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पटना की अधिकतर सीटों पर सीधी जंग
पटना जिले में विधानसभा की 14 सीटें हैं. सीटों की संख्या, आबादी और क्षेत्रफल के लिहाज से यह राज्य का सबसे बड़ा जिला है. राजधानी से सीधे जुड़े होने के कारण यह राजनीतिक रूप से उतना ही सजग भी है. पूरे जिले को सामाजिक और राजनीतिक समीकरण के हिसाब से तीन भागों में बांटा जा […]
पटना जिले में विधानसभा की 14 सीटें हैं. सीटों की संख्या, आबादी और क्षेत्रफल के लिहाज से यह राज्य का सबसे बड़ा जिला है. राजधानी से सीधे जुड़े होने के कारण यह राजनीतिक रूप से उतना ही सजग भी है.
पूरे जिले को सामाजिक और राजनीतिक समीकरण के हिसाब से तीन भागों में बांटा जा सकता है- पूर्वी, पश्चिमी और राजधानी का क्षेत्र. वर्ष 2014 के विधानसभा चुनाव में 14 सीटों में से 11 पर तत्कालीन राजग (भाजपा व जदयू) का कब्जा था.शेष तीन पर राजद के प्रत्याशी जीते थे.
भाजपा के खाते में छह और जदयू के हिस्से में पांच सीटें थीं. नये राजनीतिक समीकरण में दोनों गंठबंधनों को अपनी सीटें बचाने के साथ अपनी झोली में अतिरिक्त सीटें डालने की भी चुनौती है. जानिए पटना जिले की चुनावी तसवीर…
सुमित कुमार
पटना : 28 अक्तूबर को पटना जिले के चौदह विधानसभा क्षेत्रों में चुनाव होगा. इसका परिणाम तो आठ नवंबर को ही पता लगेगा, लेकिन उससे पहले मैदान में खड़ी राजनीतिक पार्टियां व उम्मीदवार जीत-हार के दावे कर रहे हैं. वर्ष 2010 के विधानसभा चुनाव में जदयू-भाजपा गंठबंधन ने जिले की 14 में से 11 विधानसभा क्षेत्रों पर कब्जा जमाया था.
इनमें से छह सीट बीजेपी ने जबकि पांच सीट जदयू जीता था. राजद-लोजपा गंठबंधन से राजद ने बाकी बची तीन सीटें ली थी. मगर इस बार स्थिति पूरी तरह बदली हुई है. इस बार भाजपा-लोजपा के साथ गंठबंधन कर खड़ी है, जबकि राजद ने जदयू व कांग्रेस के साथ मिल कर महागंठबंधन बना कर चुनाव लड़ रही है. दोनों गंठबंधनों के लिए यह चुनाव किसी लिटमस टेस्ट से कम नहीं होगा.
बीजेपी दस सीटों पर लड़ रही चुनाव
इस बार एनडीए गंठबंधन से दस सीट पर बीजेपी चुनाव लड़ रही है. बाकी बची चार सीट में दो सीट (मोकामा व फतुहा) पर लोजपा जबकि दो पर पूर्व सीएम जीतन राम मांझी की पार्टी हम (फुलवारी और मसौढ़ी) ने अपने उम्मीदवार उतारे हैं. महागंठबंधन कोटे से राजद सर्वाधिक सात सीट पर चुनाव मैदान में डटी है जबकि सहयोगी जदयू चार (मोकामा, बाढ़, दीघा व फुलवारी) व कांग्रेस तीन (बांकीपुर, कुम्हरार और बिक्र म) सीट पर अपनी किस्मत आजमा रही है.
चेहरे वही, पर बदल गया दल
इस बार चुनाव मैदान में पुराने महारथियों के साथ ही कई नये चेहरे भी दिख रहे हैं. कई ऐसे भी चेहरे हैं, जो दल-बदल कर मैदान में अपनी उपस्थिति दिखा रहे हैं. जदयू से निकाले जाने के बाद मोकामा सीट पर वर्तमान विधायक अनंत सिंह वहां निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं.
