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चेक का प्रभार नहीं, फिर भी बन गये अभियुक्त
पटना : फर्जी चेक बना कर जिला योजना कार्यालय से 3.56 करोड़ रुपये गबन करने के मामले में पटना पुलिस की जांच बिल्कुल सुस्त पड़ी है. अधिकारियों ने इस पूरे मामले से पल्ला झाड़ने के लिए अब तक छोटे कर्मचारियों को टूल बना कर ही काम किया है, जबकि मास्टरमाइंड बड़े आराम से खुलेआम घूम […]
पटना : फर्जी चेक बना कर जिला योजना कार्यालय से 3.56 करोड़ रुपये गबन करने के मामले में पटना पुलिस की जांच बिल्कुल सुस्त पड़ी है. अधिकारियों ने इस पूरे मामले से पल्ला झाड़ने के लिए अब तक छोटे कर्मचारियों को टूल बना कर ही काम किया है, जबकि मास्टरमाइंड बड़े आराम से खुलेआम घूम रहे हैं. पुलिस-प्रशासन की लापरवाही ही कहें कि मामले में तत्कालीन नाजिर वीरेंद्र कुमार को उस मामले में भी अभियुक्त बना दिया गया, जिसमें उसकी कोई भूमिका नहीं थी.
आरोपित बनाये गये दोनों नाजिर विकास कुमार यादव और वीरेंद्र कुमार को दोनों मामलों में अभियुक्त बनाया गया है, जबकि जिला योजना पदाधिकारी अजय कुमार ने अपनी ही एक रिपोर्ट में स्वीकार की है कि दूसरे केस 481/2013 से संबंधित बैंक ऑफ बड़ौदा, पटना सिटी शाखा के दोनों चेक (संख्या 580181 और 572580) का उनको प्रभार ही नहीं मिला था.
इसी तरह, बैंक ऑफ बड़ौदा की चेन्नई शाखा में जिस गायब चेक से फर्जी भुगतान हुआ, वह 18 सितंबर, 2013 को बैंक में जमा किया गया था, जबकि नाजिर वीरेंद्र कुमार ने तत्कालीन नाजिर विकास कुमार यादव से 19 सितंबर, 2013 से प्रभार का आदान-प्रदान किये जाने की शुरुआत ही की. इस गबन मामले में गांधी मैदान थाने में दो केस दर्ज कराये गये हैं.
केस संख्या 480/2013 आंध्र बैंक, एग्जिबिशन रोड से गायब हुए चेक (संख्या-820829) से संबंधित है. दूसरा केस 481/2013 बैंक ऑफ बड़ौदा, पटना सिटी शाखा के दो चेक (संख्या 580181 और 572580) से संबंधित है. जिसमें दो करोड़ पांच लाख 17 हजार 210 रुपये की निकासी हुई थी.
दूसरे दिन नामजद प्राथमिकी
घटना के बाद प्राथमिकी दर्ज कराने में भी लापरवाही बरती गयी. पहले दिन 20 नवंबर, 2013 को रात्रि में गांधी मैदान थाने में दर्ज करायी गयी एफआइआर में डीपीओ कार्यालय के किसी भी कर्मी को प्राथमिकी अभियुक्त नहीं बनाया गया था.
एफआइआर में अज्ञात लोगों पर आशंका जाहिर की गयी थी. लेकिन दूसरे ही दिन मामला बढ़ता देख अधिकारियों ने इससे पल्ला झाड़ने के लिए नया केस दर्ज कराते हुए उसमें पूर्व नाजिर विकास कुमार यादव, तत्कालीन नाजिर वीरेंद्र कुमार और अनुसेवी जगदीश प्रसाद शर्मा को प्राथमिकी अभियुक्त बनाया गया और उनको जेल भेज दिया गया.
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