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थाने से निराश महिलाएं आयोग व हेल्पलाइन की शरण में

थाने से निराश महिलाएं आयोग व हेल्पलाइन की शरण में 50 फीसदी केसों में महिलाओं को नहीं मिलता थाने से न्यायसंवाददाता, पटना एजी कॉलोनी की रीना ( परिवर्तित नाम ) इन दिनों बहुत परेशान है. तीन साल पहले कोर्ट मैरिज करने के बाद वह अपने मायके में रह रही थी. अब अचानक उसके ससुरालवाले उसके […]

थाने से निराश महिलाएं आयोग व हेल्पलाइन की शरण में 50 फीसदी केसों में महिलाओं को नहीं मिलता थाने से न्यायसंवाददाता, पटना एजी कॉलोनी की रीना ( परिवर्तित नाम ) इन दिनों बहुत परेशान है. तीन साल पहले कोर्ट मैरिज करने के बाद वह अपने मायके में रह रही थी. अब अचानक उसके ससुरालवाले उसके पति की दूसरी शादी करा रहे हैं. उसके लाख समझाने पर भी नहीं मान रहे है. इससे तंग आकर उसने ससुरालवालों के खिलाफ शास्त्रीनगर थाने में केस दर्ज करायी है. थाने में उसकी बात सुनने के बावजूद उस पर झूठे आरोप लगाये जा रहे हैं. इससे निराश अब रीना महिला हेल्पलाइन में अपनी शादी बचाने की गुहार लगायी है. रीना अकेली नहीं, जो न्याय की उम्मीद लिये थाने तो पहुंचती है, पर उसे वहां न्याय के बदले, झूठे आरोपों में फंसा दिया जाता है. इतना ही नहीं, कई बार तो बिना केस दर्ज किये ही थाने से यह कह कर भगा दिया जाता है, कि उसका केस वेबुनियाद है. इस साल 2900 मामले महिला आयोग में दर्ज महिला अायोग में इस वर्ष कुल 2900 मामले दर्ज किये गये हैं. इनमें 1500 मामले ऐसे हैं, जहां पीड़िता को थाने से कोई राहत नहीं मिलने की बात कही गयी है. इससे आयोग की ओर से अधिकांश मामलों में थाने से पीड़िता के मामले में कोई कार्रवाई नहीं करने का जबाव मांगा जाता है. आयोग की सदस्य रीना कुमारी बताती हैं कि अधिकांश मामलों में पीड़िता को इस कारण न्याय नहीं मिल पाता है, क्याेंकि वे मामले की प्रथम रिपोर्ट संबंधित थानों में दर्ज नहीं करा पाती है. वहीं, कुछ मामले दर्ज होते भी हैं, तो उन पर कार्रवाई नहीं होने से पीड़िता हतोत्साहित हो जाती है. वे कई बार हिंसा सहने को मजबूर हो जाती हैं. इससे छेड़खानी की घटना सीधे दुष्कर्म का रूप ले लेती है. ऐसे में यदि थानों की ओर से महिलाओं को प्रोटेक्शन मिलता है, तो बहुत हद तक हिंसा राेकी जा सकती है. एसएसपी को भी भेजी जाती है प्रतिलिपी आयोग की ओर से कई बार थानाध्यक्ष को बोला जाता है. बावजूद इसके प्रतिपक्षी की उपस्थिति नहीं करायी जाती है. ऐसे में आयोग की ओर से थानाध्यक्ष को भेजी गयी कॉपी की प्रतिलिपी एसएसपी को भेज दी जाती है. इससे वे जल्द रिस्पांस देते हैं. दूरदराज की महिलाओं के लिए आयोग आना संभव नहीं है. ऐसे में यदि पीड़िता काे थाने से मदद मिलती है, तो बहुत हद तक हिंसा पर काबू पाया जा सकता है. साथ ही लोगों में खौफ भी बनेगा.कोट 50 फीसदी महिलाएं केस दर्ज कराने से पूर्व थाने में शिकायत करती हैं. ऐसे में कई बार फोन कर थानाध्यक्ष को सूचित किया जाता है. लड़िकयां भी कई बार असुरक्षित होने पर जब पुलिस को फोन करती हैं, तो कोई रिस्पांस नहीं मिलता है. इसके बाद वह हमसे मदद मांगती हैं. प्रमीला कुमारी, परियोजना प्रबंधक, महिला हेल्पलाइन\\\\B

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