इसी तरह बाढ़ से जदयू के टिकट पर जीतने वाले ज्ञानेंद्र सिंह ज्ञानू इस बार भाजपा के टिकट पर इसी क्षेत्र चुनाव मैदान में उतरे हैं. पिछली बार जदयू के टिकट पर मनेर से लड़ने वाले श्रीकांत निराला भी इस बार बीजेपी के टिकट पर ही अपनी किस्मत आजमा रहे हैं. पालीगंज में भी भाजपा ने अपने सीटिंग विधायक डॉ उषा विद्यार्थी का टिकट काट कर उनकी जगह रामजनम शर्मा को अपना उम्मीदवार बनाया है.
लोजपा व हम की उपस्थिति
जिले में चार सीटों पर लोजपा व हम की उपस्थिति पहली बार देखने को मिल रही है. लोजपा ने मोकामा सीट पर सांसद सूरजभान सिंह के भाई कन्हैया सिंह व फतुहा में बिल्डर रहे सत्येंद्र सिंह को अपना उम्मीदवार बनाया है.
वहीं, पूर्व सीएम जीतनराम मांझी ने फुलवारी से एक पूर्व सरपंच राजेश्वर मांझी व मसौढ़ी से जिला परिषद अध्यक्ष नूतन पासवान को टिकट देकर चौंका दिया है. भाजपा ने बांकीपुर, कुम्हरार, पटना साहिब, बिक्र म व दानापुर के अपने वर्तमान विधायकों का टिकट बरकरार रखा है.
सात में तीन पर राजद के सीटिंग विधायक
राजद ने पिछले चुनाव में जीते अपने तीन सीटिंग विधायक का टिकट बरकरार रखा है. बाकी चार जगहों पर नये उम्मीदवार दिये हैं. इसी तरह, जदयू ने दीघा सीट पर पूनम देवी की जगह अपनी पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता राजीव रंजन को जबकि मोकामा सीट से विधान पार्षद नीरज कुमार को उम्मीदवार बनाया है.
बाढ़ की सीट पर भी नये उम्मीदवार मनोज कुमार को मौका दिया गया है. फुलवारी से पांचवीं बार श्याम रजक पार्टी के टिकट पर मैदान में उतरे हैं. कांग्रेस ने बांकीपुर से अपनी पार्टी के युवा नेता कुमार आशीष जबकि कुम्हरार से अकील हैदर को उम्मीदवार बनाया है. बिक्र म से इस बार फिर सिद्धार्थ हैं, जो प्रसिद्ध चिकित्सक डॉ उत्पलकांत सिंह के पुत्र हैं.
सबके लिए नाक का सवाल
जिले में चुनाव का पूरा खेल जातीय गणित पर टिका हुआ है. महागंठबंधन को अपने नये सामाजिक समीकरण को पूरी तरह जमीन पर उतारने और उसे अपने पक्ष में वोट के रूप में ट्रांसफर कराने के लिए प्रयासरत है, वहीं, एनडीए अपने परंपरागत वोट बैंक के अलावा दूसरे खेमों के मतों को भी अपने पक्ष में करने की जुगत में है.
इसी गणित से दोनों खेमों ने एक-दूसरे के खिलाफ प्रत्याशी भी उतारा है. राजधानी से सीधे जुड़े होने की वजह से जिले की सभी 14 सीटें सभी दलों के लिए प्रतिष्ठा की हैं.
बांकीपुर
भाजपा के गढ़ को तोड़ने की चुनौती
इस बार 21 प्रत्याशी
एनडीए- नितिन नवीन (भाजपा)
महागंठबंधन- कुमार आशीष (कांग्रेस)
अन्य-शौकत अली (भाकपा), अजय
कुमार (सपा)
भाजपा की परंपरागत सीट
बांकीपुर विधानसभा पर पिछले 25 सालों से भाजपा का कब्जा रहा है. स्व नवीन किशोर सिन्हा पहले इस क्षेत्र के विधायक हुआ करते थे. अब उनके पुत्र नितिन नवीन पिछले तीन टर्म से लगातार विधायक चुने जाते रहे हैं. हर बार उनकी जीत का अंतर भी बढता रहा है.
पिछली बार वह 60840 मतों के अंतर से जीते थे. इस बार महागंठबंधन ने यह सीट कांग्रेस को दी है. कांग्रेस ने यूथ कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष कुमार आशीष को उनके मुकाबले में उतारा है.
