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बाढ़ : उत्साह से लबरेज दिखे युवा वोटर
बाढ़ : सुबह के आठ बज रहे हैं. बाढ़ स्टेशन से महज दो किमी की दूरी पर बेढ़ना मीडिल स्कूल के बूथ नंबर 193 पर खामोशी से मतदान हो रहा है, लेकिन यहां बीआइटी मेसरा में पढ़नेवाली सोनाली और सुगंधा दो बहनें अपनी दो दिनों की पढ़ाई छोड़ कर यहां केवल वोट देने के लिए […]
बाढ़ : सुबह के आठ बज रहे हैं. बाढ़ स्टेशन से महज दो किमी की दूरी पर बेढ़ना मीडिल स्कूल के बूथ नंबर 193 पर खामोशी से मतदान हो रहा है, लेकिन यहां बीआइटी मेसरा में पढ़नेवाली सोनाली और सुगंधा दो बहनें अपनी दो दिनों की पढ़ाई छोड़ कर यहां केवल वोट देने के लिए पहुंची हुई हैं.
दोनों अपनी हंसी के साथ कहती हैं कि वे केवल पहली बार वोट देने के लिए ही नहीं पहुंची हैं, बल्कि विकास को चुनने के लिए आयी हैं. यह जुनून बाढ़ के युवाओं के उत्साह के सैलाब को ना केवल परिभाषित कर रहा था, बल्कि शहरी वोटरों को आइना भी दिखा रहा था. यह तसवीर बाढ़ के लिए कोई इकलौती नहीं थी. यहां से चार किमी दूर एकडंगा मीडिल स्कूल के बूथ संख्या 215 पर भी खुशबू, पुष्पा और विजयलक्ष्मी भी पहली बार वोट देने के लिए पहुंची थीं. चारों हमउम्र सहेलियां कह रही थीं कि उनके लिए विकास को चुनना पहली प्राथमिकता है.
हम जात से परे, जो हमारे सशक्तीकरण के लिए काम कर रहे हैं उनके साथ खड़े रहेंगे. इन युवा मतदाताओं के जोश के साथ कदमताल कर रही थी नदवां गांव की महिला मतदातागण जो दस बज कर दस मिनट तक कुल 40 प्रतिशत तक वोट कर चुकी थीं. बाढ़ विधानसभा की यह तसवीर देखना वाकई में सुखद था जहां आधी आबादी अपनी भूमिका का बखूबी निर्वहन कर रही थी क्योंकि 1200 मतदाताओं वाले इस बूथ पर 300 महिलाओं ने इस वक्त तक वोट डाल दिया था.
ना धूप की परवाह, ना गरमी की फिक्र : 11 बजे जब सूरज सिर पर चढ़ने की ओर था उस वक्त शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालय में मतदाता वोट डालने के लिए इतने उर्जावान थे कि धूप की उन्होंने कोई परवाह नहीं की ना ही गरमी में घंटों लाइन लगने की फिक्र ही. वे आधे घंटे से लाइन में लगे हुए थे, जबकि पास में ही पेड़ों की घनी छांव थी.
वोट कर रहे लोगों ने कहा कि पहले वोट देंगे उसके बाद घर का काम -धाम होते रहेगा. शहर में ही कमला कन्या मध्य विद्यालय के बूथ नंबर 145 और 146 पर धूप के बावजूद पुरुष और महिला मतदाताओं की भीड़ भी यह बता रही थी कि इस बार वोट के प्रति उनमें खासी दिलचस्पी है.
भीड़ में युवा और बुजुर्ग की अच्छी खासी संख्या दिखायी दे रही थी. बाढ़ बाजार पानी टंकी के बूथ संख्या 139 और 139–ए पर बारह बजे चालीस प्रतिशत वोट हो चुका था. यहां छांव में आराम कर रहे पीठासीन पदाधिकारी ने बताया कि सुबह में लोग ज्यादा आये और अब तक 1500 में से छह सौ से ज्यादा मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग कर लिया है. प्राथमिक विद्यालय आंबेडकर नगर के बूथ पर भी वोटरों की लंबी कतार थी.
, जो पूरे उत्साह के साथ वोट करने का इंतजार कर रहे थे. दिन ढलने पर जाकर लोगों के उत्साह में थोड़ी कमी आयी और कतारें समाप्त हुईं.
