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व्याख्यानमाला: यही तो है लोकतंत्र की खुशबू

पटना : हम सब जानते हैं कि लोकतंत्र क्या है? हमारी जैसे ही समझ होती है हम लोकतंत्र की समझ रखने लगते हैं. अब्राहम लिंकन की वो परिभाषा कि लोकतंत्र जनता का, जनता के लिए जनता के द्वारा चलायी गयी शासन पद्धति सब की जुबां पर होता है. लेकिन लोकतंत्र की खुशबू क्या है? यह […]

पटना : हम सब जानते हैं कि लोकतंत्र क्या है? हमारी जैसे ही समझ होती है हम लोकतंत्र की समझ रखने लगते हैं. अब्राहम लिंकन की वो परिभाषा कि लोकतंत्र जनता का, जनता के लिए जनता के द्वारा चलायी गयी शासन पद्धति सब की जुबां पर होता है. लेकिन लोकतंत्र की खुशबू क्या है? यह सवाल जब भी आये तो हमें यह जानना चाहिए और सबको बताना चाहिए कि हम किसी के भी विचार से सहमत असहमत होते हैं यही उसकी खुशबू है.

ये बातें अधिवक्ता परिषद के तत्वावधान में संविधान दिवस पर आयोजित व्याख्यान में बिहार के कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति इकबाल अहमद अंसारी ने कही. विद्यापति भवन में कार्यक्रम का उद्घाटन दीप प्रज्जवलन और राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम के गायन से हुआ. उन्होंने संवैधानिक लक्ष्य और चुनौतियां विषय पर बिंदुवार अपनी बातें रखी.

सरकार किसी पार्टी की नहीं होती है : उन्होंने आगे कहा कि कोई भी सरकार किसी पार्टी विशेष की नहीं होती है. सरकार सभी के लिए होती है लेकिन आज जो दौर है उसकी राह ही दूसरी होती है. देश को आजाद हुए 66 साल से ज्यादा हो गये लेकिन हर बार चुनाव में वही वादे, वही मुद्दे और वही बातें. हर बार यही कि पानी देंगे, बिजली देंगे. एक वादा पूरा क्यों नहीं करते? लेकिन लोकतंत्र इन्हीं वादों के अासरे चल रहा है. यही कारण है कि आज सीएम बोलते हैं तो भीड़ को विश्वास नहीं हाेता है यहां तक कि कैबिनेट के सदस्याें को भी विश्वास नहीं होता. विश्वास की यही कसौटी असल चैलेंज है.

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