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पारसी समुदाय दूध में शक्कर की तरह : करण

पारसी कौम ने आज तक नहीं किया कभी किसी तरह के विध्वंस का काम पटना : पारसी कौम भारतीय समुदाय में उसी तरह रचा-बसा हुआ है, जिस तरह से दूध में शक्कर. यह पूरी तरह से शांतिप्रिय समुदाय है. इतिहास गवाह है कि इसने कभी किसी धर्म को क्षति पहुंचाने या किसी तरह के विध्वंस […]

पारसी कौम ने आज तक नहीं किया कभी किसी तरह के विध्वंस का काम
पटना : पारसी कौम भारतीय समुदाय में उसी तरह रचा-बसा हुआ है, जिस तरह से दूध में शक्कर. यह पूरी तरह से शांतिप्रिय समुदाय है. इतिहास गवाह है कि इसने कभी किसी धर्म को क्षति पहुंचाने या किसी तरह के विध्वंस का कोई काम नहीं किया है. ये बातें बर्मिघंम विवि के चांसलर लॉर्ड करण बिलिमोरिया ने होटल अशोका में आयोजित आद्री के कार्यक्रम में कही.
आद्री फाउंडेशन लेक्चर का विषय ‘ जमशेदजी टाटा की भूमिका : भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में पारसियों का योगदान ‘ रखा गया था. उन्होंने कहा कि कैम्ब्रीज विवि ने 800 साल पूरे कर लिये हैं. अब तक इसने 90 नोबल पुरस्कार विजेताओं को पैदा किया है. फिर भी यह नालंदा विवि के सामने कुछ नहीं है. लॉर्ड बिलिमोरिया ने पारसी धर्म, समुदाय और इसके तमाम विशिष्ट लोगों की भारतीय सभ्यता, संस्कृति और आजादी के आंदोलन में किये गये योगदान पर विस्तार से प्रकाश डाला.
पारसी दर्शन बुद्ध के दर्शन के समान
उन्होंने कहा कि पारसी का दर्शन बुद्ध के दर्शन के समान ही है. जिसमें यह कहा गया है कि बिना विश्लेषण और पर्यवेक्षण के किसी भी बात पर भरोसा मत करो. उन्होंने कहा कि भारत में हजारों साल पहले गुजरात में आकर बसनेवाले, फिर इसके बाद मुंबई समेत अन्य स्थानों पर फैलनेवाला पारसी समुदाय भारतीय संस्कृति, समाज और आर्थिक उत्थान में विशेष योगदान रहा है.
पारसी समुदाय के कई लोगों का भारत के विकास में उल्लेखनीय योगदान रहा है. आजादी के दौरान जमशेदजी टाटा ने उद्यम स्थापित करने पर खासतौर से ध्यान दिया. ताकि अंग्रेजों के दमन को आर्थिक रूप से कमजोर बना कर स्वदेशी को सशक्त बनाया जा सके.

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