कभी जुटते थे देश-विदेश के आभूषण व्यापारी व कारीगर हरिहरक्षेत्र हाजीपुर. सोनपुर मेले में कटकिरा बाजार मेले का शोभा हुआ करता है, जहां देश-विदेश के आभूषण व्यापारी और कारीगर आते थे और मन पसंद सांचे की खरीदारी करते थे. एक समय ऐसा था सांचे बनाने की खट-खट और पिट-पिट से पूरा मेला गूंजता रहता था. मेला आये 80 वर्षीय योगेंद्र सिंह चौहान ने बताया कि देश -दुनिया में आभूषण का सांचा गिने-चुने जगहों पर ही मिलते थे. इस मेले में बजाप्ता आभूषण तैयार करने के सांचे का बाजार लगता था और व्यापारियों को सुविधा होती थी. लोग इसे लेने और बनवाने के लिए 15-15 दिनों तक मेले में जमे रहते थे. वर्तमान में विज्ञान ने इतनी तरक्की कर ली है कि अब सांचे की जरूरत ही नहीं रह गयी. मशीन से ही तैयार हो जाती है. घोड़ों का सबसे बड़ा बाजार यही लगता था. पूर्व मध्य कालीन भारत में यह मेला राष्ट्रीय और अंर्तराष्ट्रीय व्यापार के केंद्र बन गया था. इसके अलावा अनेक राजे-रजवाड़ों ने यहां की यात्रा की जिसमें मुख्य रूप से नेपाल नरेश राणा जंग बहादुर सिंह, रीवा के महाराज वेंकट रमण सिंह, काशी नरेश, टिकारी की महारानी, दरभंंगा महाराज आदि शामिल है. वर्ष 1837 में पटना सिटी के जमींदार नारायण साह ने इस क्षेत्र का विस्तार कराया था.
कभी जुटते थे देश-विदेश के आभूषण व्यापारी व कारीगर
कभी जुटते थे देश-विदेश के आभूषण व्यापारी व कारीगर हरिहरक्षेत्र हाजीपुर. सोनपुर मेले में कटकिरा बाजार मेले का शोभा हुआ करता है, जहां देश-विदेश के आभूषण व्यापारी और कारीगर आते थे और मन पसंद सांचे की खरीदारी करते थे. एक समय ऐसा था सांचे बनाने की खट-खट और पिट-पिट से पूरा मेला गूंजता रहता था. […]
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