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रिहायशी इलाके में बम डिफ्यूज करने का रिस्क नहीं लेना चाहती थी बिहार पुलिस

पटना: राजधानी के एक रिहायशी इलाके रामकृष्णा नगर में बरामद हुए बमों के जखीरे को नष्ट करने में दो दिन लग गये. इसकी मुख्य वजह पुलिस का रिहायशी इलाके में बम मौजूद होने के कारण कोई रिस्क नहीं लिया जाना था. दो दिनों से दहशत में जी रहे पटना के लोगों को एनएसजी के जवानों […]

पटना: राजधानी के एक रिहायशी इलाके रामकृष्णा नगर में बरामद हुए बमों के जखीरे को नष्ट करने में दो दिन लग गये. इसकी मुख्य वजह पुलिस का रिहायशी इलाके में बम मौजूद होने के कारण कोई रिस्क नहीं लिया जाना था. दो दिनों से दहशत में जी रहे पटना के लोगों को एनएसजी के जवानों ने शनिवार को राहत दी. दिल्ली व कोलकाता से आए एनएसजी के जवानों ने पहले बमों को चेक किया फिर सभी विस्फोटकों और टाइमर को उठाकर अपने साथ ले गए. एनएसजी के जवान विस्फोटकों को आबादी से दूर खेत में विस्फोट कर नष्ट कर दिया.

जानकारी के मुताबिक विस्फोटकों का जखीरा इतना बड़ा था कि इनमें धमाका होने पर राजधानी के कई किलोमीटर का इलाका दहल जाता. पुलिस के मुताबिक अगर बम मैदानी इलाके में होता, तो इसे डिफ्यूज कर दिया जाता. राज्य की पुलिस को रिहायशी इलाकों में इतने बड़े और अधिक शक्ति वाले बमों को डिफ्यूज करने का बहुत ज्यादा अनुभव नहीं है. प्रिवेंशन इज बेटर दैन क्योर (किसी मर्ज का इलाज करने से बेहतर है उसकी रोकथाम की जाये) के सिद्धांत को अपनाते हुए एनएसजी को बुलाया गया. बिहार पुलिस में उन्नत किस्म की बम स्कैनिंग मशीन, एक्स-रे, सेंसर समेत अन्य तरह के अत्याधुनिक उपकरणों की कमी है. हालांकि कुछ विशेषज्ञ के अनुसार, बिहार पुलिस रिहायशी इलाकों में इस तरह के ऑपरेशन को अंजाम देने के लिए पूरी तरह से तैयार भी नहीं है. इस वजह से ‘रिस्क’ लेने के स्थान पर ‘प्रिकाउसन’ को प्राथमिकता दी गयी.

प्राप्त सूचना के अनुसार, बरामद किये गये बमों को बहुत कुशल प्रशिक्षकों ने नहीं बनाया था. इस वजह से इसमें कई तरह के लूज कनेक्शन मौजूद थे. बमों की संख्या बहुत ज्यादा होने से इन्हें उसी स्थान पर नष्ट नहीं किया जा सकता था. सभी बमों को उठा कर किसी सुदूर और सुनसान वाले इलाके में ले जाकर ही डिफ्यूज करना पड़ता. इन सभी वजहों से 10 प्रतिशत चांस बम के फटने के भी थे. अगर पूरे जखीरे में विस्फोट होता, तो 8-9 किमी के दायरे में जबरदस्त नुकसान हो जाता.

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