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विधानसभा चुनाव में 23 विधायकों की जीत पर भारी नोटा का बटन
कौशलेंद्र रमण पटना : 16वीं बिहार विधानसभा के िलए चुनाव में नोटा (नन ऑफ द एवभ) का भी जबरदस्त प्रभाव रहा. इसने 23 सीटों पर सीधे तौर पर परिणाम को प्रभावित िकया. इन 23 सीटों पर िजतने मतों के अंतर से जीत हासिल हुई, उससे कहीं ज्यादा नोटा के पक्ष में बटन दबे. उनमें सबसे […]
कौशलेंद्र रमण
पटना : 16वीं बिहार विधानसभा के िलए चुनाव में नोटा (नन ऑफ द एवभ) का भी जबरदस्त प्रभाव रहा. इसने 23 सीटों पर सीधे तौर पर परिणाम को प्रभावित िकया. इन 23 सीटों पर िजतने मतों के अंतर से जीत हासिल हुई, उससे कहीं ज्यादा नोटा के पक्ष में बटन दबे.
उनमें सबसे अधिक आठ सीटों पर भाजपा के उम्मीदवार विजयी हुए हैं. जदयू और राजद के छह-छह, कांगे्रस, माले और रालोसपा के एक-एक प्रत्याशी को जीत मिली है. बिहार विधानसभा का चुनाव इस मामले में भी खास रहा कि मतदाताओं ने कई पार्टियों की तुलना में नोटा में ज्यादा वोट डाले हैं.
पिपरा में नोटा पर3930 वोट पड़े
पिपरा विधानसभा सीट पर जीत का अंतर और नोटा में पड़े वोटों के बीच बहुत कम का फर्क था़. यहां भाजपा के प्रत्याशी को 3930 मतों से जीत मिली थी, वहीं नोटा में 3960 वोट पड़े थे – मात्र 30 वोट का अंतर. कुचायकोट विधानसभा सीट में जदयू के उम्मीदवार को 3562 वोटों से जीत मिली़. इस सीट पर नोटा में 7512 वोट पडे़, यानी नोटा में 3950 वोट अधिक पड़े़.
87 % सीटों पर हार-जीत का अंतर 5000 का
चुनाव में भले ही कांटे की टक्कर की बात कही जा रही हो, लेकिन पांच हजार से कम वोटों के अंतर से जीत िसर्फ 32 सीटों पर हुई. 87 फीसदी सीटों पर हार-जीत का अंतर पांच हजार से ज्यादा रहा. 50 हजार मतों के अंतर से िसर्फ महागंठबंधन का प्रत्याशी जीता. महागंठबंधन की जीत के अंतर का औसत प्रति सीट 19933 है, जबकि एनडीए का औसत 12360 है.
टिकट देने में सचेत हों पार्टियां : डीएम दिवाकर
नोटा की संख्या पर समाजशास्त्री डॉ डीएम दिवाकर कहते हैं कि अब समय आ गया है कि राजनीतिक पार्टियां टिकट देने के पहले अपने उम्मीदवारों का चयन सावधानी से करें. इस बार का नोटा उन्हें यह संदेश देने के लिए काफी है. नोटा ने मतदान के प्रतिशत को भी बढ़ा दिया है. वैसे लोग भी वोट देने लगे हैं जो या तो इस पक्रिया में ही विश्वास नहीं करते थे या उन्हें कोई उम्मीदवार पसंद नहीं आता है. अभी नोटा का बहुत महत्व नहीं है. लेकिन, चुनाव आयोग को इसे और व्यावहारिक बनाने के उपायों पर विचार करना चाहिए. इससे संसदीय लोकतंत्र और मजबूत होगा.
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