किसान और जनवादी ताकतें संगठित हो कर नरेंद्र मोदी के ‘कंपनी शासन’ को उखाड़ फेकेंगी. रवींद्र भवन में एक्टू के राष्ट्रीय सम्मेलन में उन्होंने कहा कि बदलाव की आकांक्षी लहरों पर सवार हो कर भारत में नरेंद्र मोदी सरकार बनाने में सफल हो गये. मोदी सरकार उन्हीं नव उदारवादी नीतियों पर तेजी से चल रही है, जिसके खिलाफ पूरी दुनिया में आंदोलन चल रहा है. ‘मेक इन इंडिया’ का नारा और कुछ नहीं, बल्कि केंद्र सरकार इसकी आर में देश के संसाधनों, श्रम और मानवीय संसाधनों को लूटने के लिए विदेशी पूंजी को खुला आमंत्रण है. यह जमीन, श्रम अधिकारों और खाद्य सुरक्षा पर खुला हमला है. नव उदारवादी एजेंडा पिछले दो दशकों से देश में जारी है, मोदी सरकार इसमें गुणात्मक बदलाव ला रही है. मोदी सरकार चाहती है कि छोटे किसान खेती करना छोड़ दें और मध्य वर्ग सबसिडी की उम्मीद न करें. यह सरकार भूमि अधिग्रहण अध्यादेश के लिए 80 प्रतिशत किसानों की सहमति को आवश्यक नहीं समझती, क्योंकि इससे पूंजीपतियों के प्रोजेक्ट प्रभावित हो रहे हैं.
डब्लूटीयू ग्रीस के निकोलस थियोडो राकिस ने कहा कि ग्रीस सहित दुनिया के कई हिस्सों में सार्वजनिक सुविधाओं पर होने वाले खर्च में कटौती और नव उदारवाद के नाम पर किये जा रहे हमलों को ले कर लोगों में जबरदस्त आक्रोश है. लैटिन अमेरिका और यूरोप के कई देशों में वामपंथ की लड़ाई को अगली कतार में ला खड़ा कर दिया है. बेहतर जीवन की मांग आज एक प्रमुख सवाल के रूप में उभारा है. मुनाफे की एकाधिकार की नीतियों ने आम जनता के बड़े हिस्से को भोजन, पेय जल, दवाइयां, शिक्षा और आवास की बुनियादी सुविधाओं से वंचित कर रखा है.
आइआरएफ और रेलवे कर्मचारी नेता शिव गोपाल मिश्र ने कहा कि अब पूंजीपतियों के खिलाफ निर्णायक संघर्ष का वक्त आ गया है. श्रम कानून में संशोधन कर केंद्र सरकार ने जो चुनौती दी है, उसे हम स्वीकार करते हैं. सम्मेलन को एक्टू के राष्ट्रीय सचिव डीएल सचदेवा, यूटीयूसी के अबनी रॉय, एचएमएस बिहार के महा सचिव अधनु यादव, एआइइयूटीयू की केंद्रीय कमेटी के सदस्य अरुण सिंह, टीयूसीसी के बिहार महा सचिव अनिल शर्मा, एनटीयूआइ के महासचिव गौतम मोदी ने भी संबोधित किया. सम्मेलन का संचालन राजीव डिमरी कर रहे थे.