पहली बार वोट देने की तो बात ही कुछ और है
वोट करने वाले नये मतदाताओं की खुशी उनके वोटर कार्ड के साथ बखूबी छलक रही थी. बेढ़ना की सोनाली–सुगंधा बहनों की जोड़ी हो या फिर खुशबू–पुष्पा–विजयलक्ष्मी का दोस्ती समूह सबने अपनी मुस्कान के साथ प्रतिक्रिया दी, पहली बार वोट करने की तो बात ही कुछ और है. इन पांचो फर्स्ट टाइम वोटर ने कहा कि उनके लिए केवल डेवलपमेंट प्राथमिकता है.
इ-रिक्शा से इको फ्रेंडली चुनाव
लोकतंत्र के महापर्व में बाढ़ विधानसभा क्षेत्र में इ–रिक्शा से इकोफ्रेंडली चुनाव का संदेश हर ओर नजर आया. वैसे तो इस इलाके में वोटरों को बूथ तक पहुंचाने के लिए प्रत्याशी और उसके प्रतिनिधियों की ओर से गाड़ियों की व्यवस्था रही है, लेकिन इस बार नजारा कुछ और नजर आया.
हर ओर धुंआ फेंकने वाले वाहनों की जगह इ–रिक्शा दिखाई दिया.बाढ़ के लगभग सारे बूथों के आसपास वोटरों की सेवा के लिए ये इ–रिक्शा मौजूद थे, जिस पर सवार हो कर मतदाता विशेष तौर पर महिला वोटर अपने बूथ तक खुशी- खुशी पहुंच रही थीं.
जलेबी-सा चुनाव या चुनाव-सी जलेबी
बाढ़
बाढ़ विस के नदावां गांव के प्रवेश द्वार के पास जैसे ही हम पहुंचते हैं , तो चौक पर चुनावी खिचड़ी और चंद कदम की दूर पर ही मथुरा की जलेबी छन रही होती है. यूं तो मथुरा ने दशहरा मेला के लिए अपनी दुकान लगायी थी, लेकिन उसने अपनी अस्थायी दुकान इस वजह से नहीं हटायी क्योंकि चुनावी मेला अभी बाकी जो था.
इसका उसे सकारात्मक परिणाम भी मिला, दुकानदारी चल निकली. यह इस वजह से भी था क्योंकि दुकान नदावां मीडिल स्कूल की दीवार से सटा हुआ था जिसमें दो बूथ बनाये गये थे़ इन बूथों पर मतदाता वोट देकर आ रहे थे और जलेबी के रस से सराबोर भी हो रहे थे. एक किलो से दो किलो की डिमांड तो आम थी.
मथुरा के तीन कारीगर पसीने -पसीने थे, लेकिन ग्राहकों की मांग का सिलसिला थमने का नाम ही नहीं ले रहा था. चौक पर बैठे राकेश और रजनीश जलेबी खाते आपस में कह रहे थे ये भईया ई चुनाव भी जलेबी जैसी ही है और जलेबी भी चुनाव जैसी. कुछो समझ में नहीं आ रहा है कि कौन आगे है और कौन पीछे. सब चकरघिन्नी की तरह आगे पाछे का का सिरा ढूंढ रहे हैं, लेकिन किसी को कुच्छो नहीं मिल रहा है.
जलेबी का यह गणित समझने में आप इस गांव के इतिहास पर भी एक नजर डाल सकते हैं.बिहार में ज्यादातर लोग इस गांव को अनंत सिंह के गांव के नाम से जानते हैं. इसी गांव से अनंत सिंह पास के मोकामा विधानसभा से दो बार विधायक रह चुके हैं. ग्रामीण संतोष कुमार कहते हैं कि यहां के जलेबी में बहुत कुछ छुपा है. यह गांव पूरे बिहार को अपनी राजनीति में घुमाता रहा है. यहां राजनीति का ककहरा पढ़ाया जाता है.
और हम सब इसका मतलब अच्छी तरह जानते समझते हैं. यहां के विधायक जी इस बार भी पूरी शक्ति के साथ लड़ाई में है. कोई हमें लुभा नहीं सकता.
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