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मसौढ़ी : आर्यभट की धरती पर वोट का गणित

मसौढ़ी विधानसभा भले ही विकास के मामले में पिछड़ा हुआ हो, लेकिन यहां के लोग लोकतंत्र के सच्चे पहरूये हैं. 59 फीसदी वोटिंग कर यहां के मतदाताओं ने समूचे लोगों को इसका अहसास भी करा दिया. लोकसभा चुनाव के मुकाबले यहां वोटिंग में दो फीसदी की वृद्धि हुई है. मसौढ़ी विधानसभा में मुकाबला मुख्य रूप […]

मसौढ़ी विधानसभा भले ही विकास के मामले में पिछड़ा हुआ हो, लेकिन यहां के लोग लोकतंत्र के सच्चे पहरूये हैं. 59 फीसदी वोटिंग कर यहां के मतदाताओं ने समूचे लोगों को इसका अहसास भी करा दिया. लोकसभा चुनाव के मुकाबले यहां वोटिंग में दो फीसदी की वृद्धि हुई है. मसौढ़ी विधानसभा में मुकाबला मुख्य रूप से दो उम्मीदवारों के बीच ही देखा जा रहा है.
पटना : हमारी कार टूटी-फूटी सड़कों से होकर मसौढ़ी नगर परिषद की ओर बढ़ रही है. यह वही विधानसभा का क्षेत्र है, जहां महान गणितज्ञ आर्यभट ने गणित के विषय पर अपना शोध किया था.
अाजादी के पूर्व महात्मा गांधी मसौढ़ी फील्ड में आ चुके हैं. हम सुबह 7:15 बजे नगर परिषद के प्राथमिक शिक्षण प्रशिक्षण संस्थान के बूथ नंबर 65 पर पहुंचे. भवन के बरामदें में तीन अर्धसैनिक बल और छत पर दो सीआरपीएफ के जवान तैनात थे. बाकी बाहर भवन की छाया में अपनी बारी का इंतजार कर रहे थे. 72 साल के बुजुर्ग सुदामा प्रसाद हाथ में पहचान पत्र लिये खड़े थे.
पोलिंग एजेंटों ने पर्ची देख कर उन्हें अंदर जाने की इजाजत दी. हाथ की अंगुली पर स्याही लगाने की बात पर बुजुर्ग बोले, अभी वोट नइखे देलेबानी और स्याही लग गइल बा. इस पर मतदान कर्मी ने समझाया आपका वोट होगा, धीरज रखें. फिर वे इवीएम के पास पहुंचे. आखों से कम दिखायी पड़ने के कारण उन्होंने अपने बेटे को बुलाया, मतदान देकर बाहर अपने पिता का इंतजार कर रहे बेटे संतोष कुमार पहुंचा और बटन दबाने में मदद किया. हमारी कार मसौढ़ी सड़क से होकर समस्तीचक होते हुये कोलहाचक गांव पहुंची.
यह वही गांव है, जिसे स्वतंत्रता सेनानी स्व ब्रजलाल प्रसाद की जन्मभूमि होेने का गौरव प्राप्त है. स्वं ब्रजलाल प्रसाद के पुत्र धर्मेद्र प्रसाद मसौढ़ी विधानसभा क्षेत्र के पूर्व विधायक रह चुके हैं. गया पटना मेन रोड व धनरूवा प्रखंड से सटे इस गांव का नजारा दिल दहला देनेवाला है. पूरे क्षेत्र में सिंचाई का साधन नहीं होने के चलते यहां के अधिकतर खेतों में बंजर जैसा नाजारा था. खुद की सिंचाई व्यवस्था पर निर्भर इस गांव में आज तक एक भी नहर का निर्माण नहीं कराया गया.
