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अपराध के आंकड़ों को छुपा कर ”फेस सेविंग” कर रहे हैं नीतीश
पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी का फेसबुक पोस्ट पटना : पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने अपने फेसबुक पर लिखा है कि भाजपा से गंठबंधन टूटने के बाद स्पीडी ट्रायल के जरिये अपराधियों को सजा दिलाने में नाकाम रहने पर अपराधियों का मनोबल बढ़ा है. फिरौती के लिए अपहरण की घटनाओं में भी बढ़ोतरी हुई […]
पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी का फेसबुक पोस्ट
पटना : पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने अपने फेसबुक पर लिखा है कि भाजपा से गंठबंधन टूटने के बाद स्पीडी ट्रायल के जरिये अपराधियों को सजा दिलाने में नाकाम रहने पर अपराधियों का मनोबल बढ़ा है. फिरौती के लिए अपहरण की घटनाओं में भी बढ़ोतरी हुई है. लेकिन सरकार इस अपहरण को विविध घटना बताकर इसे छुपाने का प्रयास कर रही है. सरकार ने अब स्पीडी ट्रायल के आंकड़ों को बताना ही छोड़ दिया है.
अपराध के बढ़ते आंकड़ों को छुपा कर नीतीष कुमार अपना ‘ फेस सेविंग’ कर रहे हैं. पूर्व उपमुख्यमंत्री ने कहा है कि प्रधानमंत्री की यह टिप्पणी पूरी तरह सच है कि 2015 की जनवरी की तुलना में जून में आपराधिक घटनाओं में 34 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जिससे बिहार में एक बार फिर जंगल राज की आहट सुनाई देने लगी है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बताएं कि राजग की सरकार में जहां प्रतिवर्ष 10 से 12 हजार अपराधियों को सजा दिलायी जा रही थी, वहीं गठबंधन टूटने के बाद यह आंकड़ा प्रतिवर्ष चार से पांच हजार तक सीमित क्यों हो गया? 2006 से जून, 2013 तक स्पीडी ट्रायल के जरिए जहां 82852 अपराधियों को सजा दी गयी, वहीं भाजपा से गंठबंधन टूटने के बाद के 26 महीने में मात्र आठ हजार लोगों को ही सजा क्यों दिलायी जा सकी .
क्या मंद पड़े स्पीडी ट्रायल के आंकड़ों को छुपाने के लिए ही सरकार ने जून, 2013 के बाद से उसे प्रदर्शित करना नहीं छोड़ दिया? क्या 2006 के पहले उद्योग का रूप ले चुके फिरौती के लिए अपहरण की घटनाओं पर काफी प्रयास के बाद काबू नहीं पाया गया था मगर भाजपा से गंठबंधन टूटने के बाद एक बार फिर बिहार में फिरौती के लिए अपहरण की घटनाएं तेजी से नहीं बढ़ी हैं?
क्या सरकार इसे ‘अपहरण की विविध’ घटनाओं की श्रेणी में रख कर तथ्यों को छुपाना नहीं चाहती है? 2013 में जहां अपहरण की विविध घटनाओं के तहत 1396 वारदातें दर्ज हुई थीं वहीं 2014 के 10 महीने में ही अपहरण की विविध घटनाएं बढ़ कर 1867 कैसे हो गयी? क्या यह आश्चर्यजनक नहीं है कि 2015 के जून तक ही यह आंकड़ा 1306 पर पहुंच गया है? उन्होंने कहा कि भाजपा से गंठबंधन टूटने के बाद अपराधियों को सजा दिलाने में सरकार विफल क्यों हो गई? क्या यह जंगल राज की आहट नहीं है?
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