डॉ विपिन झा,लंदन से
बिहार में विधानसभा चुनाव होने वाले है. सरकार किसी की भी बने, लेकिन जब तक व्यवस्था में मूलभूत परिवर्तन नहीं होगा तब तक बिहार की दशा नहीं सुधर सकती. वर्तमान व्यवस्था की नींव अंग्रेजों ने रखी थी जिसका मकसद समर्थवान लोगों के हितों की रक्षा करना था.
नीतीश कुमार ने पिछले दस वर्षों में बिहार की छवि बदली है. प्रदेश में सड़कें बनी हैं, बिजली भी गांव तक पहुंच गयी है. लड़कियों के लिए साइकिल योजना ने शिक्षा के क्षेत्र में सकारात्मक बदलाव ला दिया है. लेकिन विकिसत राज्य बनने के मापदंड से बिहार आज भी बाहर है. शिक्षा, स्वास्थ्य, परिवहन, सफ़ाई, रोजगार के अवसर अब भी सीमित हैं. प्रतिभाओं का पलायन राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर तक जारी है.
अप्रवासी बिहारवासियों में प्रदेश के लिए काम करने की इच्छा है, लेकिन सरकार की तरफ से किसी भी तरह का प्रोत्साहन नहीं मिलता है. अगर राज्य सरकार राज्य में बड़े उद्योगपतियों के अलावा छोटे-छोटे निवेशों को भी बढ़ावा दे और लालफीताशाही कम कर दे तो निवेश करने वालों की लाइन लग जाएगी. विदेशों में रहनेवाले
बिहारियों की संख्या हजारों में है. बिहार की भौगोलिक स्थिति बड़े उद्योगों को आकर्षित नहीं करती है. लेकिन, बिहार शिक्षा, स्वास्थ्य और पर्यटन का गढ़ ज़रूर बन सकता है. देश के बाहर से आने वाले पर्यटकों के बीच राजस्थान काफी लोकप्रिय है. बिहार में भी अपने आप को विश्व पर्यटन के मानचित्र पर लोकप्रिय बनाने की कूबत है. जरूरत सिर्फ पर्यटकों के लिए माकूल पर्यटन नीति बनाने की है.
बिहार को विकास के रास्ते पर दौड़ाने के लिए यहां की जनता को भी आगे आना होगा. यहां की आवाम को जातिवादी राजनीति से उपर उठना होगा और अपने नेताओं को मजबूर करना होगा कि अब विकास के अलावा हमें किसी और मुद्दे पर बात करना मंजूर नहीं है. राजनीति समाज का प्रतिबिंबि है. जैसी सामाजिक सोच होगी राजनेता वैसी ही राजनीति करेंगे. अगर लोग पैसे ले कर और जाति के आधार पर वोट करेंगे तो सिर्फ नेताओं को दोष देना गलत है. बिहार में सोच को बदलने वाले नेताओं की जरूरत है.
इस तरह के नेताओं की कमी दशकों से बिहार में है. शायद हमारे पिछड़ेपन का ये मूल कारण है. प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद और पूर्व रेलमंत्री ललित नारायण मिश्र को शायद इसीलिए आज भी याद किया जाता है क्योंकि उन्होंने सोच बदलने और विकास की राजनीति को प्रमुखता दी.
इंगलैंड में रह रहे अप्रवासी भारतीयों में बिहार के चुनाव को लेकर एक खूब चरचा हो रही है. कुछ लोग जदयू से इसलिए नाराज हैं क्योंकि उसने राजद के साथ गंठबंधन बना लिया है. वहीं कई लोग एनडीए को रोकने के लिए इसे सही भी मान रहे हैं. लेकिन, सभी इस बात पर एकमत हैं कि जिसे भी सत्ता मिले, वह विकास की सिर्फ बात नहीं करे. देश से बाहर रह रहे बिहारी भी अपने राज्य के लिए कुछ करना चाहते है. इसलिए नयी सरकार उनके लिए नीति भी बनाये. यह तभी संभव है जब बिहार के वोटर जाति और धर्म से परे होकर वोट करेंगे.
लेखक लंदन के नॉर्थविक पार्क हॉस्पिटल में जनरल सजर्न हैं. मूल रूप से वह बिहार के दरभंगा के रहने वाले हैं.