मंजू प्रकाश,पूर्व विधायक, बक्सर बक्सर जिले के बक्सर विधानसभा क्षेत्र का दो बार प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं मंजू प्रकाश कहती है कि आज पैसे के बल पर चुनाव लड़े जाते हैं. पैसे वाले को टिकट दिया जाता है. टिकट देने से पहले पार्टियां सोचती हैं कि कितना जातीय वोट इस उम्मीदवार को मिलेगा. कितना पैसा […]
मंजू प्रकाश,पूर्व विधायक, बक्सर
बक्सर जिले के बक्सर विधानसभा क्षेत्र का दो बार प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं मंजू प्रकाश कहती है कि आज पैसे के बल पर चुनाव लड़े जाते हैं. पैसे वाले को टिकट दिया जाता है. टिकट देने से पहले पार्टियां सोचती हैं कि कितना जातीय वोट इस उम्मीदवार को मिलेगा. कितना पैसा उम्मीदवार खर्च कर सकता है. राजनीति में आये इस बदलाव से प्रजातांत्रिक व्यवस्था बदरंग हो गयी है.वह बताती हैं कि पहली बार वर्ष 1990 में जब वह चुनाव जीती थीं तो उस समय मात्र 13 हजार रुपये खर्च हुए थे.
दूसरी बार जब चुनाव जीतीं तो 1 लाख 17 हजार रुपये खर्च हुए. वर्ष 2000 में जब चुनाव हारीं तो उस चुनाव में 6 से 7 लाख रुपये खर्च करने पड़े थे. 416 वोट से चुनाव हारी थीं. परदे वाली एक कमांडर जीप थी जिस पर पांच-सात लोगों के साथ चुनाव प्रचार में निकलती थी. किसी गांव में रुक जाती थी और कह देती थी कि चार-पांच गांव बाद किसी गांव में जीप रोकना, वहीं आऊंगी. इसके बाद पैदल घर-घर जाकर वोट मांगती थी.
मेरे साथ चलने वाला कोई कार्यकर्ता खाना-पीना नहीं मांगता था और न ही इसके लिए पैसे मांगता था. बल्कि चूड़ा-गुड़, लिट्टी, ठेकुआ लेकर कार्यकर्ता आते थे और दिन-रात साथ घूमते थे. पहले का नारा था-हर जोर जुल्म के टक्कर में संघर्ष हमारा नारा है. आज नारा बदल गया है, हर जोर जुल्म में एमपी-एमएलए सहारा है. पैरवी के बल पर राज्य चल रहा है. युवा पीढ़ी यही देखती है कि मेरा उम्मीदवार कितनी महंगी गाड़ी से आया है. उसी आधार पर लोग वोट भी देते हैं. समय के साथ यही बदलाव आया है कि लोग सिर्फ अपने बारे में सोचने लगे हैं और किसी भी तरह सत्ता के करीब रहना चाहते हैं. छुटभैया नेता भी जो राजनीति में पांव रखते हैं तुरंत विधानसभा का टिकट लेकर सत्ता के गलियारे में पहुंच जाना चाहते हैं. भले ही उनका कोई जनाधार न हो मगर अपराधियों से मजबूत और गहरा रिश्ता हो तो टिकट मिल भी सकता है. शिक्षाविद का जीतना अब शायद मुश्किल हो गया है. चुनाव वही जीतेगा जो पैसे और बाहुबल से अन्य सभी उम्मीदवारों से भारी पड़ेगा.