भाजपा नेताओं की ओर से राष्ट्रीय कुशवाहा परिषद के बैनर तले सम्राट अशोक को कुशवाहा घोषित करते हुए पहली बार जयंती समारोह मनाया गया है. केंद्रीय मंत्रियों में राम कृपाल यादव को सहरसा और मधेपुरा, गिरिराज सिंह को नवादा, भागलपुर, जमुई और मुंगेर, भूपेंद्र यादव को यादव बाहुल्य क्षेत्र सीतामढ़ी और मधुबनी, सी पी ठाकुर को भूमिहार बाहुल्य शेखपुरा, रविशंकर प्रसाद को बेतिया और अरवल, मुख्तार अब्बास नकवी को मुसलिम बाहुल्य क्षेत्र अररिया और पूर्णिया के अलावा सुपौल, राजीव प्रताप रूडी को राजपूत बाहुल्य बाढ़ और औरंगाबाद, अश्विनी चौबे को ब्राrाण बाहुल्य बांका में कार्यक्रम जातीय गणित के आधार पर ही किया गया माना जा रहा है. कलराज मिश्र का बेतिया और दरभंगा में कार्यक्रम कराने के साथ एक संतोष गंगवार को नालंदा, लखीसराय और खगड़िया में सभा कर कुर्मी मतदाताओं को आकर्षित करने की कोशिश हो रही है. प्रदेश भाजपा अध्यक्ष मंगल पांडेय ने कहा कि सदस्यों के पूरा ब्योरा के लिए ही जाति की जानकारी मांगी गयी है. यह महज संयोग है कि कुछ नेताओं के जाति से संबंधित जिले में दौरा है.
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जातीय गोलबंदी में भाजपा भी पीछे नहीं
पटना: विधानसभा चुनाव करीब आते देख जातीय समीकरण से अपने को दूर रखने का दावा करनेवाली भाजपा भी जातीय गोलबंदी में जुट गयी है. पार्टी ने इस मोरचे पर विरोधियों को पटखनी देने की फूलप्रूफ योजना बनायी है. केंद्रीय मंत्रियों को एक ओर इसी फॉमरूले में फिट कर उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार की नीतियों […]
पटना: विधानसभा चुनाव करीब आते देख जातीय समीकरण से अपने को दूर रखने का दावा करनेवाली भाजपा भी जातीय गोलबंदी में जुट गयी है. पार्टी ने इस मोरचे पर विरोधियों को पटखनी देने की फूलप्रूफ योजना बनायी है. केंद्रीय मंत्रियों को एक ओर इसी फॉमरूले में फिट कर उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार की नीतियों के प्रचार- प्रसार की जिम्मेवारी सौंपी गयी है. वहीं सम्राट अशोक की जातीय पहचान भी खोज निकालने का दावा किया जा रहा है. पार्टी ने सदस्य बनाने के जारी फॉर्म में जाति का ब्योरा मांगा है, ताकि पता चले कि पार्टी में किस जाति की संख्या कितनी है. अन्य किसी राजनीतिक दल सदस्यता के लिए जाति का ब्योरा नहीं मांगता है.
समस्तीपुर, मुजफ्फरपुर और आसपास के पासवान वोटरों को प्रभावित करने के लिए राम विलास पासवान और उपेंद्र कुशवाहा का उपयोग कैमूर ओर सासाराम में करने की पार्टी का निर्णय कहीं न कहीं जातीय गोलबंदी की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है.
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