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1972 की जीत का रिकॉर्ड नहीं तोड़ सका वाम ब्लॉक
1962 से 1995 तक ही वाम दलों को 12 से 35 सीटों पर जीत नसीब हुई पटना : पहली बार किसी गैर वामपंथी दल से गंठजोड़ किये बिना चुनाव मैदान में उतरे वाम ब्लॉक को शानदार जीत के लिए इस बार भी तरस जाना पड़ा. हां, वाम ब्लॉक 2010 के इलेक्शन में मात्र एक सीट […]
1962 से 1995 तक ही वाम दलों को 12 से 35 सीटों पर जीत नसीब हुई
पटना : पहली बार किसी गैर वामपंथी दल से गंठजोड़ किये बिना चुनाव मैदान में उतरे वाम ब्लॉक को शानदार जीत के लिए इस बार भी तरस जाना पड़ा. हां, वाम ब्लॉक 2010 के इलेक्शन में मात्र एक सीट पर मिली जीत का ब्रेक तोड़ने में सफल जरुर रहा.
वाम ब्लॉक में शामिल तो वैसे छह दल थे, किंतु तीन सीटों पर जीत मिली, तो सिर्फ भाकपा-माले को. सापीआई और सीपीएम जैसी वाम ब्लॉक की बड़ी पार्टियों का खाता भी नहीं खुला. वाम ब्लॉक 1972 में मिली 35 सीटों पर मिली जीत का ब्रेक तोड़ने का सपना इस बार भी अधूरा ही रह गया. चुनाव बाद वाम ब्लॉक की समीक्षा बैठकों में धीरे-धीरे कई खुलासे हो रहे हैं.
वाम ब्लॉक ने अगस्त-सितंबर में ही एक हो कर चुनाव लड़ने का एलान तो किया था, किंतु उस पर छहों पार्टियां ईमानदारी से अमल नहीं कर पायी. छहों वाम दलों ने 28 सीटों पर वाम ब्लॉक के संकल्पों की धज्जियां उड़ा कर अपने-अपने प्रत्याशियों को चुनाव मैदान में उतार दिया. वाम ब्लाॅक को अंतत: इसका खामियाजा भुगतना पड़ा. उसे महज तीन सीटों पर ही संतोष करना पड़ा.
सीपीआई अपने पूर्व विधायक अवधेश राॅय तक को पुन: जीत नहीं दिला पायी. माकपा को भी अपने कई चर्चित नेताओं को जीत दिलाने में सफलता नहीं मिली. वाम ब्लॉक की इज्जत भाकपा-माले ने बचा ली. वाम दलों को 1995 के बाद से ही डबल डिजीट में जीत मय्यसर नहीं हुई है. 2000 से से कर अब तक वाम दल दो, तीन, एक और तीन सीटों तक ही सिमटी रह गयी है.
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