यह देखने वाली बात होगी कि आशीष उनको कितनी कड़ी टक्कर दे पाते हैं. कायस्थ बहुल इस क्षेत्र से भाजपा और कांग्रेस दोनों ने कायस्थ उम्मीदवार ही उतारे हैं. सीपीआइ ने मुसलिम उम्मीदवार उतारा है. इस क्षेत्र में हमेशा दो दलों के बीच ही आमने-सामने की टक्कर होती रही है. यहां पर कुल 21 उम्मीदवार हैं. राजधानी का मुख्य इलाका होने की वजह से बांकीपुर सभी दलों के लिए प्रतिष्ठा की सीट है. यहां ट्रैफिक जाम, सफाई, पब्लिक ट्रांसपोर्टेशन व जल जमाव मुख्य समस्या है.
कुम्हरार
भाजपा की परंपरागत सीट
इस बार 34 प्रत्याशी
एनडीए-अरुण कु सिन्हा (भाजपा)
महागंठबंधन- अकील हैदर (कांग्रेस)
अन्य- मनोज कुमार (माले), अजय
वर्मा (निर्दलीय)
कुम्हरार विधानसभा सीट भी भाजपा की परंपरागत सीट मानी जाती रही है. इस सीट पर कभी पूर्व उप मुख्यमंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता सुशील कुमार मोदी चुने जाते थे. उनके सांसद बन जाने पर खाली हुई सीट पर वर्ष 2005 से अरु ण कुमार सिन्हा चुनाव लड़ रहे हैं और लगातार जीतते भी रहे हैं. इस बार भी वह भाजपा के टिकट पर चुनाव मैदान में हैं.
पिछले विधानसभा चुनाव में वह राज्य में सबसे ज्यादा मतों के अंतर से जीतने वाले विधायक थे. उनके खिलाफ महागंठबंधन ने कांग्रेस से अकील हैदर को उम्मीदवार बनाया है. अस्सी के दशक में अकील हैदर दो बार क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं. वर्ष 2005 में भी उन्होंने एनसीपी से चुनाव लड़ा था.
हार गये थे. बदले दौर में वह अरु ण सिन्हा को कितनी कड़ी टक्कर दे पायेंगे, यह भी देखने वाली बात होगी. कुम्हरार में भी जल जमाव और ट्रैफिक जाम शहरवासियों के लिए बड़ी समस्या है. लेकिन, यहां स्थानीय मुद्दों से ज्यादा कहीं राज्य व राष्ट्रीय मुद्दे हावी दिखते हैं.
पटना साहिब
घेरेबंदी के लिए महागंठबंधन का दावं
इस बार 16 प्रत्याशी
एनडीए- नंदकिशोर यादव (भाजपा)
महागंठबंधन संतोष मेहता (राजद)
अन्य- अरशद अयूब (बसपा),
अनय मेहता (माले)
शहरी क्षेत्र के अन्य विधानसभा क्षेत्रों की तरह पटना साहिब विधानसभा भी भाजपा की परंपरागत सीट रही है. इस सीट पर विधानसभा में विरोधी दल के नेता और भाजपा के वरिष्ठ नेता नंद किशोर यादव हर बार बड़ी जीत हासिल करते रहे हैं. उनके लिए यह प्रतिष्ठा की सीट रही है.
पिछले चुनाव में उन्होंने कांग्रेस के परवेज अहमद को 65 हजार से ज्यादा मतों के अंतर से पराजित किया था. लगातार छठी बार जीत हासिल करने एक बार फिर नंद किशोर यादव को भाजपा ने चुनाव मैदान में उतारा है. उनकी घेरेबंदी के लिए महागंठबंधन ने पटना नगर निगम के पूर्व डिप्टी मेयर संतोष मेहता को प्रत्याशी बनाया है.
संतोष मेहता को महागंठबंधन के आधार वोटों पर पूरा भरोसा है, जबकि भाजपा इस सीट को अपने लिए पूरी तरह सुरक्षित मान रही है. इस बार पटना साहिब का चुनाव दिलचस्प हो गया है. कड़े मुकाबले की बात भी कही जा रही है. लेकिन इस दावे में कितना दम है, इसका खुलासा तो आठ नवंबर को ईवीएम खुलने के बाद ही होगा.
