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ऐतिहासिक क्षण: ऐसे जज हों जिनके फैसले पर न उठे उंगली

पटना: स्वतंत्र न्यायपालिका को लोकतंत्र की आधारशिला करार देते हुए राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने शनिवार को कहा कि न्यायाधीशों के चयन और उनकी नियुक्ति की प्रक्रिया में उच्चतम मानकों का पालन किया जाना चाहिए. पटना हाइकोर्ट के शताब्दी समारोह का उद्घाटन करने के बाद राष्ट्रपति ने कहा, लंबित मामलों के जल्द निबटारे के लिए न्यायाधीशों […]

पटना: स्वतंत्र न्यायपालिका को लोकतंत्र की आधारशिला करार देते हुए राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने शनिवार को कहा कि न्यायाधीशों के चयन और उनकी नियुक्ति की प्रक्रिया में उच्चतम मानकों का पालन किया जाना चाहिए. पटना हाइकोर्ट के शताब्दी समारोह का उद्घाटन करने के बाद राष्ट्रपति ने कहा, लंबित मामलों के जल्द निबटारे के लिए न्यायाधीशों के खाली पदों को भरने में हमें थोड़ी जल्दबाजी दिखानी चाहिए, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि जैसे तैसे रिक्तियों को भर लिया जाये.

वैसे जजों को नियुक्त किया जाना चाहिए, जो स्तरीय और न्यायविद् हों, ताकि उनके द्वारा दिये गये आदेश पर किसी प्रकार की उंगली नहीं उठायी जा सके. राष्ट्रपति की यह टिप्पणी ऐसे समय में आयी है, जब राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) की स्थापना के मुद्दे पर विवाद हुआ है.

आयोग के गठन के बाद अब तक न्यायाधीशों की नियुक्ति करनेवाली कॉलेजियम प्रणाली का अंत हो जायेगा. एनजेएसी कानून के लागू होने से सुप्रीम कोर्ट और हाइकोर्ट के न्यायाधीशों की नियुक्ति में कार्यपालिका की भूमिका अहम हो जायेगी.

राष्ट्रपति ने मुकदमों के बड़ी संख्या में लंबित रहने का हवाला देते हुए कहा, न्याय मिलने में देर होने से लोगों में असंतोष बढ़ता है और यह न्याय न मिलने की श्रेणी में आता है. उन्होंने लंबित मामलों के तेजी से निबटारे के लिए अदालतों में नयी प्रौद्योगिकी एवं सूचना प्रौद्योगिकी का ज्यादा-से-ज्यादा इस्तेमाल अदालतों में करने पर जोर दिया. उन्होंने अधीनस्थ न्यायपालिका में आधारभूत संरचना में सुधार के लिए ज्यादा संसाधन मुहैया कराने की जरूरत पर भी जोर दिया. उन्होंने कहा कि इन मुकदमों के निबटारे के लिए न्यायाधीशों की भारी कमी है. पटना हाइकोर्ट में 43 जज होने चाहिए, लेकिन यहां 31 जज हैं. अब भी 12 जजों की कमी है. उन्होंने कहा कि भारतीय न्यायपालिका स्वतंत्र व निष्पक्ष है. यहां की न्यायपालिका की देश-विदेश में चर्चा है.
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा कि पटना हाइकोर्ट का निर्णय स्तरीय होता है. यह शुरू से होता रहा है. उन्होंने इसका उदाहरण देते हुए कहा कि भूमि सुधार अधिनियम के मामले में संविधान का पहला संशोधन यहीं के केस से हुआ. राष्ट्रपति ने एक अंगरेजी अखबार में छपी रिपोर्ट और उसकी हेडलाइन का जिक्र किया, जिसमें न्यायपालिका की स्वायत्ता पर जोर दिया गया था. उन्होंने कहा कि रिपोर्ट में बताया गया था कि पटना हाइकोर्ट के पहले मुख्य न्यायाधीश सर एडवर्ड मेनार्ड डेसचैंप्स चेमियर ने बिहार के तत्कालीन उपराज्यपाल सर एडवर्ड गेइट और कार्यपालिका के अन्य पदाधिकारियों को एक मार्च, 1916 को हुए न्यायिक सत्र के उद्घाटन का न्योता भेजने से इनकार कर दिया था. भारत के वायसराय लॉर्ड हार्डिग तक को इससे दूर रखा गया था. राष्ट्रपति ने पटना हाइकोर्ट के गौरवशाली इतिहास का भी जिक्र किया, जहां देश के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद और संविधान सभा के पहले अध्यक्ष सच्चिदानंद सिन्हा ने वकालत की थी.

उन्होंने कहा कि पटना हाइकोर्ट के तीन न्यायाधीश – न्यायमूर्ति भुवनेश्वर प्रसाद सिन्हा, न्यायमूर्ति ललित मोहन शर्मा और न्यायमूर्ति आरएम लोढ़ा तरक्की पाकर भारत के मुख्य न्यायाधीश पद संभाल चुके हैं.

समारोह में देश के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति एचएल दत्तू, राज्यपाल केशरीनाथ त्रिपाठी, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, केंद्रीय विधि मंत्री एचवी सदानंद गौडा, संचार व आइटी मंत्री रविशंकर प्रसाद, पटना हाइकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एल नरसिम्हा रेड्डी और सभी न्यायाधीश उपस्थित थे.

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