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भारत में पहली बार लेजर से मिरगी का इलाज
मुजफ्फरपुर: अमेरिका के बाहर पहली बार भारत में लेजर तकनीक से अनियंत्रित मिरगी के मरीज का ऑपरेशन किया गया. दिल्ली एम्स में इसको लेकर हुई कार्यशाला के दौरान 14 साल के बच्चे समेत तीन लोगों का ऑपरेशन हुआ है. तीनों स्वस्थ्य हैं. इसका श्रेय पटना में जन्मे डॉ अश्विनी दयाल शरण को जाता है, जिन्होंने […]
मुजफ्फरपुर: अमेरिका के बाहर पहली बार भारत में लेजर तकनीक से अनियंत्रित मिरगी के मरीज का ऑपरेशन किया गया. दिल्ली एम्स में इसको लेकर हुई कार्यशाला के दौरान 14 साल के बच्चे समेत तीन लोगों का ऑपरेशन हुआ है. तीनों स्वस्थ्य हैं. इसका श्रेय पटना में जन्मे डॉ अश्विनी दयाल शरण को जाता है, जिन्होंने अमेरिका से इस तकनीक को भारत में लाने में मदद की है. इन्हीं के निर्देशन में एम्स के डॉक्टरों ने इस तकनीक से मरीजों का ऑपरेशन किया है. माना जा रहा है कि इस साल दिसंबर से भारत में अनियंत्रित मिरगी का इस तकनीक से ऑपरेशन होने लगेगा.
बिहार से है लगाव
पिता गुरु दयाल का कहना है कि अश्विनी का जन्म पटना में हुआ था, उस समय हमलोग यहीं रहते थे. लेकिन ,जब वह 10 माह का था, तभी हम अमेरिका चले गये थे, जहां एडिसन में अश्विनी का पालन-पोषण व पढ़ाई हुई. वहीं, उसने न्यू जर्सी की यूनिवर्सिटी ऑफ मेडिसिन से एमडी की डिग्री हासिल की और न्यूरो सजर्री में स्पेशलिस्ट बना, लेकिन डॉ अश्विनी के मन में भारत व खास कर बिहार को लेकर काफी लगाव है. यही वजह है कि वे हर सात कम-से-कम एक बार भारत जरूर आते हैं.
अमेरिकन कंपनी ने दीं मशीनें
डॉ अश्विनी मिरगी, स्पॉइनल न्यूरो व पार्किसन की सजर्री में भी स्पेशलिस्ट हैं. वे अभी फिलडेल्फिया के थॉमस जैफर्सन मेडिकल कॉलेज के न्यूरो विभाग में प्रोफेसर हैं. इस साल अप्रैल में जब वह भारत आये थे, तो उन्होंने दिल्ली एम्स में मिरगी पर आयोजित कार्यशाला में भाग लिया. इस दौरान एम्स के न्यूरोलॉजी विभाग में प्रोफेसर डॉ शरद चंद्र और उनकी टीम ने तीन ऑपरेशन किये थे, जिनकी निर्देशन डॉ अश्विनी ने किया था. लेजर से ऑपरेशन करने की मशीनें अमेरिका मेट्रॉनिक कंपनी ने दी हैं, जिनकी कीमत करोड़ों में है.
पीएमसीएच व रिम्स का प्लान
डॉ अश्विनी बिहार में हो रहे बदलावों से उत्साहित हैं. उनका कहना है कि मैं पीएमसीएच व रांची के रिम्स में नयी तकनीक से न्यूरो सजर्री की जानकारी देना चाहता हूं. इसके लिए मैंने योजना बनायी है. डॉ अश्विनी के पिता गुरु शरण का कहना है कि जैसे ही मौका मिलेगा, वे पटना व रांची जायेंगे.
पत्नी व भाई है डॉक्टर
डॉ अश्विनी की पत्नी कानू शरण भी डॉक्टर हैं. वे ओंकोलॉजी की स्पेशलिस्ट हैं, जबकि छोटा भाई डॉ अशोक दयाल शरण ऑर्थोपेडिक सजर्न हैं, जो न्यूयॉर्क सिटी के नामी अस्पताल में काम करते हैं. वे रीड़ की हड्डी की सजर्री के स्पेशलिस्ट हैं.
ऐसे होती है सजर्री : लेजर से मिरगी के ऑपरेशन में मरीज की हड्डी में 3.2 एमएम की छेद की जाती है और फिर उसके जरिये ऑप्टिक फाइबर केबल डाला जाता है, जो स्टीरियोटैक्टिक गाइडेंस पर काम करता है. एमआरआइ से मरीज के दिमाग की ली गयी तसवीर से उन कोशिकाओं की पहचान की जाती है, जो मिरगी के कारण हैं. उन्हीं कोशिकाओं को लेजर से जलाया जाता है. दूसरे दिन ही मरीज को छुट्टी दे दी जाती है, जबकि अभी होनेवाले ऑपरेशन में सात से 10 दिनों तक अस्पताल में रहना पड़ता है और तीन महीने में रिकवरी होती है.
जब ये ऑपरेशन हुए थे, तब एम्स के डॉ शरद चंद्र ने कहा था कि इस तकनीक से अनियंत्रित मिरगी के ऑपरेशन में महत्वपूर्ण बदलाव होगा.
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