दीघा
दोनों खेमों से नये चेहरे मैदान में
इस बार 21 प्रत्याशी
महागठबंधन- राजीव रंजन प्रसाद ((जदयू)
एनडीए- संजीव चौरसिया (भाजपा)
अन्य- रणविजय कुमार (माले) , सिद्धेश्वर पासवान (बसपा)
दीघा विधानसभा सीट से जदयू की पूनम देवी ने पिछली बार बड़े अंतर से जीत हासिल की थी. उन्होंने लोजपा के सत्यानंद शर्मा को 60 हजार से अधिक वोटों के अंतर से हराया था.
बदली हुई राजनीतिक परिस्थिति के चलता उनका टिकट कट गया. वह जीतन राम मांझी के नेतृत्व वाले हम के साथ हो गयी थीं. इस बार क्षेत्र से भाजपा व जदयू दोनों पार्टियों ने नये उम्मीदवार उतारे हैं. भाजपा से पूर्व विधान पार्षद गंगा प्रसाद के पुत्र और भाजयुमो नेता संजीव प्रसाद चौरिसया को, जबकि जदयू से प्रदेश प्रवक्ता राजीव रंजन प्रसाद को टिकट मिला है.
श्री प्रसाद पहले भी पटना मध्य सीट से चुनाव लड़ चुके हैं. इस लिहाज से देखें, तो दीघा में मुकाबला कांटे का और दिलचस्प है. भाजपा को जहां कैडर वोटरों पर भरोसा है, वहीं जदयू महागंठबंधन के आधार वोटरों को अपने पक्ष में गोलबंद करने में जुटा है. जदयू ने कायस्थ उम्मीदवार देकर भाजपा के एक बड़े आधार में सेंध लगाने की कोशिश की है. क्षेत्र में कई पंचायतें भी हैं, जहां दोनों गंठबंधन लगातार जोर-आजमाइश कर रहे हैं.
दानापुर
निर्दलीय ने मुकाबले को रोचक बनाया
इस बार 13 प्रत्याशी
महागठबंधन- राजकिशोर यादव (राजद)
एनडीए – आशा देवी (भाजपा)
अन्य- टिंकू यादव (निर्दल), नरसिंह कुमार उर्फ टेंपो चंद्रवंशी (बसपा)
दानापुर विधानसभा में मुकाबला त्रिकोणीय दिख रहा है. पिछले विधानसभा चुनाव में इस सीट पर निर्दलीय रीतलाल यादव ने भाजपा की आशा देवी को कड़ी टक्कर दी थी. हालांकि जीत आशा देवी की ही हुई थी. उस मुकाबले में राजद प्रत्याशी सच्चिदानंद राय तीसरे नंबर पर रहे थे.
इस बार भी भाजपा के टिकट पर आशा देवी चुनाव मैदान में हैं, जबकि उनके विरोध में महागंठबंधन ने दानापुर नगर परिषद के अध्यक्ष रहे राजकिशोर प्रसाद को राजद के टिकट पर चुनाव मैदान में उतारा है. रीतलाल यादव के विधान पार्षद चुने जाने के बाद उनके भाई टिंकू यादव इस बार निर्दलीय मैदान में उतरे हैं.
वैसे तो क्षेत्र में 13 प्रत्याशी अपनी किस्मत आजमा रहे हैं, लेकिन मुख्य लड़ाई इन तीनों के बीच है. टिंकू यादव जितना जोर लगायेंगे, राजद को उतना ही नुकसान पहुंचेगा. भाजपा का खेमा इसका लाभ उठाने के फिराक में है. विधानसभा का चुनाव विकास के मुद्दे की बजाय जातिगत आधार पर अधिक लड़ा जा रहा है. यहां सभी प्रत्याशियों ने दियारे के वोट को अपने पक्ष में करने की कोशिश तेज कर दी है.
