21.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

बिहार को दूसरों से पीछे देख होती है निराशा

मीर फजल हुसैन दिल्ली से यह सच है कि बिहार में बड़े बदलाव हुए हैं. बिहार को लेकर खुद बिहारियों की सोच और उनके प्रति बाहर के लोगों की दृष्टि में परिवर्तन आया है. इसने एक उम्मीद पैदा की है, लेकिन अगर देश के दूसरे राज्यों के विकास से इसकी तुलना करें, तो निराशा होती […]

मीर फजल हुसैन

दिल्ली से

यह सच है कि बिहार में बड़े बदलाव हुए हैं. बिहार को लेकर खुद बिहारियों की सोच और उनके प्रति बाहर के लोगों की दृष्टि में परिवर्तन आया है. इसने एक उम्मीद पैदा की है, लेकिन अगर देश के दूसरे राज्यों के विकास से इसकी तुलना करें, तो निराशा होती है.

बिहार के पास जितना बड़ा कृषि क्षेत्र, जल स्नेत और मानव संसाधन है, उसके लिहाज से बिहार अब भी बहुत पीछे है. सड़कें बनीं हैं. कानून व्यवस्था में सुधार हुआ है. बिजली की स्थिति भी बहुत हद तक सुधरी है.

लोगों का आत्मविश्वास बढ़ा है. अपहरण उद्योग और अपराध के खुल्लम-खुल्ला राजनीतीकरण पर पर्दा पड़ा है. यह बिहार की हाल की उपलब्धि है, लेकिन रोजगार के अवसर, तकनीकी शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा में संवेदनशीलता और प्रशासन में ईमानदारी, ये ऐसे मुद्दे हैं, जिन पर सरकार विफल रही. राज्य में एक भी बड़ा उद्योग नहीं लगा. चीनी मिलों की हालत वैसी ही खराब है.

बड़ी निजी कंपनियां अब भी बिहार की बजाय गुजरात, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र को प्राथमिकता दे रही हैं. जब रोजगार के अवसर ही नहीं होंगे, तो युवा वर्ग पलायन ही तो करेगी. तकनीकी शिक्षा के बड़े संस्थानों की भारी कमी है. अच्छी शिक्षा पाने के लिए मां-बाप अपने बच्चों को बाहर भेजने को मजबूर हैं. किसानों की भी हालत अच्छी नहीं है. इस सदी में लगातार सुखाड़ और बाढ़ की मार यहां किसानों ने ङोली है.

सरकार के पास इसके निदान की कोई ठोस व्यवस्था नहीं है. डीजल अनुदान जैसी कल्याणकारी व्यवस्था लूट का केंद्र हैं. अनुदान विकासवादी व्यवस्था नहीं हो सकता. धान खरीद के नाम पर क्या हुआ, सब को पता है. राज्य में दूध उत्पादन से ज्यादा शराब की बिक्री हो रही है. सचिवालय से पंचायत स्तर तक सरकारी तंत्र में भ्रष्टाचार चरम पर है.

कोई कंपनी बिहार आने से इस बात से भी डरती है. आज भी बिहार का पढ़ा-लिखा युवक यह मान कर चलता है कि बिहार में उसके अच्छे भविष्य की गारंटी नहीं है. सरकार और राजनीतिक दलों को यह सोचना होगा. उन्हें राज्य की जनता के साथ मिल-बैठ कर अपना एजेंडा तय करना होगा. एजेंडा थोपने और चुनावी जुमलेबाजी से राज्य का केवल नुकसान ही हो सकता है. बिहार में संभावनाओं और प्रतिभाओं की कमी नहीं है. बिहार के लोग आशावादी हैं, लेकिन यथार्थ को समझना होगा. तभी चुनाव और मताधिकार का मकसद भी पूरा हो सकेगा.

जाति, धर्म और क्षेत्र की भावना को त्याग कर विकास, प्रत्याशी और दलों की क्षमता, उनके मुद्दों और उनकी ईमानदारी को रखना होगा. तभी एक बेहतर सरकार और बेहतर विपक्ष हम दे पायेंगे. तभी सही मायने में विकास हो सकेगा. अन्यथा हम वैसे ही अपने नसीब और राजनीतिक दलों को कोसते रहेंगे और देश-दुनिया हमसे काफी आगे निकलती रहेगी.

चुनाव केवल किसी को जिताने-हराने के नहीं होता है. यह हमें अपने और अपने बच्चों के भविष्य की बुनियाद गढ़ने का अवसर देता है. अगर इसमें चूके, तो इसकी कीमत सब को चुकानी होगी. मुङो तो उम्मीद है कि इस बार का चुनाव बड़े सुधार का संदेश देने वाला होगा और इसमें युवा अहम भूमिका निभायेंगे.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें