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पहले की राजनीति बेहतर थी

पहले की राजनीति बेहतर थीसुरेश शंकर सिन्हा – बुद्धा कॉलोनी, जन्म – 1950 घर से ही राजनीति की पाठशाला में पढ़ने वाले और राजनीति की बेहतर समझ रखने वाले बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री श्रीबाबू के पौत्र सुरेश शंकर सिन्हा उर्फ हीरा जी कहते हैं कि वोट देने का उत्साह तो बचपन से ही था. हमेशा […]

पहले की राजनीति बेहतर थीसुरेश शंकर सिन्हा – बुद्धा कॉलोनी, जन्म – 1950 घर से ही राजनीति की पाठशाला में पढ़ने वाले और राजनीति की बेहतर समझ रखने वाले बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री श्रीबाबू के पौत्र सुरेश शंकर सिन्हा उर्फ हीरा जी कहते हैं कि वोट देने का उत्साह तो बचपन से ही था. हमेशा राजनीति को गौर से देखा. हरेक चुनाव में पिता जी को तंग करते थे की हमें भी वोट देना है. लेकिन जब 21 वर्ष का हुआ तब जा कर मैंने अपना पहला वोट अपने पिता जी को ही दिया. उस समय कांग्रेस का राज था. वैसे भी मैंने अपना वोट हमेशा डेवलपमेंट और एंटी करप्शन पर दिया. मैंने हमेशा कांग्रेस को वोट किया था, लेकिन हाल में ऐसी लाचारी हुई की वोट दूसरे दल को देना पड़ रहा है. मैंने पिछले लोकसभा चुनाव में एनडीए और विधान सभा में नीतीश कुमार को वोट किया था. पहले वोटर अपने मन से वोट देते थे, लेकिन अब यह ट्रेंड बदल गया है. लोग रुपयों के साथ-साथ अपना स्वार्थ देख कर वोट करने लगे हैं. पहले स्वच्छ राजनीति होती थी. डेमोक्रेसी थी. अब पैसों पर चुनाव लड़ा जा रहा है और जब पैसों पे चुनाव होगा तो हानि तो जनता की तय है. वोटिंग में डेमोक्रेसी का माहौल बिल्कुल खत्म हो गया है. यह काफी भयानक रोग पकड़ रही है. मैं अभी भी लोगों से कहता हूं, वोट निस्वार्थ भाव से दें. पहले चुनाव में पैसा नहीं बंटा करता था. चुनाव विकास पर होता था. लेकिन अब बदल गया है. बिहार के राजनीति पर चिंता व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि पहले का चुनावी उत्साह और पहले के लोग नेता काफी अलग थे. उन्हें समाज की चिंता थी. अभी तो चुनाव को जाति आधारित बना दिया गया है. जातिगत राजनीति डेमोक्रेसी माहौल के लिए खतरनाक है, लेकिन वोट देने का जो अधिकार है उसे पालन करते हुए हमेशा विकास को प्रमुख मुद्दा बना कर वोट किया और आगे भी करता रहूंगा अब पहले का माहौल ही समाप्त हो गया अखिलेश्वर उपाध्याय, जगदेव पथ, नीति बाग कॉलोनी, जन्म – 1944 अखिलेश्वर उपाध्याय वर्तमान स्थिति पर काफी चिंता जाहिर करते हुए कहते है कि सुधार और बदलाव केवल चुनाव आयोग और चुनाव कराने की प्रक्रिया में हुआ. लेकिन राजनीति पार्टी तो बिल्कुल ही अपने ट्रैक से उतर चुकी है. पहले का चुनावी माहौल ज्यादा अच्छा था नेता सेवा भाव करते थे, लेकिन अब सेवा भाव की राजनीति खत्म हो गयी. हमेशा मैंने अच्छे छवि वाले नेता को वोट किया, लेकिन अब नेताओं में वो छवि खत्म हो रही है. 21 वर्ष के उम्र में मैंने अपना पहला वोट दिया था. पार्टी के विचार धारा पर वोट किया. मेनोफेस्टो पहले सबसे महत्वपूर्ण मानी होती थी. लोग मेनोफेस्टो को ही पढ़ कर वोट किया करते थे. मैं भी सभी दल का मेफोफेस्टो पढ़ता था. जिसका मेनोफेस्टो हमें अच्छा लगता था उसी पार्टी को वोट हमेशा किया. सबसे पहला वोट मैंने गोपालगंज में डाटा था. अब तो समय ऐसा परिवर्तन हुआ कि लोग स्वार्थ देखने लगे, नजदिकी लाभ देखने लगें. पहले हमेशा चुनाव में पार्टियां समाज हित के लिए सोचती थी, लेकिन अब नहीं. धीरे-धीरे सब खत्म हो गया. अब सिर्फ बेकार की बातें होती है. किसी के पास विजन नहीं है. अब तो वोट देने के लिए सोचना पड़ता है कि किसे वोट किया जाये.रैली नहीं पहले सभाएं होती थी 75 वर्ष के उम्र भी वोट देने और अच्छी सरकार चुनने में काफी दिलचस्पी रखने वाले अशोक कुमार श्रीवास्तव कहते हैं कि लाल बहादुर शास्त्री के समय से ही वोट करता आ रहा हूं. पहले चुनावी माहौल में काफी मजा आता था. मैंने वाजपेजी जी को नुक्कड नाटक करते हुए, छोटी-छोटी सभाएं करते हुए देखा था. उस समय की राजनीति ज्यादा अच्छी थी. अभी के राजनीति का कोई अर्थ नहीं रह गया. अभी लोग रैली करते है और उस समय छोटी-छोटी सभाएं के साथ नुक्कड़ नाटक होता था मतदादाओं को जागृत करने के लिए. बड़े-बड़े नेता चुनाव के अंतिम चरण में प्रचार के लिए आते थे और माहौल बदल कर चले जाते थे. 70-80 के दौर तक राजनीति काफी अच्छी रही. छोटे-से-बड़े लोग भी इसका लुफ्त उठाते थे. लेकिन अब नहीं. अभी का दौर काफी बदल गया है, लेकिन यह लोकतंत्र के लिए खतरा है. नया-नया देश आजाद होने के साथ देश वासियों में एक अलग भावना थी. लोगों में देश भक्ति के भावना थी. उस समय स्थाई मुद्दों पर चुनाव नहीं लड़ा जाता था. उस समय फिलोसफी की बातें होती थी, लेकिन फिलोसफी की बाते अब नहीं होती. पहले शिक्षा और स्वस्थ के मुद्दों पर चुनाव लड़ा जाता था जब यह मुद्दा जोर पकड़ा तब कांग्रेस सरकार ने राजीव गांधी के नेतृत्व में टेक्नीकल एजुकेशन को बढ़ावा दिया था. पहले स्वदेशी वस्तु चुनावी मुद्दा रहता था. जितना सुधार चुनाव प्रक्रिया में हुआ उतने ही गलत रास्ते पर राजनीति पार्टियां चली गयी. अब एजेंडा किसी के पास नहीं. भाषण का स्तर खत्म हो गया है. बिहार में अभी भी एक राजनीति साजिश के तहत एजुकेशन सिस्टम को मजबूत नहीं बनाया गया है. अपराजिता नाथ, न्यू पाटलिपुत्रा कॉलोनी- जन्म 1950 65 वर्ष की अपराजिता नाथ कहती हैं कि 1971 के लोकसभा चुनाव में मैंने पहली बार कंकड़बाग कॉलोनी में मताधिकार का प्रयोग की थी. लेकिन कई बार बुथ पर लेट पहुंचने पर कहा जाता था कि आपका वोट पड़ गया है. यह बात सुन कर काफी दुख होता था. मेरे साथ कई बार ऐसा हुआ. उस समय शिकायत करने का कोई जरिया मालूम नहीं था. मैं हमेशा चेंज के लिए वोट करती थी. जिसकी सत्ता वर्तमान में चलती रहती थी उसे मैं वोट नहीं करता था. मैं हमेशा सोचता कि दुसरे पार्टियों को भी मौका मिलना चाहिए. तभी विकास हो सकता है. कई मामलों में पहले का चुनावी माहौल ज्यादा बेहतर था. विकास के नाम पर वोट दिया60 वर्ष की रानी चौबे हमेशा विकास पर वोटे देती आ रही है. उन्होंने कहा मैं हमेशा एनडीए को वोट की हूं. पहले वोट के लिए लोगों का जागरूक करना पड़ता था. घर से बुला-बुला कर बुथ पर वोट डालने के लिए लोगों को ले जाया जाता था. लोग गाड़ी पर बैठा कर वोटिंग दिलाने के लिए ले जाते थे.

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