मनेर
फिर आमने-सामने की लड़ाई
इस बार 13 प्रत्याशी
महागंठबंधन- भाई वीरेंद्र (राजद)
एनडीए- श्रीकांत निराला (भाजपा)
अन्य- गोपाल सिंह (माले)
राजपति देवी (बसपा)
इस बार चुनाव में भाई वीरेंद्र एक बार फिर राजद के टिकट पर खड़े हैं. 2010 के चुनाव में भाई वीरेंद्र ने जदयू के श्रीकांत निराला को हराया था. इसबार श्रीकांत निराला ने जदयू का साथ छोड़ कर कमल थाम लिया है. यहां बदले हुए राजनीतिक समीकरण की परीक्षा भी होने वाली है.
मनेर विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत मनेर के साथ ही बिहटा का क्षेत्र भी आता है. आइआइटी सहित कई संस्थानों के बनने से बिहटा भविष्य में पटना के मास्टर प्लान के दायरे में आ जायेगा. लेकिन उस हिसाब से मनेर का विकास नहीं हुआ है. विधानसभा क्षेत्र में भूमि अधिग्रहण से लेकर दियारा क्षेत्र तक की अपनी-अपनी समस्याएं हैं, मगर प्रत्याशी इस पर बात करने के बजाय जातीय गोलबंदी में लगे हैं. पिछले चुनाव में राजद और जदयू के बीच सीधी लड़ाई हुई थी. इस बार राजद और भाजपा आमने-सामने है.
दोनों के प्रत्याशी पुराने चेहरे हैं. मनेर की राजनीति लंबे समय से भाई वीरेंद्र व श्रीकांत निराला के इर्द-गिर्द केंद्रित रही है. दोनों गंठबंधनों के बड़े नेता लगातार अपने-अपने प्रत्याशियों के समर्थन में दौरा कर रहे हैं. माले ने गोपाल सिंह को उतारा है.
फुलवारी (सु)
बागी ने किया दलों को बेचैन
इस बार 19 प्रत्याशी
महागठबंधन- श्याम रजक (जदयू)
एनडीए- राजेश्वर मांझी (हम)
अन्य- उदय कुमार (सपा)
त्रिभुवन रविदास (बसपा)
अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित फुलवारीशरीफ सीट का प्रतिनिधित्व मंत्री सह जदयू विधायक श्याम रजक लंबे अरसे से करते रहे हैं. फरवरी 2005 को छोड़ दें तो वे 1995 से लगातार इस क्षेत्र से विधायक चुने जाते रहे हैं और पांचवीं बार फिर मैदान में उतरे हैं.
उनके खिलाफ एनडीए कोटे से पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी की पार्टी हम सेक्यूलर से राजेश्वर मांझी को उम्मीदवार बनाया गया है. राजेश्वर मांझी पुनपुन प्रखंड के एक पंचायत से सरपंच रहे हैं.
वहीं, राजद छोड़ कर भाजपा में आये उदय मांझी ने भी पार्टी से टिकट नहीं मिलने पर थर्ड फ्रंट के सपा प्रत्याशी के रूप में लड़ाई छेड़ दी है. जातीय गणित के हिसाब से इस क्षेत्र में अनुसूचित जाति के मतदाताओं की आबादी सबसे अधिक है. इसके बाद यादव और मुसलिम मतदाता भी बड़ी संख्या में है.
इस बार मंत्री श्याम रजक को अपने कार्यकाल का हिसाब-किताब जनता के बीच देना पड़ रहा है. हालांकि जदयू खेमा मान रहा है कि बेहतर विकल्प के रूप में उनका प्रत्याशी है. बड़ा सवाल यह है कि बागी से किसे और कितना नुकसान पहुंचेगा.
बिक्रम
पुराने चेहरों के बीच फिर भिड़ंत
इस बार 19 प्रत्याशी
एनडीए – अनिल कुमार, (भाजपा)
महागंठबंधन – सिद्धार्थ, कांग्रेस
अन्य – मुन्ना प्रसाद, बसपा
राज कुमार यादव, सीपीआइ
बिक्र म विधानसभा क्षेत्र में इस बार कड़ा मुकाबला है. पिछली बार मात्र 2300 वोटों से हारने वाले लोजपा के सिद्धार्थ इस बार कांग्रेस के टिकट पर फिर मैदान में उतरे हैं. भाजपा ने निवर्तमान विधायक अनिल कुमार को फिर मैदान में उतारा है.
