जो सुविधाएं पर्यटकों के लिए लायी जाती हैं, वे कुछ समय बाद ही खत्म हो जाती हैं. 2012 में विदेशी पर्यटकों की संख्या 10 लाख 96 हजार थी. उस समय विदेशी पर्यटकों के आने के मामले में बिहार का देश में 7 वां स्थान था, जबकि 2013 में इनकी संख्या घट कर 7 लाख 65 हजार हो गयी. हालांकि 2014 में इसमें थोड़ी वृद्धि होकर 8 लाख 29 हजार हुई. फिर भी 2012 की तुलना में यह कम ही रही. खास यह है कि पर्यटन के क्षेत्र में राज्य को देश-विदेश के मानचित्र पर स्थापित करने की कोई कोशिश नहीं हो रही. विभागीय सूत्रों की मानें, तो मंत्री डॉ जावेद इकबाल अंसारी की सुस्ती से अफसर भी इस ओर सक्रिय नहीं दिख रहे हैं.
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बिहार में पर्यटकों की संख्या घटी, मंत्री को घूमने से फुरसत नहीं बेबस पर्यटन, बग्घी भी फेल
पटना: राज्य के ऐतिहासिक और पौराणिक धरोहर को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने के लिए सरकार के स्तर पर कई प्रयास किये गये हैं, लेकिन पर्यटन विभाग की लापरवाही और खराब प्रबंधन के कारण यह संभव नहीं हो पा रहा है. जो सुविधाएं पर्यटकों के लिए लायी जाती हैं, वे कुछ समय बाद […]
पटना: राज्य के ऐतिहासिक और पौराणिक धरोहर को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने के लिए सरकार के स्तर पर कई प्रयास किये गये हैं, लेकिन पर्यटन विभाग की लापरवाही और खराब प्रबंधन के कारण यह संभव नहीं हो पा रहा है.
धूल फांक रही बग्घी
पटना में पर्यटकों को लुभाने और घुमाने के लिए 2012 में 2.50 लाख की लागत से दो बग्घी मंगवायी गयी थी. इसके लिए शहर में इको पार्क से रोजाना शाम को खुलने के समय के साथ-साथ रूट भी निर्धारित किया गया. कई मंत्रियों ने भी इसकी सवारी की, लेकिन कुछ समय बाद यह एकदम से गायब हो गयी. बग्घी चलनी बंद हो गयी और यह पर्यटन विकास निगम के गोदाम में धूल फांक रही है. इसके बाद ‘कारवा’ वाहन लाया गया. खर्च हुए 35 लाख रुपये. शुरुआत जितनी जोरदार रही, उतनी ही जल्दी यह फ्लॉप हो गया. मुख्य वजह स्पीड नहीं, तकनीकी तौर पर खराब वाहन की खरीद करना है. इससे बोधगया पहुंचने में सामान्य वाहन से दो-ढ़ाई घंटे ज्यादा समय लगता है. जिस हिसाब से इसका किराया है,उसके अनुसार सुविधाएं इसमें नहीं हैं.
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