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बिहार चुनाव में जातीय गोलबंदी बना मुद्दा, पढिए दो विशेषज्ञों की इस पर टिप्पणी

आशुतोष के पांडेय पटना : बिहार विधानसभा के इस चुनाव में कई मुद्दे ऐसे हैं जो गत चुनाव में कहीं चर्चा में नहीं थे. उसी में एक मुद्दा है जाति का. पिछली बार के चुनाव का मुद्दा पूरी तरह विकास का था. लेकिन परिस्थितियां बदली हैं तो समीकरण भी बदल गए हैं. जो पार्टियां कभी […]

आशुतोष के पांडेय

पटना : बिहार विधानसभा के इस चुनाव में कई मुद्दे ऐसे हैं जो गत चुनाव में कहीं चर्चा में नहीं थे. उसी में एक मुद्दा है जाति का. पिछली बार के चुनाव का मुद्दा पूरी तरह विकास का था. लेकिन परिस्थितियां बदली हैं तो समीकरण भी बदल गए हैं. जो पार्टियां कभी एक दूसरे के साथ थीं. अब वे एक दूसरे के आमने-सामने हैं. इस बार के विधानसभा चुनाव में खुलेआम मंच से जातिगत गोलबंदी का आह्वान किया जा रहा है. महागंठबंधन के नेता लालू प्रसाद साफ तौर पर जनता से यह अपील कर रहे हैं वहीं पीएम नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी भी परदे के ओट से पिछड़ा कार्ड खेल रही है. मोदी को देश का पहला ओबीसी पीएम प्रचारित किया जा रहा है. इस बार के चुनाव में विकास के साथ जातीय समीकरण और पैकेज दो और बड़े राजनीतिक मुद्दे जुड़ गए हैं.

जातीय गोलबंदी से हो सकता है नुकसान

आखिर क्या हैं इसके मायने और कितना लाभ हो पाएगा उन पार्टियों को जो जातिगत गोलबंदी की बात कर रही हैं. हालांकि बिहार में बिना जातिगत समीकरण के राजनीति हो ऐसा संभव नहीं दिखता. ए.एन.सिन्हा समाज अध्ययन संस्थान पटना के प्रो. अजय कुमार झा इस मुद्दे को अलग नजरिए से देखते हैं. प्रो. अजय कुमार झा का कहना है कि जातिवाद का नारा गत चुनाव में हवा में नहीं तैर रहा था. इस बार ज्यादा दिखने लगा है. यह मुद्दा थोड़ी देर के लिए किसी पार्टी के लिए कम फायदेमंद हो सकता है. लेकिन ये नुकसान भी उतना ही करेगा. प्रो. मानते हैं कि जाति की राजनीति की बात इस चुनाव में जो खुलकर और मुखर होकर कर रहे हैं उन्हें उसका नुकसान उठाना पड़ेगा. क्योंकि महागंठबंधन में शामिल स्वयं मुख्यमंत्री नीतीश कुमार मंच से जातिगत राजनीति या समीकरण की बात नहीं करते. ऐसी बातें करने पर इसके खिलाफ दूसरी जातियां गोलबंद हो सकती हैं और उस दल या पार्टी को भारी नुकसान हो सकता है.

ऐसी बात करना भविष्य के लिए ठीक नहीं

वहीं वरिष्ठ गांधीवादी विचारक रजी अहमद का कहना है कि इसबार के चुनाव में पूरी तरह राजनीतिक दल और राजनीति दोनों का चरित्र बदल गया है. जाति की बात कर चुनाव लड़ना और किसी खास जाति का मंच से आह्वान करना ये बिल्कुल गलत है. ऐसा नहीं होना चाहिए जो हो रहा है वह बिल्कुल गलत है. आने वाली पीढ़ी और आगामी दिनों के लिए बिल्कुल ठीकनहींहै.

ज्ञात हो कि बिहार विधानसभा चुनाव में इसबार सभी पार्टियों ने टिकट बंटवारे से लेकर सीट तय करने तक में जातिगत समीकरण का ख्याल रखा है. इतना ही नहीं मीडिया में आ रही खबरों के मुताबिक कई नेता मंच से भी जातीय गोलबंदी की बात करते हैं.

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