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मगध विवि के पूर्व कुलपति की याचिका खारिज

पटना: मगध विश्वविद्यालय में 12 प्राचार्यो की नियुक्ति से संबंधित जनवरी 2013 में हुए घोटाले की चल रही जांच में मंगलवार को एक नया मोड़ आ गया. हाइकोर्ट ने घोटाले के प्रमुख आरोपित पूर्व कुलपति प्रो. अरुण कुमार और 12 प्राचार्यो की सूची में शामिल बख्तियारपुर कॉलेज के पूर्व प्राचार्य प्रो. प्रवीन कुमार की याचिका […]

पटना: मगध विश्वविद्यालय में 12 प्राचार्यो की नियुक्ति से संबंधित जनवरी 2013 में हुए घोटाले की चल रही जांच में मंगलवार को एक नया मोड़ आ गया. हाइकोर्ट ने घोटाले के प्रमुख आरोपित पूर्व कुलपति प्रो. अरुण कुमार और 12 प्राचार्यो की सूची में शामिल बख्तियारपुर कॉलेज के पूर्व प्राचार्य प्रो. प्रवीन कुमार की याचिका को खारिज कर दिया.

साथ ही हाइकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता में गठित खंडपीठ ने केस की वकालत कर रहे दो अधिवक्ताओं को कड़ी फटकार लगाते हुए जुर्माना की चेतावनी भी दी. गौरतलब है कि पटना उच्च न्यायालय की एकल पीठ ने 5 अप्रैल को मगध विवि में हुए इन 12 प्राचार्यो की नियुक्ति घोटाले की जांच निगरानी से कराने का आदेश दिया था. इस फैसले को ‘द्वेषपूर्ण’ बताते हुए दोनों आरोपियों ने हाइकोर्ट में एलपीए दायर किया था. इनकी मांग थी कि निगरानी जांच के आदेश पर रोक लगा दी जाये. इसके मद्देनजर हाइकोर्ट ने इस एलपीए को खारिज करते हुए एकल पीठ के फैसले पर आपत्ति जताने पर कड़ा रुख अख्तियार किया है. हाई कोर्ट ने बीबी लाल कमेटी की रिपोर्ट का उल्लेख करते हुए टिप्पणी की है कि मगध विश्वविद्यालय भ्रष्टाचार और भाई-भतीजे वाद का केंद्र है. इस मामले में 19 मई को कोर्ट ने सुनवाई की अगली तारीख तय की है.

19 को निगरानी पेश करेगा रिपोर्ट : निगरानी विभाग को इस मामले में 19 मई तक जांच कर रिपोर्ट सौंपने का आदेश हाइकोर्ट ने दिया था. निगरानी ने जांच में कई महत्वपूर्ण बिंदुओं पर बड़ी गड़बड़ी पकड़ी है. जांच अंतिम चरण में है. अब तक प्राप्त तथ्यों में यह बात स्पष्ट होती है कि बीबी लाल रिपोर्ट की तमाम बात सही है. जांच में गड़बड़ी की बात स्पष्ट होने पर आरोपित 12 प्राचार्यो और चयन समिति के सभी सदस्यों पर एफआइआर दर्ज हो सकती है. इनकी गिरफ्तारी के आदेश भी जारी हो सकते हैं. चयन समिति में विवादास्पद पूर्व कुलपति प्रो. अरुण कुमार, गया कॉलेज के पूर्व प्राचार्य प्रो. श्रीकांत शर्मा, राज्यपाल के प्रतिनिधि बालेश्वर पासवान के अलावा लखनऊ के दो एक्सपर्ट शामिल थे.
निगरानी ने कई बड़ी गलतियां पकड़ी हैं, जो इस प्रकार हैं.
चयन समिति में सरकार का कोई प्रतिनिधि नहीं हैं. शिक्षा विभाग ने बहाली पर रोक लगायी थी,लेकिन वीसी ने गुप्त तरीके से चयन समिति बना कर बहाली कर दी.
विज्ञापन भी राष्ट्रीय स्तर पर नहीं निकाला गया था,सिर्फ दो स्थानीय अखबार में विज्ञापन दिया गया था.
इसमें रोस्टर का किसी तरह से पालन नहीं किया गया था.
इसमें मगध विवि के पूर्व रजिस्ट्रार डीपी यादव की भूमिका संदेहास्पद है.
निगरानी शैक्षणिक उपलब्धि, शोध पत्र और अभ्यर्थियों को प्राप्त अंक समेत ऐसे सभी मामलों पर गंभीरता से जांच कर रही है.

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