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टिकट मिलते ही जाति की गोलबंदी में जुट जाते हैं लोग

गिरींद्र नाथ झा बिहार में शहर और गांव का फर्क जबरदस्त है तो जातियों के बीच की गोलबंदी भी मजेदार है. किसानी करते हुए हम जिस तरह बीज बोने के बाद सब कुछ प्रकृति पर छोड़ देते हैं ठीक वैसे ही विधायक बनने की लालसा लिए लोग टिकट मिलते ही जाति की गोलबंदी में जुट […]

गिरींद्र नाथ झा
बिहार में शहर और गांव का फर्क जबरदस्त है तो जातियों के बीच की गोलबंदी भी मजेदार है. किसानी करते हुए हम जिस तरह बीज बोने के बाद सब कुछ प्रकृति पर छोड़ देते हैं ठीक वैसे ही विधायक बनने की लालसा लिए लोग टिकट मिलते ही जाति की गोलबंदी में जुट जाते हैं. विकास से पहले जाति को लेकर लोगबाग चर्चा कर रहे हैं. विकास की बातें पहले पोस्टरों में दिख जाती थी अब शायद प्रचार के दौरान सुनने को मिलती रहेगी.
इस बार विधानसभा चुनाव में कई छोटी पार्टियों के दिग्गज शक्ति प्रदर्शन करते नजर आ रहे हैं. पार्टिय़ों से बाहर-अंदर का खेल जारी है. माना जा रहा है कि बसपा, सपा, एनसीपी जैसी पार्टी इस बार खेल करेगी. लखनऊ में हमारे एक पत्रकार मित्र बता रहे थे कि बसपा की ओर से जहां बहन मायावती तो सपा की ओर मुलायम सिंह और यूपी के सीएम अखिलेश यादव के साथ कई मंत्री बिहार आ सकते हैं.
अब चलिए कटिहार की बात करते हैं. यहां लोकसभा चुनाव में एनसीपी के कद्दावर नेता तारिक अनवर ने भाजपा के निखिल चौधरी को हराया था. कटिहार में तारिक अनवर की जमीनी पकड़ है. कहा यह जा रहा है कि चुनाव के दौरान वे शरद पवार को बिहार लाने की तैयारी कर रहे हैं. उनकी पार्टी के लोग तो उन्हें मुख्यमंत्री भी मानने लगे हैं. राजनीति सही अर्थों में टॉनिक है.
कभी कांग्रेस में तारिक अनवर की पूछ थी. वे संजय गांधी का बिहार का चेहरा थे, लेकिन बाद में कुछ ऐसा हुआ कि वे किनारा होते चले गए.
कटिहार की तसवीर इस बार अलग है. भाजपा से बगावत कर पिछला विधानसभा चुनाव जीतने वाले दुलालचंद गोस्वामी अब जदयू में हैं और सरकार में मंत्री भी. पूर्व शिक्षा मंत्री डॉ रामप्रकाश महतो राजद छोड़ जदयू में हैं. कटिहार विधानसभा सीट लगातार दो बार से भाजपा के कब्जे में है. 2010 के चुनाव में यहां से भाजपा के तारकिशोर प्रसाद जीते थे. इस बार भी उन्हीं को टिकट मिला है.
कटिहार की अपनी समस्या है, जिसमें एक ट्रैफिक भी है. इस शहर को प्लान बनाकर नहीं बसाया गया शायद! शहर में प्रवेश करने के लिए काफी मेहनत करनी पड़ती है. रेलवे मंडल की वजह से यह बड़ा बाजार है लेकिन बाजार को ढंग से रूप नहीं दिया गया है.
पूर्णिया- कटिहार सड़क की हालत खराब है. उधर, राजनीति में कितने मोड़ आते हैं इसकी बानगी लालू यादव के साले हैं.
राजद अध्यक्ष के छोटे साले सुभाष यादव ने सांसद पप्पू यादव की जन अधिकार पार्टी का दामन थाम लिया है.
सुभाष यादव की टिप्पणी तो और भी मजेदार है. पार्टी क सदस्यता लेने के बाद उन्होंने कहा कि पप्पू के नेतृत्व में एक बार फिर बिहार में सामाजिक न्याय की लड़ाई प्रारंभ हुई है. यह राजनीति भी न खुद में एक शोध का विषय है.
चुनावी बतकही चौक चौराहों के बिना अधूर लगता है. कटिहार के मिरचाई-बाड़ी चौक पर हमारी मुलाकात एक कालेज छात्र रमेश से होती है. रमेश ने कहा, बिहार को लेकर लोगों की धारणा बदलने की जरुरत है. उनकी इच्छा है कि इंटर के बाद बिहार के लोग दिल्ली या अन्य राज्यों में पढ़ाई के लिए न जाएं. रमेश जैसे लोगों की बातों को भी सुनने की जरु रत है. लेकिन जातीय गणित में फंसी राजनीति ऐसी बातों को नजरअंदाज कर देती है.
रानीपतरा के एक किसान अवधेश यादव ने कहा कि चुनावी मुद्दे में किसानी को शामिल कौन कर रहा है? यह सवाल भी जायज है. उधर, प्रधानमंत्री 30 सितंबर को विदेश से लौटे. इसके बाद उनका झारखंड में सरकारी कार्यक्रम है. दो अक्टूबर को वे दुमका में प्रधानमंत्री मुद्रा योजना का शुभारंभ कर एक लाख लोगों के बीच 200 करोड़ रुपये का ऋण बांटेंगे.
झारखंड में भाजपा की ही सरकार है, यह जानना जरूरी है. उसी दिन खूंटी में प्रधानमंत्री की सभा होगी. इसके बाद तो मोदी पूरी तरह बिहार के सियासी समर में कूद जाएंगे. दो अक्टूबर को ही वह बांका और चार को लखीसराय में चुनावी रैलियों को संबोधित करेंगे. दोनों इलाकों में 12 को मतदान है.
ये तो हुई बड़ी-बड़ी बातें. लेकिन इन सबके बीच आपका किसान पूर्णिया-कटिहार सड़क के हाल पर माथा पीट रहा है.
कुछ दिन पहले तक यह सड़क ठीक थी लेकिन घुटने भर के गड्ढे को देखकर अब तो उधर जाना दूभर हो गया है. बाद बांकि जो है सो तो हइए है.
(श्री झा पत्रकारिता की पढ़ाई करने के बाद अपने गांव में रहकर खेती-किसानी कर रहे हैं.)

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