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बिहार के बच्चों में प्रतिभा की कमी नहीं

संवाददाता, पटना बिहार इतिहास के पन्नों में शिक्षा के लिए जाना जाता रहा है. इसकी चर्चा विश्व में हुआ करती थी. नालंदा व विक्रमशिला विश्वविद्यालयों में पूरे विश्व से छात्र पढ़ाई क रने आते थे. वहीं, आज स्थिति उलट है. शिक्षा के क्षेत्र में आयी गिरावट के कारण आज बिहारी प्रतिभा भी दबती जा रही […]

संवाददाता, पटना बिहार इतिहास के पन्नों में शिक्षा के लिए जाना जाता रहा है. इसकी चर्चा विश्व में हुआ करती थी. नालंदा व विक्रमशिला विश्वविद्यालयों में पूरे विश्व से छात्र पढ़ाई क रने आते थे. वहीं, आज स्थिति उलट है. शिक्षा के क्षेत्र में आयी गिरावट के कारण आज बिहारी प्रतिभा भी दबती जा रही है. ये कहना है जागरूक समाज के महासचिव प्रोफेसर केदार नाथ सिंह का. वे सोमवार को गांधी संग्रहालय में ‘शिक्षा में गुणात्मक पुनस्थापन’ विषय पर आयोजित सेमिनार में बोल रहे थे. उन्होंने कहा कि वर्तमान में शिक्षा को व्यवसायीकरण का रूप दे दिया गया है. इससे न तो गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा दी जा रही है और न ही छात्र-छात्राओं द्वारा शिक्षकों को सम्मान. इससे व्यवसायी करण में बिहार के बच्चों की प्रतिभा गूम हो रही है. शिक्षा के क्षेत्र में लाये सुधारजागो बहन की डॉ शांति ओझा ने पटना विवि के कॉलेजों में पढ़ाई करना प्रतिष्ठा के रूप में जाना जाता था. वहीं आज कॉलेज अपनी पुरानी गरिमा को खोता जा रहा है. वहां लोग अब अपने बच्चों को पढ़ाई कराना मजबूरी समझते हैं. वे दूसरे राज्यों की ओर रूख कर रहें हैं. ऐसे में शिक्षा के क्षेत्र में बदलाव लाने की जरूरत है. पुरानी शिक्षा परंपरा को पुन:स्थापित कर शिक्षा के मुख्य उद्देश्य व बच्चों के भविष्य के हित में काम करना होगा. मौके पर भाषा -भारती के संपादक नृपेंद्रनाथ गुप्त, बंगला अकादमी के विनीता प्रसाद समेत अन्य उपस्थित रहें.

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