको लगाने की योजना चार साल पहले बनी है. – मेडिकल कॉलेज में नहीं शुरू हो पाया ट्रोमा सेंटर. गंभीर मरीजों का इलाज भगवान भरोसे होता है. – राजेंद्र नगर में बननेवाला आइ बैंक का काम नहीं हुआ पूरा, नेत्र रोगियों का नहीं होता संपूर्ण इलाज.- न्यू गार्डिनर रोड अस्पताल में मधुमेह व किडनी रोगियों के लिए बस डॉक्टर, इसके अलावा हर काम के लिए जाना पड़ता है बाहर.- राजवंशी नगर अस्पताल में भी हड्डी रोगियों को नहीं मिल पायी पूरी सुविधा. – अस्पताल का नहीं बन पाया भवन, पैसे पड़े रहे कॉरपोरेशन के पास.- बिहार के सभी मेडिकल कॉलेजों में ओटी की हालत खास्ता, नहीं बन पाया ओटी. – 108 की सेवा लगभग पूरे जिले में बंद हो चुकी है. – डेंगू व जेई से पीड़ित मरीजों का सरकारी अस्पतालों में इलाज नहीं हो पाया. सभी ने प्राइवेट में जाकर इलाज कराया. उम्मीदें- सभी मेडिकल कॉलेजों में बढ़ेंगी एमबीबीएस की सीटें. – सिटी स्कैन व एमआरआइ लगाने का काम हो सकता है पूरा. – आइजीआइएमएस में शुरू हो सकता है किडनी प्रत्यारोपण. – पीएमसीएच व एनएमसीएच परिसर में बन सकता है पैथोलॉजी हब.- मरीजों को अस्पताल में मिल सकती हैं दवाइयां. – पीएमसीएच के नये भवन का काम हो सकता है पूरा. – क्लिनिकल स्टेब्लिस्टमेंट एक्स के माध्यम से नर्सिंग होम पर लगेगी लगाम. – पीएचसी स्तर पर मरीजों को मिलेगी 24 घंटे डाॅक्टर व जांच की सुविधा. – राजेंद्र नगर, न्यू गार्डिनर रोड व राजवंशी नंगर सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल में संपूर्ण मरीजों का इलाज किया जाये. – इस बार एमसीआइ मेडिकल कॉलेजों में कमियों को लेकर पेच नहीं लगे. – मेडिकल कॉलेजों में शिक्षकों की कमी पूरी हो. – सभी मेडिकल कॉलेज में खुलेगा कंट्रोल रूम.
BREAKING NEWS
अस्पताल में डॉक्टर तो मिले, पर नहीं मिली दवा व जांच
अस्पताल में डॉक्टर तो मिले, पर नहीं मिली दवा व जांच प्रहलाद कुमारअलविदा 2015 संवाददाता, पटना बिहार की स्वास्थ्य व्यवस्था से मरीजों को बहुत फायदा नहीं हुआ. पूरे साल मरीज अस्पतालों में दवा व सर्जिकल आइटम के लिए परेशान रहे और बीएमएसआइसीएल व विभाग आराम से हाथ पर हाथ धरे बैठा रहा. अस्पतालों में जांच […]
Prabhat Khabar App :
देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए
Advertisement