यानी इस बार भी विधानसभा चुनाव में कमोबेश वही तसवीर है, जो पिछले चुनाव में था. दोनों प्रत्याशी आमने-सामने हैं. दोनों को ही अपने-अपने सामाजिक समीकरण के वोट पर दावा है. सीटिंग होने की वजह से अनिल कुमार को जनता के बीच अपने विकास कार्यो का हिसाब-किताब देना पड़ रहा है.
वैसे, भाजपा को अपने परंपरागत वोट पर पूरा भरोसा है. वहीं, सिद्धार्थ इसी इलाके से आते हैं और उनके पिता डॉ उत्पलकांत बड़े चिकित्सक हैं. हाल के दिनों में उन्होंने इलाके में कई सामाजिक कार्य कराये थे. बिक्रम विधानसभा क्षेत्र में ही नौबतपुर प्रखंड का हिस्सा भी आता है. क्षेत्र की समस्याओं में बिक्र म का ट्रामा सेंटर प्रमुख है. करीब दस साल पहले ही इसका शिलान्यास हुआ था, लेकिन अब तक पूरा नहीं हो सका. नहर में पानी नहीं होने, जल निकासी, सड़क, बिजली पानी को लेकर भी लोगों में शिकायत है.
फतुहा
वोट बैंक में सेंधमारी से परेशानी
इस बार 13 प्रत्याशी
महागठबंधन- डॉ रामानंद यादव (राजद)
एनडीए- सत्येंद्र कु सिंह (लोजपा)
अन्य- शैलेंद्र कुमार (माले), सतीश कुमार (सपा)
फतुहा विधानसभा फिलहाल राजद के कब्जे में है. पिछले चुनाव में राजद के डॉ रामानंद यादव ने 9656 वोटों के अंतर से जद यू के अजय कुमार सिंह को हराया था. इस बार राजद व जद यू साथ-साथ हैं.
एक बार फिर से महागंठबंधन ने यहां पर डॉ रामानंद यादव को उम्मीदवार बनाया है. वहीं, दूसरी तरफ एनडीए में यह सीट लोजपा के खाते में गयी है. लोजपा ने सत्येंद्र कुमार सिंह को उतारा है. मुख्य मुकाबला इन दोनों गठबंधन के नेताओं के बीच ही होने की उम्मीद है. लेकिन सपा और सीपीआइ एमएल ने क्षेत्र में प्रभाव रखने वाले उम्मीदवारों को उतारा है, जो यादव जाति से हैं.
सामाजिक समीकरण के हिसाब से वे राजद प्रत्याशी के आधार वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश में लगे हैं. जिला परिषद की उपाध्यक्ष मीना देवी के देवर सतीश कुमार सपा के टिकट पर जबकि शैलेंद्र कुमार सीपीआइ एमएल से चुनाव लड़ रहे हैं. यहां भी आधार वोटों के भरोसे ही जीत-हार का दावा किया जा रहा है. विकास की बजाय जातिगत एजेंडा सबसे उपर है. एनएच के किनारे होने के बावजूद फतुहा में कई समस्याएं हैं.
मोकामा
नये फ्रंट पर चुनावी संघर्ष
इस बार 15 प्रत्याशी
महागठबंधन- नीरज कुमार (जदयू)
एनडीए- कन्हैया कु सिंह (लोजपा)
अन्य- अनंत कुमार सिंह (निर्दलीय)
देवनारायण सिंह (सपा)
मोकामा विधानसभा क्षेत्र वर्तमान विधायक अनंत सिंह की दबंग छवि को लेकर चर्चित रहा है. पिछले चुनाव में अनंत सिंह ने लोजपा की सोनम देवी को 8954 वोटों के अंतर से हराया था. इस बार जद यू ने अनंत सिंह को बेटिकट किया, तो वह निर्दलीय चुनाव मैदान में हैं.
दूसरी तरफ, जदयू ने विधान पार्षद नीरज कुमार को उम्मीदवार बनाया है. वहीं एनडीए कोटे से लोजपा ने सूरजभान सिंह के भाई कन्हैया कुमार सिंह को टिकट दिया है. इस बार विधानसभा चुनाव में चार मान्यता प्राप्त सहित 15 उम्मीदवार यहां से अपनी किसमत आजमा रहे हैं. तीनों प्रमुख प्रत्याशी उसी सामाजिक आधार से हैं, जिसकी यहां बहुलता है.
