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दवा खरीद को लेकर कई बार टली बैठक, बिना दवा के चल रहे अस्पताल

पटना : राज्य भर के अस्पतालों में दवाओं की काफी किल्लत है. यहां मरीजों को गलव्स से लेकर सूई, कॉटन तक नहीं मिल पा रहे हैं. गरीब मरीजों का ऑपरेशन दवा व सजिर्कल आइटम के कारण नहीं हो रहे हैं. बावजूद इसके स्वास्थ्य विभाग इसे लेकर अधिक चिंतित नहीं दिख रहा है. इस मामले को […]

पटना : राज्य भर के अस्पतालों में दवाओं की काफी किल्लत है. यहां मरीजों को गलव्स से लेकर सूई, कॉटन तक नहीं मिल पा रहे हैं. गरीब मरीजों का ऑपरेशन दवा व सजिर्कल आइटम के कारण नहीं हो रहे हैं.
बावजूद इसके स्वास्थ्य विभाग इसे लेकर अधिक चिंतित नहीं दिख रहा है. इस मामले को लेकर जहां विभाग की सुस्ती दिखती है, वहीं बीएमएसआइसीएल लापरवाह है. डॉक्टरों के तबादले को लेकर स्वास्थ्य विभाग जहां रात दो बजे तक कार्यालय खुला रखता है, वहीं दवाओं की खरीद के लिए साल भर में एक बैठक नहीं करा पा रही है. पिछले एक साल में विभाग ने कई बार माह भर के अंदर दवा खरीद कर लेने का दावा किया, लेकिन साल भर बाद भी दवा भंडार पूरी तरह खाली और मरीज परेशान हैं.
लिस्ट भेजी, पर नहीं मिली
बिहार के अस्पतालों से बीएमएसआइसीएल को इमरजेंसी दवा की लिस्ट एक माह पहले फिर भेजी गयी, लेकिन वहां से भी मरीजों के लिए दवा नहीं आ पायी. बहुत लिखने के बाद कभी-कभी कॉरपोरेशन कुछदवाएं भेज देता है, जो दो-तीन दिनों में खत्म हो जाती हैं. अब हालात ऐसे आ गये हैं कि अस्पताल बिना दवा का चल रहा है.
दवा घोटाले के बाद से ग्रहण
दवा घोटाला मामला आने के बाद से ही दवा खरीद पर ग्रहण लगा हुआ है. बीएमएसआइसीएल के पूर्व एमडी प्रवीण किशोर के हटने के बाद नये एमडी को लाया गया. वे छह माह तक तक रहे और यही कहते रहे कि बहुत जल्द खरीदारी होगी. इसके बाद ब्रजेश मेहरोत्र ने स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव का कार्यभार संभाला. उनकी मानें तो दवा खरीद की प्रक्रिया पूरी हो गयी है. सूत्रों के मुताबिक अब भी एक माह से अधिक समय लगेगा. वहीं टेंडर में देर को लेकर प्रधान सचिव और कॉरपोरेशन पूछने पर चुप रहते हैं.
इनकी हर दिन जरूरत पर भंडार खाली
इंजेक्शन डरसोलीन, इंजेक्शन सेबड्रैकजोन, मिकासीन, रेबप्राजोल, डीएनएस (फ्लूड), आरएल (फ्लूड), गलव्स, आइवी सेट, एमाक्सीन क्लेव, एजीथ्रोमाइशिन, डाइक्लोफेमिक जोडियन, डायक्लोफेनिक दवाओं की खपत पीएमसीएच में हर दिन है, लेकिन इनमें से एक भी दवा भंडार में उपलब्ध नहीं है. इसके अलावा भी 87 दवाएं ऐसी हैं, जिनकी जरूरत हर दिन इंडोर व आउटडोर में पड़ती है, जो गंभीर मरीजों के लिए हैं. बावजूद इसके मरीजों को अस्पताल से एक भी दवा नहीं मिल रही है.
मार्केट सर्वे बिगाड़
देता है मामला
स्वास्थ्य विभाग मेडिकल कॉलेजों में ग्लोबल टेंडर करने के लिए निविदा मांगता है और जब ग्लोबल टेंडर में 50 कंपनियां भाग लेती हैं, तो उसमें से कम दर वाली कंपनी को दवा खरीद के लिए टेंडर दिया जाता है. लेकिन, जब टेंडर प्रक्रिया पूरी हो जाती है, तो जांच के दौरान सदस्यों को कहा जाता है कि आपने मार्केट सर्वे नहीं किया है, जिससे कम कीमत वाली दवाएं अधिक दर में खरीद ली हैं. इससे बाद में विभागीय कार्रवाई व निगरानी जांच का मामला शुरू हो जाता है.
प्रक्रिया अंतिम चरण में
दवा की जल्द खरीदारी होगी. इसकी प्रक्रिया अंतिम चरण में है. टेंडर करने के पहले यह देखा जा रहा कि पूर्व की गलती किसी भी हाल में दोबारा से नहीं हो. हर पेपर को चेक किया जा रहा है. इस कारण से थोड़ी देर हुई है, लेकिन अब अगले 15 दिनों में दवाएं अस्पतालों में पहुंच जायेगी.
– ब्रजेश मेहरोत्र, प्रधान सचिव, स्वास्थ्य विभाग

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