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अवसाद में बच्चों के साथ खड़े हों

कैंपस के लिए – इंटर व स्नातक में नामांकन नहीं होने से छात्र तनाव मेंगोपालगंज. इंटर तथा स्नातक में नामांकन नहीं होने से छात्र भारी तनाव में है. नामांकन एक बड़ी समस्या बन गयी है. इसका ठोस उपाय नहीं मिल रहा. ऐसे में अभिभावकों की भूमिका काफी प्रमुख हो जाती है. वैसे भी समाज में […]

कैंपस के लिए – इंटर व स्नातक में नामांकन नहीं होने से छात्र तनाव मेंगोपालगंज. इंटर तथा स्नातक में नामांकन नहीं होने से छात्र भारी तनाव में है. नामांकन एक बड़ी समस्या बन गयी है. इसका ठोस उपाय नहीं मिल रहा. ऐसे में अभिभावकों की भूमिका काफी प्रमुख हो जाती है. वैसे भी समाज में अवसाद अब मानसिक संताप न रह कर एक महामारी का शक्ल अख्तियार कर रहा है. हंसता खेलता बचपन भी अब मानिसक दबाव के डंक से बिखरने लगा है. उदासी, अकेलापन, चिड़चिड़ापन, निराशा, गुस्सा एवं अपराध बोध के लक्षणों के प्रकट होने पर तत्काल काउंसेलिंग का सहारा लेना चाहिए. थकान भी डिप्रेशन को ज्यादा गंभीर बनाते हैं. डॉ जेजे शरण का कहना है कि छह साल से कम उम्र के बच्चों में यह बीमारी काफी कम पायी जाती है, जबकि इससे बड़े बच्चों में अवसाद के लक्षणों से अभिभावक आये दिन दो चार हो रहे हैं. किशोरावस्था में बच्चे का अकेलापन, पढ़ाई में कमी, अपनों से दूरी, चिड़चिड़ापन एवं मरने की बातें करना अवसाद के खास लक्षण हैं. नशीले पदाथार्ें का सेवन, मानिसक बीमारियां, नींद में कमी, मां-बाप से उपेक्षा, आत्मसम्मान में कमी से अवसाद घर करने लगता है. अभिभावकों को बच्चों की बातों को गंभीरता से लेना चाहिए. उनका मनोबल बढ़ाएं, साथ ही परेशानी में उनके साथ खड़े हों. बच्चों के हमदर्द बनें, और उन पर अपनी बातें न थोंपे. दूसरे बच्चों से बार-बार तुलना कर उन्हें नीचा न दिखाएं.

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