ऐसे में कौन-कितना इस सामाजिक आधार से वोट हासिल कर पाता है, यह देखने वाली बात होगी. पिछले चुनाव में तीसरे स्थान पर रहे देवनारायण सिंह इस बार सपा के टिकट पर मैदान में हैं, वहीं पप्पू यादव की पार्टी ने ललन सिंह को अपना उम्मीदवार बनाया है. कभी मोकामा बाहुबलियों के बीच वर्चस्व की लड़ाई को लेकर अक्सर सुर्खियों में रहता था. हालांकि अब यहां स्थिति बदली है.
बाढ़
रोचक होगा इस बार मुकाबला
इस बार 14 प्रत्याशी
एनडीए – ज्ञानेंद्र सिंह ज्ञानू (भाजपा)
महागंठबंधन-मनोज कुमार (जदयू)
अन्य- चक्रधर प्रसाद सिंह (भाकपा),
रवींद्र पासवान (बसपा)
बाढ़ विधानसभा का चुनाव इस बार काफी रोचक होगा. पिछली बार यहां से जदयू के टिकट पर ज्ञानेंद्र कुमार सिंह ज्ञानू ने जीत हासिल की थी. वह नीतीश कुमार के करीबी रहे हैं. उन्होंने राजद के विजय कृष्ण को हराया था. लेकिन, जद यू से दूरी बढ़ने के बाद श्री ज्ञानू भाजपा में शामिल हो गये.
भाजपा ने उन्हें यहां से प्रत्याशी बनाया है. महागंठबंधन में यह सीट जदयू के कोटे में आयी है. जद यू ने यहां से मनोज कुमार को उम्मीदवार बनाया है. जातीय गणित के हिसाब से इस विधानसभा क्षेत्र में कड़ी टक्कर देखी जा रही है. ज्ञानू क्षेत्र में पुराने चेहरे हैं और नये दल से चुनाव में उतरे हैं, जबकि मनोज नीतीश-लालू के आधार पर वोट मांग रहे हैं. बाढ़ की पिच पर चौदह अभ्यर्थी उतरे हैं.
इनमें सीपीआइ के चक्रधर प्रसाद सिंह, बसपा के रवींद्र पासवान और जन अधिकार पार्टी के शंभू सिंह भी शामिल हैं. लेकिन, मुख्य मुकाबला भाजपा और जदयू उम्मीदवार के बीच ही होने की उम्मीद दिख रही है. यहां दोनों खेमों की ओर से जनसंपर्क और प्रचार अभियान तेज है. बात भले ही विकास की हो रही हो, लेकिन गोलबंदी जातीय आधार पर है.
बख्तियारपुर
बागियों से दोनों खेमों को खतरा
इस बार 13 प्रत्याशी
महागठबंधन- अनिरुद्ध कुमार (राजद)
एनडीए- रणविजय सिंह उर्फ लल्लू मुखिया (भाजपा)
अन्य- सुरेंद्र पासवान (भाकपा),
अखिलेश कुमार (बसपा)
बख्तियारपुर सीट पर इस बार 13 उम्मीदवार अपनी किस्मत आजमा रहे हैं. यहां पर प्रमुख मुकाबला महागंठबंधन के राजद उम्मीदवार व वर्तमान विधायक अनिरु द्ध कुमार और भाजपा के रणविजय सिंह उर्फ लल्लू मुखिया के बीच है. बीजेपी ने इस बार पूर्व प्रत्याशी और दो बार विधायक रहे विनोद यादव को बेटिकट कर उनकी जगह रणविजय सिंह उर्फ लल्लू मुखिया को प्रत्याशी बनाया है.
वह उप मुखिया व जिला पार्षद हैं. विनोद यादव को टिकट नहीं मिलने से उनके समर्थक निराश जरूर हैं, लेकिन अपने कैडर वोटरों व गंठबंधन दलों के आधार वोटरों के भरोसे भाजपा कड़ी टक्कर देने में जुटी है.
यादव बहुल होने की वजह से इस सीट पर राजद कड़ी दावेदारी पेश कर रहा है, लेकिन राजद का टिकट नहीं मिलने से निराश जीतेंद्र यादव क्षेत्र में राजद प्रत्याशी की मुश्किलें बढ़ा सकते हैं. बदली हुई राजनीतिक परिस्थिति में यहां नये समीकरण की परीक्षा भी होने वाली है. परिणाम इस पर निर्भर करेगा कि दोनों सामाजिक समीकरण में अपने हिस्से कितना वोट बटोर सकते हैं.
मसौढ़ी (सु)
नये चेहरों के बीच चुनावी जंग
इस बार 18 प्रत्याशी
मसौढ़ी विधानसभा की सीट अनुसूचित जाति के लिए आरिक्षत है. इस सीट पर पिछले विधानसभा में खड़े हुए दोनों प्रमुख उम्मीदवार चुनावी परिदृश्य से गायब हैं. जदयू ने सीटिंग विधायक अरु ण मांझी का टिकट काट दिया है. महागंठबंधन कोटे में यह सीट राजद को दी गयी है, जिसने धनरुआ की प्रखंड प्रमुख रेखा देवी को अपना उम्मीदवार बनाया है. वहीं, पिछले चुनाव में मात्र पांच हजार वोटों से हारने वाले लोजपा के प्रत्याशी अनिल कुमार साधु का टिकट भी कटा है. एनडीए कोटे से यह सीट पूर्व सीएम जीतन राम मांझी की पार्टी हम सेक्यूलर को गयी है, जिसने पटना जिला परिषद अध्यक्ष नूतन पासवान को अपना उम्मीदवार बनाया है. प्रमुख मुकाबला इन्हीं दो पार्टियों के बीच होने की बात कही जा रही है.
राजद से पूर्व विधायक रहे धर्मेंद्र यादव ने पार्टी छोड़ कर भाजपा का दामन थाम लिया है और नूतन पासवान के पक्ष में जम कर प्रचार कर रहे हैं. इससे राजद की परेशानी बढ़ी है. विधानसभा और लोकसभा चुनाव में हमेशा तीसरे स्थान पर रहने वाली सीपीआइ एमएल से गोपाल रविदास एक बार फिर मैदान में हैं. उन्हें अपने कैडर मतों पर भरोसा है.
पालीगंज
विकास की जगह जातीय गोलबंदी
इस बार 14 प्रत्याशी
महागंठबंधन – जयवर्धन यादव उर्फ बच्चा
यादव (राजद)
एनडीए – रामजन्म शर्मा ( भाजपा)
अन्य – अनवर हुसैन, सीपीआइ एमएल
अलख निरंजन पाल (बसपा)
पिछले विधानसभा चुनाव में इस सीट पर भाजपा की डॉ उषा विद्यार्थी ने राजद के जयवर्धन यादव को दस हजार से अधिक मतों के अंतर से पराजित किया था. मगर भाजपा ने अंतिम समय में उनका टिकट काट कर पूर्व विधायक रामजन्म शर्मा को मैदान में उतारा है. महागंठबंधन कोटे से पूर्व प्रत्याशी जयवर्धन यादव उर्फ बच्चा यादव एक बार फिर मैदान में खड़े हैं.
दोनों खेमों अपने-अपने वोट बैंक को अपने पक्ष में गोलबंद करने के साथ बिखरे मतों को भी समेटने में जुटे हैं. सीपीआइ एमएल ने अनवर हुसैन को उम्मीदवार बनाया है. कभी यहां से माले के नंद कुमार नंदा जीते थे. नेता चाहे लाख दावे करें, मगर पालीगंज विधानसभा क्षेत्र के सुदूर हिस्सों में अब भी सही ढंग से विकास की रोशनी नहीं पहुंच सकी है.
इस क्षेत्र को जिले के नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में गिना जाता है. इस क्षेत्र में नहर में पानी नहीं होने, महिलाओं के लिए डिग्री कॉलेज नहीं होने, अनुमंडलीय अस्पताल में समुचित व्यवस्स्था नहीं होने सहित कई मूलभूत समस्याएं हैं, लेकिन कोई उम्मीदवार इस पर चर्चा करता नहीं दिखता. विकास पर बात की जगह जातीय गोलबंदी हावी है.
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