पटना : दवा के अवैध कारोबार पर अंकुश लगाने को लेकर बनाया गया औषधि विभाग बदहाल है. इस विभाग पर राज्य भर की 44000 से अधिक वैध-अवैध दुकानों की नियमित जांच का भार है, लेकिन इनके अधिकारियों के पास न तो सुविधाएं हैं और न ही सुरक्षा. एक ड्रग इंस्पेक्टर पर हर माह 308 दुकानों की जांच का जिम्मा है. यही कारण है कि शहर में दवाओं की सबसे बड़ी मंडी गोविंद मित्र रोड में समय-समय पर सरकारी दवाओं की अवैध खेप पकड़ी जाती है. इसमें वे दवाएं शामिल रहती हैं, जो बीएमएसआइसीएल से मेडिकल कॉलेजों को भेजी जाती है.
नहीं हो सकती रूटीन जांच
पूरे सूबे में 122 ड्रग कंट्रोलर हैं, जिन पर निबंधित के साथ ही अवैध दुकानों की जांच जिम्मा है. मौजूदा स्थिति में ड्रग इंस्पेक्टर इन दुकानों की नियमित जांच चाह कर भी नहीं कर सकते हैं. उनको रूटीन जांच के साथ ही शिकायत मिलने पर छापेमारी भी करनी होती है. खास बात यह भी है कि इनके लिए एक ऑफिस भी नहीं हैं, जहां बैठ कर वह अपनी योजना बना सकें.
नतीजा : दवा की सबसे बड़ी मंडी गोविंद मित्र रोड में सरकारी, प्रतिबंधित, फिजिशियन सैंपल व नकली दवाओं का धंधा खुलेआम चलता रहता है. स्टेट ड्रग कंट्रोलर की मानें, तो उनके पास जहां नकली दवा की सूचना मिलती है, वहां छापेमारी की जाती है.
मात्र दो ही लाइसेंस अथोरिटी
दवा दुकान चलाने के लिए लाइसेंस लेना जरूरी है, मगर पटना में मात्र दो लाइसेंस अथोरिटी ही हैं. इनका कोई कार्यालय भी निश्चित नहीं है. इनको ढूंढ़ने के लिए दवा दुकान संचालकों को काफी मशक्कत करनी पड़ती है.
मानक से कम ड्रग कंट्रोलर के सहारे औषधि विभाग का काम चल रहा है. ड्रग कंट्रोलर को ऐसी सुविधाएं नहीं दी गयी हैं कि वह अपना काम भी ठीक से कर सकें. ऑफिस, गाड़ी व सुरक्षा की बेहद कमी है. ऐसे में रूटीन काम भी ठीक से नहीं हो पाता है.
रमेश कुमार, स्टेट ड्रग कंट्रोलर