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सबसे पहले का वोट एक, यादें अनेक

सबसे पहले का वोट एक, यादें अनेकजीवन के पहले वोट की यादों को संजो रहे हैं बुजुर्गयुवा वर्ग को दे रहे हैं वोट देने की सीखलाइफ रिपोर्टर. पटनालोकतंत्र के महापर्व यानी चुनाव काे लेकर हमेशा से ही उत्सुकता और अनुभूति का आनंद बनता रहा है. हर पांच साल पर होने वाले चुनाव को लेकर हर […]

सबसे पहले का वोट एक, यादें अनेकजीवन के पहले वोट की यादों को संजो रहे हैं बुजुर्गयुवा वर्ग को दे रहे हैं वोट देने की सीखलाइफ रिपोर्टर. पटनालोकतंत्र के महापर्व यानी चुनाव काे लेकर हमेशा से ही उत्सुकता और अनुभूति का आनंद बनता रहा है. हर पांच साल पर होने वाले चुनाव को लेकर हर वर्ग में जोश देखने काे मिलता है. इनमें ऐसे भी लोग हैं, जो वोट देने के लिए शुरू से ही तत्पर रहे हैं. जीवन के उतरार्द्ध में आ चुके इन बुजुर्गों की मतदान करने के प्रति ऐसी लालसा काबिलेतारीफ है. पहली-पहली बार वोट डालने को लेकर उनके पास कई तरह की यादें हैं. ये बुजुर्ग कहते हैं बूंद-बूंद से घड़ा भरता है और हमारे एक वोट से बहुत कुछ बदलता है. एक-एक वोट से हजारों वोट बनते हैं और यही वोट लोकतंत्र का मार्ग प्रशस्त करते हैं.तब का दौर ही अलग थापहली बार वोट कब दिया था? इस सवाल को पूछते ही पुनाइचक के निवासी 68 साल के गोपाल स्वरूप यादों के आइने को साफ करते हुए कहते हैं, अल्हड़ उमंग था. जवान होने का अहसास था. यूं लग रहा था जैसे हम भी कुछ हैं. संविधान की तरफ से जो अधिकार मिला है, उस बारे में जानकारी तो उस वक्त नहीं थी, लेकिन वोट देने के लायक हो गये हैं, यह अहसास था. तब केबी सहाय सीएम थे और महामाया प्रसाद सिन्हा सीएम कैंडिडेट के रूप में थे. पहली बार वोट देने का मौका तब ही मिला. सुबह सवेरे ही वोट देने चला गया था. उमंग ऐसी थी कि वोट देने के बाद घर के सभी सदस्यों को साथ लेकर जाता था और मतदान करवाता था. यह काम अब भी करता हूं. जब भी चुनाव होता है, घर के सभी सदस्यों को साथ लेकर जाता हूं और मतदान करवाता हूं. वह कहते हैं, घर के सारे काम तो होते ही रहते हैं, लेकिन देश के प्रति जो जिम्मेदारी है उसे भी तो पूरा करना है. यह पूछने पर कि पहले के बैलेट वाले चुनाव और अभी के इवीएम वाले चुनाव में कौन-सा ज्यादा बेहतर लगता है, वह कहते हैं, बैलेट वाला ही सही था. अभी इवीएम से कई तरह की गड़बड़ियों की बातें सामने आती रहती हैं. नेताओं के चुनाव प्रचार के बारे में याद करते हुए गोपाल कहते हैं, विधानसभा चुनाव में स्थानीय मुद्दे ही हावी रहते हैं, यह उस दौर में भी था और इस दौर में भी है.अब की प्रक्रिया से दिक्कतउम्र के 85 वसंत को देख चुकी दानापुर की जमानो देवी को वह दिन अभी भी बखूबी याद है, जब उन्होंने पहली बार वोट डाला था. अाज से करीब 40 साल पहले अपना पहला वोट देने वाली जमानो देवी को यह तो याद नहीं कि उन्होंने पहला वोट किस नेता के समय दिया था, लेकिन यह जरूर याद है कि कैसे घर के सभी लोगों के साथ पहली बार उन्होंने अपना वोट दिया था. बैलेट वाले मतदान को ज्यादा बेहतर बताने वाली जमानो देवी धीमे लेकिन दृढ़ स्वर में कहती हैं, इवीएम में यह समझ में नहीं अाता है कि किसको वोट देना है? घर से ही पूछ कर जाते हैं कि किसे वोट देना है? पैर टूटने के कारण एक पैर में चलने के दौरान होने वाली दिक्कत से लाठी को सहारा बना कर चलने वाली जमानो देवी कहती है, वोट तो देना ही है. यह मेरा अधिकार है. वह कहती हैं, कई बार ऐसा भी होता है कि जब वह मतदान स्थल पर वोट देने जाती हैं तो वहां के स्टाफ और सुरक्षा बल लाइन में लगने से पहले ही उनकी उम्र का ख्याल कर के पहले वोट देने की अनुमति दे देते हैं.महंगाई के नाम पर उस वक्त भी होता था मतदानमहंगाई का मुद्दा तो तब भी था और अब भी है. यह कहना है खगौल की रहने वाली अकली देवी का. उम्र के 65वें पड़ाव तक पहुंच चुकी अकली देवी कहती हैं, तब बैलेट बॉक्स का जमाना हुआ करता था. पहली बार वोट देने के लिए जब जाने लगी तो घर के लोगों ने बताया कि कैसे और क्या करना है? पहले के चुनाव में और अब के चुनाव में काफी अंतर आ गया है. पहले चुनाव में खड़े होने वाले प्रत्याशी खुद चल कर आते थे और पूरी सादगी से वोट देने की अपील करते थे, लेकिन अब केवल दिखावा है. करीब 35 साल पहले अपने मत काे देने वाली अकली कहती हैं, इस बार भी सबसे पहला काम वोट देने का है. उसके बाद ही घर का कोई काम होगा.अब के चुनाव में हंगामा ज्यादाउम्र के 70वें बसंत देख चुकी चुकी आशा देवी कहती हैं, पहले चुनाव होता था तो पता ही नहीं चलता था कि चुनाव होने वाला है लेकिन अब यह स्वरूप काफी बदल चुका है. पहले इसके लिए जितनी शांति होती थी, अब उतना ही हंगामा होता है. वोट देने जाना है? पूछने पर वह कहती हैं, वोट देने तो जरूर जायेंगे. घर वालों से भी पूछेंगे कि किसे वोट देना है और क्यों देना है? यह तो हमारा अधिकार है. 45 साल से वोट डाल रही आशा कहती हैं, इवीएम से ज्यादा आसान बैलेट वाला चुनाव होता था. जिसको वोट देना होता था, उस पर ठप्पा लगा कर बैलेट बॉक्स में वोट डाल देते थे. अब इवीएम दबाने में थोड़ी-सी असुविधा हाेती है. इन सभी कारणों के बाद भी अपने अधिकार का प्रयोग अवश्य करना है. वह कहती हैं, चुनाव के दिन भी सबसे पहला वोट डालने का ही होगा. सुबह-सबेरे ही जा कर वोट डाल दूंगी.

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