नतीजा धान की खेतों में भी दरारें पड़ी हैं और पौधे मर रहे थे. खेत में ही नजर आनेवाले स्थानीय निवासी सीताराम सिंह बताते हैं, आज तक नहर नहीं बनाया गया. पता चला यहां शुद्ध जातीय समीकरणों पर ही वोटिंग होती है और सिंचाई या पिछड़ापन जैसा कोई एजेंडा चुनावों पर असर नहीं डालता. अब समझ में आ रहा है कि क्यों आज तक एक भी नहर व सिंचाई व्यवस्था योजना अधूरी रह गयी.
सुबह से ही लग गयी थी वोटरों की लंबी कतार
निर्वाची पदाधिकारी चंद्रशेखर प्रसाद सिंह ने बताया कि 58.2 प्रतिशत मतदाताओं ने अपने मतों का प्रयोग किया. विधानसभा क्षेत्र के विभिन्न मतदान केंद्रों पर सुबह से ही मतदाताओं की लंबी भीड़ अपनी बारी की प्रतीक्षा में पंक्तिबद्व थी. इसमें महिला मतदाताओं ने घर की चौखट लांघ बड़ी संख्या में मतदान में हिस्सा लिया.
ग्रामीणों व सीआरपीएफ के बीच हुई झड़प
मध्य विद्यालय, इसलामपुर स्थित मतदान केंद्र संख्या 88 पर मतदान में बाधा डालने के आरोप में ग्रामीणों और मौजूद सुरक्षा बल के बीच झड़प भी हुई. इसके कारण करीब घंटे भर मतदान बाधित रहा. पीठासीन पदाधिकारी कमलेश कुमार ने बताया कि ग्रामीणों ने नियम विरूद्व मतदान पर की गयी सख्ती के कारण रोड़बाजी की.
नि:शक्त भाई-बहनों का वोट
आनंद तिवारी
पटना : प्राथमिक शिक्षण प्रिक्षण संस्थान के पोलिंग बूथ नंबर 66 पर विकलांगों का उत्साह देखते बन रहा था. गांव के अस्पताल रोड की रहनेवाली दीपिका कुमारी अपनी बहन रीना कुमारी व भाई मनोज कुमार के साथ जब वोटर आइडी कार्ड लेकर वोट डालने आयीं, तो वहां पर सभी वोटरों की आंखें नम हो गयीं. दरअसल जहां दीपिका अपने पैर से विकलांग हैं, वहीं रीना मानसिक रोग से ग्रसित हैं.
जबकि मनोज को आंखों से कम दिखायी देता है. तीनों भाई-बहनों ने अपने पोलिंग बूथ पर जाकर अपने मताधिकार का प्रयोग किया. बातचीत में रीना ने बताया कि वह डीएन काॅलेज में बीए फाइनल की पढ़ाई करती हैं. पिता के देहांत को कई साल हो चुके हैं. मां व भाई सिलाई कर दीपिका की पढ़ाई पूरी करा रहे हैं. उनको यही उम्मीद है कि शायद दीपिका पढ़ ले और अच्छी नौकरी पा ले.
दीपिका ने बताया कि हो सकता है कि उसके वोट से किसी अच्छे जन प्रतिनिधि का चुनाव हो जाये, जो अपने आप तो कुछ नहीं कर सकते हैं, लेकिन दूसरे को विकास कराने के लिए प्रेरित कर सकते हैं. दीपिका बताती हैं कि नि:शक्तों के लिए सरकार ने काफी योजनायें बनायी हैं, लेकिन यहां एक भी योजना धरातल पर नहीं उतरती है.
शायद हम लोगों के वोट से इस बार कोई नया चेहरा आये और हमारी तकदीर बदल दे. परिवार का बोझ उठाने का दम रखनेवाली दीपिका घर बैठे ट्यूशन भी पढ़ाती हैं. खास बात तो यह है कि दीपिका अपनी मानसिक बीमारी से ग्रसित बहन को ट्राइ साइकिल पर बैठा कर मतदान करने आयी थीं.

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