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साहित्य छोड़ कर सब कुछ है यहां

पटना: खूंटियों पर टंगे निराला, जयशंकर प्रसाद, रामवृक्ष बेनीपुरी, राजा राधिका रमण सिंह, डॉ राजेंद्र प्रसाद, पीर मुहम्मद मुनीस, राहुल सांकृत्यायन, आचार्य शिव पूजन सहाय, बाबा नागाजरुन, त्रिलोचन, जानकी वल्लभ शास्त्री और न जाने कितने साहित्य मनीषियों के सवालों के सामने आज का बेबस समय निरुत्तर है. किसी के पास इसका जवाब नहीं है कि […]

पटना: खूंटियों पर टंगे निराला, जयशंकर प्रसाद, रामवृक्ष बेनीपुरी, राजा राधिका रमण सिंह, डॉ राजेंद्र प्रसाद, पीर मुहम्मद मुनीस, राहुल सांकृत्यायन, आचार्य शिव पूजन सहाय, बाबा नागाजरुन, त्रिलोचन, जानकी वल्लभ शास्त्री और न जाने कितने साहित्य मनीषियों के सवालों के सामने आज का बेबस समय निरुत्तर है. किसी के पास इसका जवाब नहीं है कि बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन कलह, कब्जेदारी और षड्यंत्र का केंद्र क्यों बना हुआ है?

19 अक्तूबर, 1919 को साहित्य सम्मेलन का पहला अधिवेशन हुआ था. इसका मकसद हिंदी का प्रसार और हिंदी साहित्य को बढ़ावा देना था. 94 साल बाद साहित्य सम्मेलन पर कब्जे की जंग छिड़ी हुई है. यहां साजिश है, छल है, कपट है, गबन का आरोप है. करीब 40 करोड़ का भूखंड बेचने की साजिश की आशंका है. थाना है, पुलिस है. आइपीसी की धाराएं हैं. सब गतिमान हैं. पर, साहित्य खामोश है.

कलम के सिपाही प्रेमचंद साहित्य को मशाल कहते थे. पर, हिंदी साहित्य सम्मेलन पर बंदूक की नोक पर अपनी मशाल जलाये रखने की कोशिश भी हो रही है. यह संत्रस है आज का. अध्यक्ष बने जदयू की विधायक कविता सिंह के पति अजय कुमार सिंह और पहले से अध्यक्ष चले आ रहे अनिल सुलभ के अपने-अपने दावे हैं. दोनों खुद को अध्यक्ष बता रहे हैं. नागाजरुन के वरुण के बेटे को पढ़ते हुए वह सीन याद करिये जब पोखर पर कब्जे को लेकर कैसे साजिशें रची जाती हैं. आज साहित्य को ही गरीब और लाचार बना दिया गया है.

कदमकुआं में साहित्य सम्मेलन का दफ्तर है. यहां साहित्यिक गतिविधियों के खाते में कुछ जयंतियां, पुस्तक विमोचन जैसे कार्यक्रम दर्ज होते रहे हैं. फरवरी में सम्मेलन के महाधिवेशन में आलोचक नामवर सिंह आये थे. लाइब्रेरी में 10 हजार किताबें हैं. अलमारी में बंद. मगर धूल को उन पर जमने से कौन रोक सकता है. किताबों को देखने से ही लग जायेगा कि जमाने से उन्हें पलटा नहीं गया है. लाइब्रेरी में अखबार आते हैं. दो-तीन टेबुल और कुरसियां हैं, जिन्हें पाठकों के आने का हरदम इंतजार रहता है.

इन दिनों यहां माहौल गरमाया हुआ है. विवाद किसी कहानी या कविता को लेकर नहीं है. साहित्य और संस्कृतिकर्म भी विवाद की वजह नहीं है. इस विवाद की जड़ में है अध्यक्ष पद की कुरसी. पांच सितंबर को मौजूदा प्रधानमंत्री रामनरेश सिंह की बनायी कार्यसमिति ने अजय कुमार सिंह को अध्यक्ष निर्वाचित कर दिया. 17 सितंबर को वह कार्यालय पहुंचे और अनिल सुलभ के कक्ष को खोल कर उसमें बैठ गये. नेमप्लेट हटा दिया गया. तीन घंटे बाद अनिल सुलभ पहुंचे और वह (जैसा कि दावा किया गया) डीजीपी के हस्तक्षेप से ताला खोल कर अपने कक्ष में बैठ गये. दोबारा नेमप्लेट लगाया गया. पहले से ही साहित्य सम्मेलन से जुड़े रहनेवाले सुलभ को अध्यक्ष बनने का मौका अध्यक्ष जगदीश पांडेय के निधन के बाद मिला था. सुलभ पहली जुलाई, 2012 को पांडेय के बचे कार्यकाल के लिए अध्यक्ष बनाये गये थे. पांच अक्तूबर को नये अध्यक्ष के लिए चुनाव होना है. उसकी प्रक्रिया चल रही है. झंझटवाले दिन मौजूदा अध्यक्ष के निर्देश पर एक निजी सिक्यूरिटी एजेंसी के दो सुरक्षा गार्डो को तैनात कर दिया गया है.

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